जिन्दगी से हार नहीं मानती धनवंती
अपाहिज बनकर दूसरों पर आश्रित रहकर जीने की अपेक्षा अपने हौसलों के बल पर जीने का जज्बा दिखाया है बालाघाट से लगभग 10 किलोमीटर दूर रहने वाली सोलह वर्षीय धनवंती पांचे ने जिसके कंधों के आगे हाथ नहीं हैं...
अपाहिज बनकर दूसरों पर आश्रित रहकर जीने की अपेक्षा अपने हौसलों के बल पर जीने का जज्बा दिखाया है बालाघाट से लगभग 10 किलोमीटर दूर रहने वाली सोलह वर्षीय धनवंती पांचे ने जिसके कंधों के आगे हाथ नहीं हैं लेकिन इसके बावजूद वह किसी पर आश्रित नहीं है।
धनवंती जिला मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर गोंदिया मार्ग पर स्थित पिंडरई गांव की रहने वाली है और जन्म से ही उसके कंधे के नीचे हाथ नहीं हैं। इसके बावजूद उसने जिंदगी से हार नहीं मानी और पैरों से स्लेट पर इबारत लिखना सीखा। पैरों से लिखाई सीखने के साथ ही रफ्ता-रफ्ता उसने बारहवीं तक की पढ़ाई पूरी कर ली।
परिवार में पांच भाई बहन और माता पिता के बीच धनवंती का परिवार गरीबी में जिंदगी बसर कर रहा है तथा माता-पिता मजदूरी कर अपने परिवार का पेट भर रहे हैं।
कंधों के आगे हाथ नहीं होने से वह अपने दैनिक क्रियाकलाप कैसे कर पाती होगी, इसकी कल्पना ही की जा सकती है। इसके बावजूद वह कम्प्यूटर का कीबोर्ड तथा माउस चला लेती है। उसकी इच्छा है कि कम्प्यूटर चलाना सीखकर इंजीनियर की पढ़ाई पूरी करे और अपनी तथा अपने परिवार की जिंदगी बेहतर बना सके।