फोटो गैलरी

Hindi Newsपाकिस्तान की चालाक दलीलें

पाकिस्तान की चालाक दलीलें

हर बार जब हम यह कहते हैं कि पाकिस्तान आतंकवादियों को पनाह दे रहा है या सीमापार से भारत में उनकी घुसपैठ करवा रहा है तो पाकिस्तान के नेता क्रोधित और निर्लज्ज प्रतिक्रियाएं जताते हैं। वे कहते हैं यह झूठ...

पाकिस्तान की चालाक दलीलें
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 10 Oct 2010 11:16 PM
ऐप पर पढ़ें

हर बार जब हम यह कहते हैं कि पाकिस्तान आतंकवादियों को पनाह दे रहा है या सीमापार से भारत में उनकी घुसपैठ करवा रहा है तो पाकिस्तान के नेता क्रोधित और निर्लज्ज प्रतिक्रियाएं जताते हैं। वे कहते हैं यह झूठ है। इन आतंकियों ने पाकिस्तान में भी तबाही मचा रखी है।

पाकिस्तान स्वयं ही आतंकवाद का शिकार है। उसके बाद पाकिस्तान के नेता अपने पद से हट जाते हैं और अपनी उपलब्धियों का बखान करते हुए पूरी दुनिया में भ्रमण करते हैं। अचानक वे एक अलग ही सुर में बोलने लगते हैं। अब नवाज शरीफ को ही लीजिए।

पाकिस्तान की सरकारी लाइन यह है कि करगिल मुजाहिदीन की कार्रवाई थी और इसमें पाकिस्तानी सेना तब शामिल हुई, जब भारतीय सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा को पार कर गई। उसके विपरीत उस वक्त के पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने बाद में बताया कि शुरू से आखिर तक उस ऑपरेशन की पूरी योजना सेना ने बनाई थी और उसी ने कार्रवाई भी की।

यह निर्णय सेना प्रमुख के तौर पर जनरल मुशर्रफ ने लिया था और उन्होंने प्रधानमंत्री को इसकी जानकारी न देते हुए मुजाहिदीन से मिलकर इसे लागू करवाया था। लेकिन उस समय पाकिस्तान सरकार यह नहीं मान रही थी। उस समय कहा जा रहा था कि बहादुर कश्मीरी मुजाहिदीन स्वतंत्रता सेनानियों ने भारतीय सेना की शक्ति के खिलाफ अकेले जंग छेड़ी।

बेनजीर भुट्टो का मामला ही लीजिए। जब वे भारत आईं तो उन्होंने इंटरव्यू करने वालों (मुझसे भी) से कहा कि उग्रवादियों को पाकिस्तानी सेना और आईएसआई से प्रशिक्षण और हथियार मिलते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि रिटायर्ड जनरल समांतर व्यवस्था चलाते हैं और निजी सेनाएं रखे हुए हैं। अक्सर यही जनरल आईएसआई से मिलकर सीमापार से उग्रवादी भेजते हैं।

हमारे सामने स्वयं जनरल मुशर्रफ का उदाहरण है। अब वे राजनीति में आ गए हैं और अनुमान लगाइए कि वे अपनी उपलब्धि के तौर पर क्या बयान कर रहे हैं? वे कह रहे हैं कि उनके नेतृत्व के दौरान पाकिस्तान ने भारत में उग्रवादी भेजे थे। अपने समर्थकों की प्रतिक्रिया से उत्साहित होकर जनरल ने जर्मन पत्रिका डेर स्पीगेल में अपनी टिप्पणी को दोहराया भी।

जब उन टिप्पणियों से पूरी दुनिया में हल्ला मचा तो उन्होंने कदम थोड़ा पीछे खींचे। हिंदुस्तान टाइम्स के दीपंकर दे सरकार से उन्होंने कुछ दिन पहले कहा कि स्पीगेल ने उनकी बात को तो सही ढंग से रखा, पर उसका असर उन्होंने गलत छोड़ा। उन्होंने कहा, ‘उन लोगों ने इंटरव्यू को तोड़ा-मरोड़ा नहीं, लेकिन उससे गलत अर्थ निकाल लिया।’ वे इस तथ्य से वाकिफ थे कि उनके इंटरव्यू की इलेक्ट्रानिक रिकार्डिग उपलब्ध है।

तो फिर उसका सही अर्थ क्या हो सकता था? पाकिस्तान ने आतंकवादियों को पनाह तो दी, लेकिन यह नवाज शरीफ और बेनजीर भुट्टो ने किया। अब देखिए, तीन पाकिस्तानी नेता एक दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं। अगर इस बात को छोड़ दिया जाए कि इन कामों के लिए वास्तव में कौन जिम्मेदार था, तो कोई भी इस तथ्य से इनकार नहीं कर रहा है कि पाकिस्तान ने उन आतंकवादी समूहों को संरक्षण दिया, जिन्होंने भारत पर हमले किए।

