पढ़ाई का नया फंडा: मिलकर करा रहे तैयारी
समय के साथ पढ़ाई के नए-नए ट्रेंड सामने आ रहे हैं। किसी जमाने में कोचिंग और ट्यूशन पढ़ना बहुत अच्छा नहीं माना जाता था। आज स्थिति यह है कि बगैर कोचिंग के काम नहीं चल रहा है। खास तौर से प्रतियोगी...
समय के साथ पढ़ाई के नए-नए ट्रेंड सामने आ रहे हैं। किसी जमाने में कोचिंग और ट्यूशन पढ़ना बहुत अच्छा नहीं माना जाता था। आज स्थिति यह है कि बगैर कोचिंग के काम नहीं चल रहा है। खास तौर से प्रतियोगी परीक्षाओं की वैतरणी पार करने के लिए कोचिंग जरूरी हो गया है। स्कूल की पढ़ाई पर्याप्त नहीं मानी जाती है। अब स्थिति यह है कि नगर की कई कोचिंग और नामी स्कूलों ने टाइम टेबल को एडजस्ट करने के लिए हाथ मिलाया है। कोचिंग और स्कूल वाले इसे सिर्फ टाइम टेबिल का सिन्क्रोनाइजेशन मानते है। बताया जाता है कि इसके पीछे अभिभावकों का दबाव भी काम कर रहा है। वे चाहते हैं कि बच्चा कोचिंग और स्कूल के बीच में चक्करघिन्नी बनकर न रह जाय।
सनबीम एजुकेशन ग्रुप द्वारा संचालित सनबीम भगवनापुर का टाइमटेबिल जेआरएस ट्यूटोरियल के हिसाब से संचालित होता है और सनबीम लहरतारा और सनबीम वरूणा का कैट जी से। इसी तरह कई अन्य शिक्षण संस्थानों ने कई अन्य कोचिंग संस्थानों से समन्वय स्थापित किया है। सनबीम एजुकेशन ग्रुप के चेयरमेन दीपक मधोक मानते हैं कि यह सिन्क्रोनाइजेशन छात्रों के हित को ध्यान में रखकर किया गया है। अगर कोचिंग में फिजिक्स में साउंड पढ़ाया जा रहा है तो विद्यालय में साउंड ही पढ़ाया जायेगा। इससे बच्चों को सेल्फ स्टडी का समय मिल जाता है। बच्चे में कोई भ्रम न रहता है। श्री मधोक ने बताया कि सभी बच्चों को कोचिंग में जाने की अनुमति नहीं है। सिर्फ हाईस्कूल में 90 प्रतिशत से उपर आने वाले एलीट बच्चों को ही भेजा जाता है। पिछली बार ऐसे 140 बच्चों को कोचिंग में भेजा गया। जेआरएस टयूटोरियल्स के निदेशक एके झा मानते हैं कि यह समय की मांग है। आईआईटी और मेडिकल में सिर्फ दो चांस सीमित कर देने से 11वीं और 12वीं के बच्चों पर दबाव बढ़ गया। अगर स्कूल उन्हें कोचिंग में जाने की रियायत नहीं देगा तो मुश्किल हो जायगी। अब इसका वास्तविक असर प्रवेश परीक्षाओं का रिजल्ट आने के बाद ही पता चलेगा।