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सहिष्णुता का अर्थ

सहिष्णुता का अर्थ है सहन करना और असहिष्णुता का अर्थ है सहन न करना। सब लोग जानते हैं कि सहिष्णुता आवश्यक है और चाहते हैं कि सहिष्णुता का विकास हो। विचार इस पर करना है कि कहां अवरोध है? सहिष्णुता एक...

Digpal jeena Sun, 15 March 2009 07:30 AM
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सहिष्णुता का अर्थ है सहन करना और असहिष्णुता का अर्थ है सहन न करना। सब लोग जानते हैं कि सहिष्णुता आवश्यक है और चाहते हैं कि सहिष्णुता का विकास हो। विचार इस पर करना है कि कहां अवरोध है? सहिष्णुता एक भावनात्मक शक्ित है। भाव इन्द्रिय चेतना और मन से परे होता है। मन भाव से संचालित होता है और इन्द्रियां भी भाव से संचालित होती है। भाव सबसे ऊपर है। जो व्यक्ित सहिष्णुता का विकास करना चाहे उसे अपने शारीरिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना जरूरी है। जब सहन करने की शक्ित कम लगे तो सोचना चाहिए कि कहीं मेरे शरीर के अवयवों में कोई विकृति तो नहीं हुई है, कोई दोष तो नहीं आया है?उसे वह भोजन नहीं करना चाहिए, जिससे अग्नि तत्व का उद्दीप्न हो, जिससे सहन करने की शक्ित घट जाए और वासना बढ़ जाए। आहार का विवेक आवश्यक है। आहार में वायु और अग्नि का संतुलन होना चाहिए। अग्नि तत्व को बढ़ाने वाला आहार न हो और वायु तत्व की अति करने वाला आहार न हो। सहिष्णुता केवल उपदेश से नहीं बढ़ेगी। तत्व विद्या के अनुसार हमारी पांच अंगुलियां- कनिष्ठा जल तत्व, अनामिका पृथ्वी तत्व, मध्यमा आकाश तत्व, तर्जनी वायु तत्व और अंगुष्ठ अग्नि तत्व की प्रतीक हैं। इनके योग से भी असहिष्णुता को कम किया जा सकता है। जब यह लगे कि सहन करने की शक्ित कम है तब हम यह प्रयोग करं। जल तत्व अग्नि तत्व को शांत करने वाला है, उत्तेजना को शांत करने वाला है।अगर इसका आधा-पौन घंटा प्रयोग करं तो सहिष्णुता की शक्ित में काफी अंतर आ सकता है। लोग कहते हैं कि दिमाग गर्म हो गया, दिमाग ठंडा क्यों नहीं रहा? कारण स्पष्ट है कि अग्नि तत्व बढ़ गया, दिमाग गर्म हो गया। दर्शनकेन्द्र, ज्योतिकेन्द्र, शांतिकेन्द्र और ज्ञानकेन्द्र- ये चार मुख्य केन्द्र हैं, जहां ध्यान कर हमार नकारात्मक भावों- असहिष्णुता, अहंकार, कपट, लोभ, घृणा, भय, अतिभय, वासना, का परिष्कार किया जा सकता है। परिष्कार करने के ये साधन हैं। ध्यान का एक महत्वपूर्ण प्रयोग है सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा, जो बहुत प्रचलित है। उसका भी हम प्रयोग कर सकते हैं।

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