सत्ता में रहते हुए यह नेता जो कहते हैं, उसे समझने के लिए इतना काफी है। हां, यह बात सही है कि पाकिस्तान अब स्वयं आतंकवाद का शिकार है, लेकिन वह आतंकवाद उसी जानवर से पैदा हुआ है, जिसे पाकिस्तान ने खुद बड़ी मोहब्बत से पाला और पोसा। कुछ लोग यह दलील दे सकते हैं कि हो सकता है पाकिस्तानी नेता पहले आतंकवाद को समर्थन देने के बारे में झूठ बोल रहे हों, लेकिन आज स्थिति इतनी बदल गई है कि अब पाकिस्तान के पास आतंकियों पर हमला करने के अलावा कोई चारा नहीं है।

यह दलील ठीक भी है और गलत भी। यह दलील पहले 9/11 के बाद अमेरिकियों ने चलाई थी। वाशिंगटन ने कहा कि यह सही है कि तालिबान कोआईएसआई ने पैदा किया और पाकिस्तान के उग्रवादियों से घनिष्ठ रिश्ते हैं, लेकिन एक बार जॉर्ज बुश की धमकी के बाद पाकिस्तान ने अपने पुराने दोस्त को छोड़ दिया और आतंक के खिलाफ वैश्विक जंग में शामिल हो गया।

पिछले दशक के अनुभव से पता चलता है कि पाकिस्तान ने वाशिंगटन के धर्मयुद्ध का समर्थन अधूरे मन से किया था और कई बार उसमें दोगलापन भी रहा है। सीआईए अब मान रहा है कि आईएसआई के उग्रवादी संगठनों से संपर्क बने हुए हैं। पश्चिमी देशों  पर होने वाले ज्यादातर हमलों की साजिशें पाकिस्तान में रची गईं। 

पिछले हफ्ते पाकिस्तानी मूल के यूरोपीय नागरिकों की गिरफ्तारी के बाद यूरोप और अमेरिका में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया। वे लोग आतंकी शिविरों में प्रशिक्षण लेकर आए थे, ताकि वे पश्चिम में मुंबई जैसे किसी हमले को अंजाम दे सकें।

इन स्थितियों से सीधा सवाल उठता है। अगर पश्चिमी देश यह मानने को तैयार हैं कि पाकिस्तान के प्रशिक्षण शिविरों में आतंकी तैयार किए जाते हैं और फिर वे आतंकी यूरोप और अमेरिका में हमला करने की योजना बनाते हैं, तो इस बात पर कोई कैसे विवाद कर सकता है कि इन पाकिस्तानी शिविरों में तैयार भारत पर भी हमला करते हैं? हमारे लिहाज से बुरी बात यह है कि पश्चिमी देशों ने पाकिस्तान के बारे में अपने रवैये को उदार बनाया है।

उनकी नई सोच यह है कि आतंकवाद विरोधी लड़ाई के खिलाफ पाकिस्तान का जनमत इस समय इतना उग्र है कि पाकिस्तानी सरकार (और आईएसआई) को पर्याप्त छूट देनी चाहिए और उनसे सभी आतंकियों पर हमला करने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। यह दलील आगे कहती है कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो पाकिस्तान में इस्लामी क्रांति होगी और अल-कायदा सत्ता में आ जाएगा।

इस दलील का वास्तव में अर्थ क्या है? लगता है, पश्चिमी देशों ने पाकिस्तान की यह दलील मान ली है कि आईएसआई की संतानों, तालिबान और हक्कानी समूह से समझौता कर लिया जाए और अफगानिस्तान से निकल लिया जाए। जब तक पाकिस्तान सीआईए और पश्चिमी एजेंसियों को अमेरिका और यूरोप पर हमले की जानकारी देता रहेगा, तब तक अमेरिका उसे वह सब करने देगा, जो वह चाहता है।

जहां तक यह दलील दी जाती है कि पाकिस्तान के भीतर बढ़ रहे हमलों के कारण सरकार सभी तरह के आतंकी समूहों पर हमला करने के लिए मजबूर है, तो इसे एक तरह का अतिसरलीकरण माना जाना चाहिए। पाकिस्तानी उन आतंकियों में भेद करते हैं, जो कराची में बम फोड़ते हैं और जो कश्मीरी आजादी के नाम पर भारत पर  हमला करते हैं।

लेखक एचटी मीडिया के संपादकीय सलाहकार हैं।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें