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प्रेस को मिलें विशेष अधिकार

प्रेस को लोकतांत्रिक देशों में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है, लेकिन वर्तमान समय में पत्रकारों की स्थिति बड़ी दयनीय है। आये दिन पत्रकारों पर प्राणघातक हमले हो रहे हैं लेकिन सरकार की ओर से कोई...

प्रेस को मिलें विशेष अधिकार
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 05 Apr 2010 07:27 PM
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प्रेस को लोकतांत्रिक देशों में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है, लेकिन वर्तमान समय में पत्रकारों की स्थिति बड़ी दयनीय है। आये दिन पत्रकारों पर प्राणघातक हमले हो रहे हैं लेकिन सरकार की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती है। अभी तक प्रेस को किसी भी प्रकार का विशेष अधिकार प्राप्त नहीं है। भारतीय नागरिकों को अनुच्छेद 19 (1) के अन्तर्गत प्राप्त ‘वाक एवं अभिव्यक्ति’ की स्वतंत्रता के साथ ही प्रेस की स्वतंत्रता को सम्मिलित किया गया है। प्रेस जो जनता की हितैषी के रूप में जानी जाती है उसके लिए संविधान में कोई विशेष प्रावधान होना चाहिए, जिससे आये दिन पत्रकारों पर हो रहे हमलों को रोका जा सके और जनता की आवाज को बुलंद किया जा सके।
नीरज नेगी, पौड़ी गढ़वाल

राजनीति से दूर रखें, मां गंगा को
केन्द्र और राज्य सरकार में गंगा संरक्षण का मुद्दा हथियाने और अपने को गंगा का सच्च हितैषी सिद्ध करने की ओछी राजनीति शुरू हो गयी है। राज्य सरकार का कहना है कि केन्द्र सरकार ने जिन प्रस्तावित परियोजनाओं का स्थगन आदेश दिया है, उसे राज्य ने पहले ही स्थगित कर दिया था। गंगा की अविरलता-निर्मलता को बनाये रखने के लिए पल-पल बदलते राज्य मुखिया के बयानों से समाचार पत्र अटे पड़े हैं। गंगा को राजनीति से दूर रख कर निस्वार्थ भाव से सेवा की जरूरत है तभी मोक्षदायिनी मां गंगा निर्मल-अविरल रह सकेगी।
अजय कुमार, उत्तरकाशी

प्राकृतिक आपदाओं से जूझता उत्तराखंड
उत्तराखंड प्राकृतिक आपदाओं से हमेशा जूझता आया है बावजूद इसके यहां पर कोई भी ऐसी व्यवस्था नहीं है जिससे कि प्राकृतिक आपदाओं से बचा जा सके। हालांकि आपदा के बाद प्रयास होते हैं लेकिन पहले से आपदा से निबटने के लिए कोई प्रयास नहीं हैं जिसका खामियाजा लोगों को अपनी जान गंवाकर भुगतना पड़ता है। हाल ही में धारी देवी के पास अलकनंदा नदी में गढ़वाल विश्वविद्यालय के 5 छात्रों की डूबकर मौत हो गयी जोकि बहुत ही दुखद और दर्दनाक है। अगर समय रहते वहां पर गोताखोर व तैराक पुलिस होती तो छात्रों की जान बचायी जा सकती थी। वहां मौजूद छात्रों ने जब पुलिस को 100 नम्बर पर बात करने की कोशिश की तो कोई जवाब न मिलना भी प्रशासनिक कार्यो की पोल खोलता है। हालांकि घटना घटने के बाद अफसोस जताने व शोक जताने के लिए सभी एकत्र होते हैं। ऐसी घटनाएं न घटे इसके लिए हमें पहले से ही सतर्क रहना चाहिए। यह बात केवल एक घटना पर लागू नहीं होती, कई बार ऐसी दुखद घटनाएं होती हैं लेकिन फिर भी इनको रोकने के लिए पहले से ही तैयार न रहना हमारी प्रशासनिक कमजोरी दर्शाती है, जिस पर सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए।
चन्द्रशेखर पैन्यूली, श्रीनगर गढ़वाल

मानवाधिकार संगठनों की राष्ट्र निर्माण में भूमिका
मानव अधिकार मूलत: वे अधिकार हैं जो मानव को उसे मानव होने के कारण मिलते हैं, परन्तु मानवाधिकार संगठनों ने इसके सही अर्थ को समझने से परहेज किया है। दरअसल हाल ही के दिनों में मानवाधिकार संगठनों ने केन्द्र सरकार द्वारा नक्सलियों के विरुद्ध चलाये जा रहे ग्रीन-हन्ट में मारे जाने वाले नक्सलियों के मानवाधिकार के उल्लघंन के परिप्रेक्ष्य में अपनी नाराजगी दिखायी। ध्यान देने की बात यह है कि ये संगठन उन व्यक्तियों के मानवाधिकार की बात क्यों करते हैं जो मानव हैं ही नहीं। मासूम व्यक्तियों की हत्या, बम-विस्फोट आदि करने वलों के लिए मानवाधिकार की बात करना कहां तक जायज है ? इस ढंग के बर्ताव से निश्चित रूप से राष्ट्र विरोधी ताकतों को बल मिलेगा। किसी व्यक्ति के अधिकार, राष्ट्र के हित तथा उसकी एकता व अखण्डता से बड़े नहीं हो सकते। मानव अधिकार मूलत: एक सभ्य मानव के अधिकार हैं जो देश तथा अन्य कानूनों में विश्वास रखते हैं।
राहुल त्रिपाठी, देहरादून

वाह री कांग्रेस
देश का नेतृत्व कर रही कांग्रेस बाकी सभी कार्यो को छोड़कर इस बात को सुनियोजित करने में लगी है कि अमिताभ बच्चान को कैसे अवांछनीय घोषित किया जाए। यह सही है कि अमिताभ गुजरात के ब्रांड एम्बेसडर बन गए हैं लेकिन क्या यह कोई गुनाह है ? क्या गुजरात भारत का हिस्सा नहीं है ? हालांकि अमिताभ यह स्पष्ट कर चुके हैं कि वे गुजरात के एम्बेसडर हैं, नरेन्द्र मोदी के नहीं। फिर भी कांग्रेस को उनका फैसला रास नहीं आ रहा है। चूंकि अशोक चव्हाण व कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने कहा है कि सरकारी कार्यक्रमों में अमिताभ की मौजूदगी मंजूर नहीं है, इसलिए ये कहा जा सकता है कि बिग बी को अपमानित करने का फैसला सरकार का नीतिगत निर्णय है। दिल्ली में आयोजित अर्थ आवर शो के एम्बेसडर अभिषेक बच्चान के पोस्टर हटाते समय कांग्रेस के नेताओं को लाज नहीं आई कि कम से कम ग्लोबल वार्मिग जैसे वैश्विक मुद्दे पर तो संकीर्णता न दिखाएं। क्या अब कांग्रेस अमिताभ बच्चान की तरह रतन टाटा, मुकेश अंबानी आदि को भी अवांछित करार देगी ? क्योंकि ये दोनों न केवल गुजरात में भारी निवेश कर रहे हैं बल्कि मोदी की तारीफ भी कर रहे हैं।
प्रेम राठौर, डोईवाला, देहरादून

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