अपने लिए तो बदलो
उस दिन घर लौटते हुए वह परेशान थे। इतना सब कुछ कर लेने के बावजूद वह कहीं अटक गए थे। कभी-कभी तो उन्हें महसूस होता था कि वह निहायत नाकामयाब जिंदगी जी रहे हैं। और अब बदलाव की जरूरत है। डॉ. स्टैन...
उस दिन घर लौटते हुए वह परेशान थे। इतना सब कुछ कर लेने के बावजूद वह कहीं अटक गए थे। कभी-कभी तो उन्हें महसूस होता था कि वह निहायत नाकामयाब जिंदगी जी रहे हैं। और अब बदलाव की जरूरत है। डॉ. स्टैन गोल्डबर्ग मानते हैं कि नाकामयाबी की भनक लगते ही हमें सबसे पहले अपनी खूबियों और खामियों का बांट लेना चाहिए। जो हमारी कमजोरियां हैं, उन्हें मेहनत कर दुरुस्त किया जाए। वह मशहूर चेन्ज एक्सपर्ट और स्पीच थिरेपिस्ट हैं और बदलाव पर चार किताब भी लिख चुके हैं।
जिंदगी में जब सब ठीक-ठाक चल रहा होता है, तो हम कहां अपने बारे में सोचते हैं? हमें कहीं नाकामयाबी मिलती है, तो अपने बारे में सोचने को मजबूर हो जाते हैं। यों किसी काम में कामयाबी न मिलने से हम पहले-पहल बाहरी चीजों को ही कोसते हैं। आमतौर पर उस शख्स को, जिसने उस नाकामयाबी का अहसास दिलाया। लेकिन जब हम गहराई से अपनी नाकामयाबी की पड़ताल करते हैं, तो अपने में ही कई गड़बड़ियां नजर आती हैं।
दरअसल, जब हम किसी मुकाम पर कामयाब नहीं होते, तो अपने भीतर जाने की जरूरत होती है। तब हमें अपने से जुड़ी कई चीजों पर फिर से सोचना होता है। हमारी आदतें, हमारा व्यवहार, हमारी मेहनत वगैरह-वगैरह। अब जिन वजहों से कामयाबी फिसल पड़ी है, उसी पर काम करना चाहिए। एक बार नाकामयाब होना कोई गड़बड़ नहीं है। लेकिन बार-बार नाकामयाब होना ही दिक्कत है। और अगर वह नाकामयाबी हमें अपनी किसी खास वजह से मिली है, तो वह एक किस्म का जुर्म है। आखिर हम अपने लिए ही बदलने को तैयार नहीं हैं, तो किसके लिए होंगे। यों बदलना आसान नहीं है, लेकिन उतना मुश्किल भी नहीं है। जरूरत उस चाहत की है, जो हमें कामयाब देखना चाहती है।