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अथॉरिटी के स्थापना दिवस पर श्रृंखला: 34 वर्ष का होता नोएडा

उद्योगों को बसाए जाने के मकसद से नोएडा की नींव रखी गई। शुरुआत में इस परिकल्पना का काफी हद तक पालन किया गया। शहर को विश्व स्तर की छवि देने के लिए 33 फीसदी ग्रीनरी को प्राथमिकता दी गई। समय के साथ ही...

अथॉरिटी के स्थापना दिवस पर श्रृंखला: 34 वर्ष का होता नोएडा
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 13 Apr 2010 07:31 PM
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उद्योगों को बसाए जाने के मकसद से नोएडा की नींव रखी गई। शुरुआत में इस परिकल्पना का काफी हद तक पालन किया गया। शहर को विश्व स्तर की छवि देने के लिए 33 फीसदी ग्रीनरी को प्राथमिकता दी गई। समय के साथ ही इसका स्वरूप भी बदला और प्राथमिकता भी। अधिक से अधिक धन कमाने के चक्कर में ग्रीनरी को उजाड़ा जाने लगा। शहर की करीब 85 फीसदी जमीन बिक चुकी है। अब भी यह जारी है। यही वजह है कि सोने से भी महंगी कीमत देकर यहां आशियाना बनाने वाले लोग बढ़ते प्रदूषण के साथ जीने को मजबूर हैं। इससे पहले कि ग्रीनरी को उजाड़कर कंक्रीट के जंगल खड़े होते रहे और प्रदूषण स्तर बढ़ता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब नोएडा भी बेहद प्रदूषण शहरों में शुमार होगा। इसके लिए शहर में ग्रीनरी के साथ ही पर्यावरण हितेशी देशी पौधे लगाने को प्राथमिकता देनी होगी, सिर्फ खूबसूरती के लिए महंगे विदेशी पौधे व फूलों को लगाने भर से काम नहीं चलेगा।

खिचड़ी बना सपनों का शहर
शहर के मास्टर प्लॉन में राष्ट्रीय मानक के अनुरूप ग्रीन बेल्ट विकसित करने का वादा अथॉरिटी ने किया।  कुल भूखंड के 67 प्रतिशत एरिया पर कंक्रीट के जंगल विकसित करने का नियम है। अथॉरिटी की किसी भी आवासीय, कॉमर्शियल या औद्योगिक योजना के कुल भूखंड में से 33 प्रतिशत एरिया पर ग्रीन बेल्ट बनाना अनिवार्य है। अथॉरिटी केअब तक कीयोजनाओं में ग्रीन बेल्ट के प्रति बेहद लापरवाही बरती गई है। यही वजह है कि शहर में ग्रीनरी 15 से 17 फीसदी ही है। मास्टर प्लॉन में नोएडा को औद्योगिक शहर के रूप में प्राथमिकता दी गई है, लेकिन 32 साल में न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (नाम से स्पष्ट है) ने नोएडा के विकास की दिशा ही बदल दी, और नोएडा औद्योगिक एरिया के रूप में कम और महंगे आवास के रूप में ज्यादा शक्ल ले चुका है। सेक्टर-एक से दस तक सबसे पुराने औद्योगिक सेक्टर हैं। सेक्टर-16ए व 18 व 38 कॉमर्शियल सेक्टर हैं, जबकि सेक्टर-11, 14 52 तक आवासीय सेक्टर हैं, वहीं 57 से 65 तक के सेक्टर औद्योगिक व कॉमर्शियल है। सेक्टर-71, 72 व 73, 80, 82, 81, 83 आदि आवासीय सेक्टर हैं। सेक्टर-94 कॉमर्शियल लैंड हैं। इसके अलावा सेक्टर-54 ग्रीन बेल्ट बन चुका है, जबकि 108 व 109 ग्रीन बेल्ट के रूप में विकसित करने का प्लॉन है। सेक्टर-32 में सिटी सेंटर बनाने का प्लॉन है। 

ग्रीन बेल्ट की स्थिति
कागजों में नोएडा अथॉरिटी ने अब तक एलॉट किए गए कुल भूखंड का 30 फीसदी क्षेत्र वन संरक्षित, ग्रीन बेल्ट व पार्क के रूप में विकसित कर चुकी है। हकीकत इससे कहीं परे हैं। अब तक अथॉरिटी लगभग छह हजार हेक्टेयर भूखंड विकसित कर चुका है। इसमें से 12 सौ हेक्टेयर भूखंड पर ग्रीनरी है। यह कुल भूखंड का 20 फीसदी है। जो कि 33 फीसदी ग्रीन बेल्ट के राष्ट्रीय औसत से काफी कम है।

