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Hindi News टीबी पर जीत में चंडीगढ़ का योगदान, इम्टैक ने वैज्ञानिक की जीन चिन्हित

टीबी पर जीत में चंडीगढ़ का योगदान, इम्टैक ने वैज्ञानिक की जीन चिन्हित

तपेदिक (टयूबरकुलोसिस) के बैक्टीरिया माइक्रो बैक्टीरियम टयूबरकुलोसिस (एमटीबी) के जीनोम की ऐतिहासिक सिक्वेसिंग से टीबी की अचूक बैक्सीन तैयार करने की संभावना पैदा हो गई है। ऐसी वैक्सीन जिसे लगाने के बाद...

                            
टीबी पर जीत में चंडीगढ़ का योगदान, इम्टैक ने वैज्ञानिक की जीन चिन्हित
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 13 Apr 2010 07:13 PM
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तपेदिक (टयूबरकुलोसिस) के बैक्टीरिया माइक्रो बैक्टीरियम टयूबरकुलोसिस (एमटीबी) के जीनोम की ऐतिहासिक सिक्वेसिंग से टीबी की अचूक बैक्सीन तैयार करने की संभावना पैदा हो गई है। ऐसी वैक्सीन जिसे लगाने के बाद पूरे जीवन पर बीमारी नहीं होगी। 

जीनोम तैयार करने के ऐतिहासिक प्रोजेक्ट का हिस्सा रहे चंडीगढ़ के वैज्ञानिक डॉक्टर जीपीएस राघव ने कहा है कि सीक्वेसिंग के दौरान ऐसे जीन चिन्हित हुए हैं जिनसे उम्मीद की जा सकती है कि टीबी के लिए कारगर वैक्सीन भी तैयार की जा सकती है। डॉ. राघव यूपी के बुलंदशहर के नंगलाकेरा गांव के रहने वाले हैं और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भी वहीं से प्राप्त की है।

चंडीगढ़ स्थित इंस्टीट्यूट आफ माइक्रोबायोजिकल टेक्नालाजी (इम्टैक) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डाक्टर जीपीएस राघव कई महीनों से इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। काउंसिल फार सीएसआईआर के नेतृत्व में देश भर में एमटीबी के सभी चार हजार जीनों की पहचान करने के लिए जो टीमें तैयार की गई थी  उसमें चंडीगढ़ के वैज्ञानिक भी जुडे थे।
इम्टैक बायो इनफारमेटिक्स सेंटर के प्रमुख डाक्टर राघव बताते हैं कि मुहिम में सभी टीमों को अलग-अलग जिम्मेदारी दी गई थी।

उन्होंने इम्युनोलाजी पर काम किया है। उन्होंने बैक्टीरिया में ऐसे जीन चिन्हित किए हैं जो कि मानव शहीर में मौजूद जीनों से अलग हैं। उन्होंने कहा कि  वैक्सीन तैयार में हमें ऐसे ही जीनों की पहचान करनी होती है जो कि मानव शरीर में नहीं हो। फिर उन्हें जीन के लिए वैक्सीन तैयार की जाती है। 

जीनोम की सीक्वेसिंग करके एक तरह से विजुअल मैप बन गया है लेकिन लेकिन असली काम अब रिसर्च पर शुरु होना है। टीबी का इलाज अभी महीनों तक चलता है। सबसे बड़ी समस्या मरीजों के इलाज के बीच में छोड़ने की होती है जिससे बीमारी पूरी तरह से नहीं खत्म होती है। इस प्रोजेक्ट में हर जीन की प्रकृति को जांचा परखा गया है। और जब यह पता हो कि किस जीन की प्रकृति क्या है तो इसका इलाज ढूंछा जा सकता है।

डॉक्टर राघव कहते हैं कि मौजूदा वैक्सीन हिट एंड रन के आधार पर काम करती है। यही कारण है कि हम पूरी तरह से इस बीमारी पर काबू नहीं पा रहे हैं। इससे नई कारगर दवाएं भी बनाने में मदद मिलेगी। 

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