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क्यों: प्याज और लहसुन का निषेध

प्याज खाने पर पुन: एक बार व्रतबंध किया जाना चाहिए, ऐसा शास्त्र कहता है। वैसे तो जमीन के नीचे पैदा होने वाले कंद पूर्णत: निषिद्ध हैं परंतु हिंदू धर्म में विशेषकर प्याज एवं लहसुन त्याज्य माने गए हैं।...

क्यों: प्याज और लहसुन का निषेध
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 15 Oct 2010 08:31 PM
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प्याज खाने पर पुन: एक बार व्रतबंध किया जाना चाहिए, ऐसा शास्त्र कहता है। वैसे तो जमीन के नीचे पैदा होने वाले कंद पूर्णत: निषिद्ध हैं परंतु हिंदू धर्म में विशेषकर प्याज एवं लहसुन त्याज्य माने गए हैं। फलों में 20-25 प्रतिशत निषिद्ध होते हैं। हविष्य पदार्थ उससे अधिक यानी 30-35 प्रतिशत निषिद्ध होते हैं।

नित्य उपयोग में लाए जाने वाले शाकाहारी पदार्थ 40-45 प्रतिशत निषिद्ध माने जाते हैं। अंडे, लहसुन और प्याज 90 प्रतिशत निषिद्ध होते हैं। मांस, मछली एवं मद्य पदार्थ 100 प्रतिशत निषिद्ध होते हैं। लेकिन कतिपय आचार प्रधान संप्रदायों में पूर्ण प्रतिबंधित कंद पदार्थो का सेवन करने की भी इजाजत है। हिंदू धर्म में 80 प्रतिशत तक निषिद्ध चीजों का सेवन करने का अनुमति दी गई है, इसलिए प्याज-लहसुन वज्र्य माने गए हैं।

प्याज के शास्त्रीय एवं मानस शास्त्रीय प्रयोग हो चुके हैं। प्याज के छिलके निकालते समय अंदर की गंध मन को विचलित कर देती है। आंखों से पानी आना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। प्याज के सेवन का असर रक्त में रहने तक मन में काम वासनात्मक विकार मंडराते रहते हैं।

शरीर की अवस्था में संचार करने वाले कुछ महान संत प्याज की तरह के पदार्थो का निषेध नहीं मानते। इसका कारण यह है कि इनका पंचमहाभौतिक शरीर उच्च स्तरीय विविध कोशों में रहता है। इसी कारण उनके द्वारा सेवन की गई किसी भी वस्तु का प्रभाव उनकी बुद्धि एवं मन पर नहीं होता। परंतु सामान्य व्यक्ति निषिद्ध पदार्थो के सेवन से उत्पन्न होने वाले प्रभावों से अलिप्त नहीं रह सकते।

प्याज चबाने के कुछ समय पश्चात् वीर्य की सघनता कम होती है और गतिमानता बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप विषय-वासना में वृद्धि होती है। बरसात के दिनों में प्याज खाने के अपच एवं अजीर्ण आदि उदर विकार उत्पन्न हो जाते हैं। फिर भी कुछ गुणों के कारण आयुर्वेद ने प्याज और लहसुन का समावेश औषधि में किया है। 

लहसुन हृदय रोग के लिए उपयुक्त होता है। शरीर में ज्वराधिक्य होने पर प्याज को घिस कर पेट एवं मस्तक पर लगाया जाता है तथा प्याज रस का सेवन किया जाता है। परंतु यदि इन पदार्थो का उपयोग निरंतर किया जाए तो ये संस्कार एवं विचार की दृष्टि से हानिकारक सिद्ध होते हैं।

पवित्र रसोईघर में प्याज-लहसुन का प्रयोग करने से वह अपवित्र मानी जाती है। ये परमात्मा के नेवैद्य में पूर्णत: निषिद्ध हैं। धार्मिक अनुष्ठान-व्रत वैकल्य आदि मौकों पर भोजन में लहसुन-प्याज का इस्तेमाल नहीं किया जाता। ये सभी बातें औषधि उपयोग के अलावा निषेधात्मक संकेत देने वाली हैं।
(‘मनोज पब्लिकेशन्स’ के सौजन्य से)

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