पार्किग का अभाव ग्रीन बेल्ट पर संकट
यहां की सत्तर फीसदी ग्रीन बेल्ट पर अवैध पार्किग का धंधा चल रहा है। इससे सड़क पर ट्रैफिक तो बाधित होता ही है, पीक ऑवर में वाहनों का तांता लग जाता है। अथॉरिटी के कागजों में सड़क के किनारे की जमीन ग्रीन बेल्ट के रूप में दर्ज है। शहर में ग्रीन बेल्ट को पार्किग के रूप यूज करने का नजारा आम है। सेक्टर-एक से दस तक जितने भी ग्रीन बेल्ट हैं, वहां वाहनों की लंबी कतार देखी जा सकती है। सेक्टर-57, 58, 59, 60 व 61 सेक्टर भी इसी समस्या से जूझ रहे हैं। ऐसा नहीं है कि अथॉरिटी को इस समस्या का आभास नहीं है, बल्कि आसपास पार्किग की सुविधा न होने के कारण ऐसा हो रहा है। अपनी कमी को देखते हुए अथॉरिटी ने चुप्पी साध रखी है।

यहां है दिक्कत
औद्योगिक सेक्टर में कंपनी को आवंटित भूखंड का तीस से पैंतीस फीसदी हिस्सा बतौर पार्किग व ग्रीन बेल्ट विकसित करने का नियम है। किसी भी हालत में सड़क के किनारे या ग्रीन बेल्ट में वाहन खड़ा करने की इजाजत नहीं है। इसकी धज्जियां उड़ाते हुए शहर की 70 फीसदी कंपनियों ने कुल अलॉट भूखंड पर बिल्डिंग खड़ी कर ली है। ऐसे में इन कंपनियों के वाहन सड़कों के किनारे या ग्रीन में ही खड़े होते हैं। कंपलीशन सार्टिफिकेट जारी करते समय भी अथॉरिटी ने यह जांच करना जरूरी नहीं समझा कि कंपनी ने पार्किग व ग्रीन बेल्ट के लिए जगह छोड़ी गई है या नहीं। यही वजह है कि किसी भी टाइप के बिल्डिंग में ग्रीन बेल्ट के नाम पर एक भी पेड़-पौधे नहीं हैं।

बढ़ रहा प्रदूषण
ग्रीनरी के अभाव में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। आवासय सेक्टर में आरएसपीएम की मात्र तय मानक 200 से बढ़कर पांच सौ के पार पहुंच चुका है। शहर की आबोहवा को दुरुस्त रखने के लिए शहर में 33 फीसदी ग्रीनरी जरूरी है। इसके अभाव के कारण शहर में प्रदूषण काफी ज्यादा है। प्रदूषण विभाग की मानें, तो शहरी में ग्रीनरी बढ़ाकर प्रदूषण को 30 से 40 प्रतिशत कम किया जा सकता है। 

हरियाली बढ़ाना जरूरी
नोएडा को विश्व स्तर का शहर बनाने के लिए 33 फीसदी एरिया को ग्रीन करना जरूरी है। कंक्रीट का जंगल बनाने के बजाय ग्रीनरी को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सिर्फ खूबसूरत दिखने वाले पौधों को लगाने के बजाय पर्यावरण हितैशी वाले पौधों पीपल, नीम, जामुन, गूलर जैसे पौधों को अहमियत देनी होगी।

ग्रीनरी से जुड़े अन्य तथ्य
मास्टर प्लॉन-2021 में 15 से 18 हजार हेक्टेयर जमीन पर कंक्रीट का जंगल होगा विकसित
मास्टर प्लान में कुल एरिया का 33 फीसदी का प्रावधाऩ
पांच हजार हेक्टेयर ग्रीनरी होगी विकसित
वर्तमान में कुल भुखंड का 17 फीसदी ग्रीन बेल्ट
कुल ग्रीनबेल्ट-चार सौ हेक्टेयर
पार्क  -पांच सौ हैक्टेयर
मास्टर ग्रीनरी- तीन सौ हेक्टेयर

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