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नए सपने बुन रही हैं झारखंड की लड़कियां

ललिता कुमारी रांची के एक कला संस्थान में कार्यरत हैं और साथ ही फाइन आर्ट्स भी सीख रही हैं। सुषमा नाम की एक अन्य युवती भी मजबूत इरादों के साथ दिल्ली स्थित झारखंड भवन की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाल रही...

नए सपने बुन रही हैं झारखंड की लड़कियां
एजेंसीMon, 05 Apr 2010 11:06 AM
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ललिता कुमारी रांची के एक कला संस्थान में कार्यरत हैं और साथ ही फाइन आर्ट्स भी सीख रही हैं। सुषमा नाम की एक अन्य युवती भी मजबूत इरादों के साथ दिल्ली स्थित झारखंड भवन की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। ये लड़कियां झारखंड की उस महिला युवा पीढ़ी की नुमाइंदगी करती हैं, जिसकी सोच ही नहीं बल्कि जीने का मकसद भी बदल गया है और जो हर हाल में अपने सपनों को साकार करने पर आमादा हैं।

रांची के चान्हो गांव की रहने वाली सुषमा अपने परिवार का पेट भरने के लिए पहले मुंबई काम करने गई थीं जहां उसे मारापीटा और मानसिक तौर पर प्रताडित किया जाता था। इस वजह से उसे वापस आना पड़ा। कुछ ऐसी ही कहानी ललिता की भी है।

अपने परिवार का पेट भरने के लिए काम की तलाश में झारखंड से बाहर जाने और वहां प्रताडित होने वाली युवतियों की मदद के लिए स्वयंसेवी संगठन 'ऐक्शन अगेंस्ट ट्रैफिकिंग एंड सेक्सुअल एक्सप्लॉयटेशन ऑफ  चिल्ड्रेन' (एटीएसईसी) आगे आया है। उसकी एक परियोजना के तहत ऐसी लड़कियों का पुनर्वास किया जा रहा है।

एटीएसईसी के तहत काम कर रही संस्था भारतीय किसान संघ के संयोजक संजय मिश्रा बताते हैं कि ऐसी लड़कियों को सुरक्षा गार्ड और हाउसकीपिंग का प्रशिक्षण दिया जाता है। उन्होंने आईएएनएस से कहा कि इस परियोजना को संयुक्त राष्ट्र तथा झारखंड पुलिस से अपेक्षित सहयोग मिल रहा है।

ललिता का कहना है कि उन्हें हाउसकीपिंग का तीन माह का प्रशिक्षण दिया गया है। वह कहती हैं कि वह पहले केवल घर में काम के लिए सोचती थीं परंतु अब वे अच्छी जिन्दगी की सोच रही हैं। वह अपना भविष्य फाइन आर्ट्स में बनाना चाहती हैं।

मिश्र कहते हैं कि 150 ऐसी लड़कियों को प्रशिक्षित कर बिरसा मुंडा स्टेडियम में चौकसी के लिए लगाया गया है तो कई लड़कियों को रांची के खेलगांव की सुरक्षा में लगाया गया है। वह बताते हैं आर्सेलर-मित्तल ने जहां सुरक्षा गार्डों को प्रशिक्षण देने में सहयोग दिया वहीं और कई प्रायोजक कई तरह के प्रशिक्षण दिलवाने के लिए तैयार हैं।

भारतीय किसान संघ द्वारा रांची के बीजुपाड़ा में आश्रय स्थल का निर्माण करवाया गया है जहां ऐसी लड़कियों को रखा जाता है। यहां कई ऐसी लड़कियां हैं जिन्हें अपने मां-बाप का भी पता नहीं। इस आश्रय स्थल में रहने वाली बीना कहती हैं उसे बचपन में ही दिल्ली भेज दिया गया था और बाद में वह पुलिस की मदद से यहां पहुंची।

इधर, झारखंड के उद्योग विभाग की निदेशक एवं भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी आराधना पटनायक बताती हैं कि देश में ऐसी बहुत सी लड़कियां हैं और भारतीय किसान संघ की यह पहल अभूतपूर्व है।

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