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बिहार की मतदाता नायिका

इन दिनों माननीय के अनुरागी चित्त की गति को समझ पाना कठिन हो रहा है। वह कई सौ किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से बिहार की सड़कों को रौंदे पड़े हैं। एक बार पुन: उन पर विधायकी की कुर्सी का प्यार परवान...

बिहार की मतदाता नायिका
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 19 Oct 2010 05:22 PM
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इन दिनों माननीय के अनुरागी चित्त की गति को समझ पाना कठिन हो रहा है। वह कई सौ किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से बिहार की सड़कों को रौंदे पड़े हैं। एक बार पुन: उन पर विधायकी की कुर्सी का प्यार परवान चढ़ने लगा है। उधर बिहारी की नायिका से भी छबीली बिहार की मतदाता रूपी नायिका पलक पांवड़े बिछाए बैठी है। उसे पता था, वे किसी दिन अवश्य आएंगे और उसी चिर-परिचित मादक अदा और पारंपरिक चालुई भाषा में निवेदित होंगे।

वे आ गए हैं। कह रहे हैं- अब तुम 18 बरस की हो चुकी हो। अपना बुरा-भला बखूबी समझने लग गई हो। बालिग हो। मेरी बांहों में आ जाओ। मेरे नाम का ‘बटन’ टांक दो। मुझे एक बार मौका दो। मैं ही सर्वथा तुम्हारे योग्य हूं। बाकी के सारे रकीब बेवफा हैं। मैं ही तो हूं तुम्हारा सच्चा आशिक। नायिका भी बखूबी जानती है कि वे अगले ही पल दूसरी गोरी के पास जाएंगे और सरेंडर मुद्रा में यही वाला डायलॉग वहां पर भी दोहराएंगे। ये जब अपने ही दल के प्रति निष्ठावान नहीं रहे, तो मेरे प्रति क्या ही समर्पित होंगे?

फिर भी यह चुप है। मन के घूंघट तले मुस्कान मार रही है। सोच रही है- खूब आए सनम। प्यार के सौदागर। लोकतंत्र के सौदाई। गद्दी के मजानू। गठबंधन के प्रेमी। कल तक किसी और दल में थे। टिकट नहीं मिला। रातोंरात दीवार फांद कर दूसरे दल के बैडरूम में घुस गए। कल उसकी रूप-राशि के गुण गा रहे थे, आज इसके केश-जाल में उलझे हुए हैं। इन्हें मन नहीं, मत चाहिए। रंगीली कसमें, रसीले वायदे। बाहर से कुछ और, अंदर से कुछ और। क्षेत्र में आए हैं परदेशी बलम। विकास के पुष्प-वाण चला रहे हैं। क्या पता, किस मतदाता नायिका का मन घायल हो जाए?

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