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बेशकीमती खबरें और खबर की कीमत

द टाइम्स (लंदन) लंबे समय से नई तकनीक का अगुआ रहा है। यह अखबार 1785 में शुरू हुआ था। तब उसका नाम था यूनिवर्सल डेली रजिस्टर। मकसद था नई प्रिंटिंग तकनीक का इस्तेमाल करते हुए यह दिखाना कि नई खोज हमारी...

बेशकीमती खबरें और खबर की कीमत
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 03 Apr 2010 11:47 PM
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द टाइम्स (लंदन) लंबे समय से नई तकनीक का अगुआ रहा है। यह अखबार 1785 में शुरू हुआ था। तब उसका नाम था यूनिवर्सल डेली रजिस्टर। मकसद था नई प्रिंटिंग तकनीक का इस्तेमाल करते हुए यह दिखाना कि नई खोज हमारी जिंदगी में क्या कर सकती है? उसी को मद्देनजर रखते हुए हम एक पहल करने जा रहे हैं।
हम पहले राष्ट्रीय अखबार होंगे, जो अपनी ऑनलाइन सामग्री के लिए कीमत लेंगे। उन लोगों से जो उसके रोजाना के खरीदार नहीं हैं। दरअसल, द टाइम्स पहल करने की अपनी परंपरा को ही आगे बढ़ा रहा है।
 
एक अखबार के लिए पत्रकारिता ही सब कुछ होती है। इसीलिए हम अपने संवाददाताओं को प्राकृतिक आपदा से तबाह हैती में भेजते हैं। दूसरी ओर मानवीय त्रासदियों के लिए श्रीलंका वगैरह भेजते हैं। अपनी खबरों के लिए हम कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं।

किसी भी दैनिक अखबार की तुलना में हम ज्यादा कारोबारी खबरें देते हैं। उसीके साथ ही हम किसी से भी ज्यादा राजनीति की खबरें अपने पाठकों को देते हैं। हमारे संवाददाता हर जगह होते हैं। हम पेंटागन की खबर रखते हैं। इंग्लैंड के पूर्व कप्तान क्रिकेट पर कॉलम लिखते हैं। हमारे यहां पंछियों तक पर कॉलम होते हैं।
 
एक आजाद और इस किस्म की उच्च स्तरीय पत्रकारिता बेशकीमती होती है। इधर हम कुछ ऐसा करना चाहते हैं जो पहले कभी नहीं हुआ है। हम मानते हैं कि इस पहल में जोखिम है। लेकिन यह पहल न करना तो और भी बड़ा जोखिम होता। टाइम्स के पाठक हमसे गहराई और ऊंचाई दोनों चाहते हैं। लेकिन उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए हमें एक ठोस आर्थिक जमीन की जरूरत है।

हम मानते हैं कि उस सबके लिए छोटी सी कीमत चाहना कोई गलत बात नहीं है। हम महज दो पाउंड मांग रहे हैं। एक सप्ताह के लिए द टाइम्स और संडे टाइम्स की ऑनलाइन कीमत। अपने अखबार के पाठकों के लिए तो इस ऑनलाइन सुविधा की कोई कीमत नहीं होगी। और सिर्फ इसी छोटी सी रकम से हमारी बुनियाद ठोस बनी रहेगी।
 
खबरों का कारोबार लंबे समय से ऊपर की ओर नहीं जा रहा है। लेकिन हम यह भी मानते हैं कि अखबारों के लिए इंटरनेट खतरे के तौर पर नहीं आना चाहिए। अब हमारे सामने एक बेहतरीन मौका है। अपने में बदलाव लाने का इससे बेहतर समय नहीं है। हमें अपने को आगे ले जाने का यह मौका गंवाना नहीं चाहिए।
 
अखबार को ऑनलाइन करने से हम अपने फोटोग्राफ को नए और बेहतर ढंग से दिखा सकते हैं। वीडियो का इस्तेमाल कर हम अपनी खबर को नए आयाम दे सकते हैं। हम उससे दुनियाभर के पाठकों तक पहुंच सकते हैं। उन्हें समाचार और विचार दोनों बहुत जल्द पहुंचा सकते हैं। इससे भी बड़ी बात है कि इंटरनेट के जरिए हमारे पाठकों के साथ रिश्ते और नजदीक हो सकते हैं। फिर हमारे पाठक पत्रकारों के साथ संवाद कर सकते हैं। हमारे लेखकों के साथ बहस कर सकते हैं। और द टाइम्स के जरिए अपना मंच बना सकते हैं।
 
अपनी सामग्री की कीमत चाहने के पीछे हमारा मकसद डिजिटल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए अपनी खबरों को जबर्दस्त विविधता देना है। उसके लिए हम अपनी नई वेबसाइट जल्द ही शुरू करने वाले हैं। लेकिन उस बदलाव के साथ ही हम यह भरोसा दिलाना चाहते हैं कि अपने मूल्यों, ईमानदारी और स्तर के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे। कुछ लोग सवाल उठा सकते हैं कि ऐसा करना क्या इंटरनेट की मूल भावना के खिलाफ नहीं होगा? लेकिन वह तो तर्क नहीं कुतर्क करना होगा।

यह सही है कि इंटरनेट एक बड़ा खुला बाजार है। उसके आलोचक नेट को समझ ही नहीं पाए हैं। उसके शुरुआती दिनों में ऑनलाइन होने का मतलब अखबार की बिक्री को बढ़ाने का कोई तरीका रहा होगा। लेकिन इधर इंटरनेट ने अपने को जबर्दस्त ढंग से बढ़ाया है। वह एक गजब का मंच है अखबार के लिए। कम से कम हम तो ऐसा ही मानते हैं।

कुछ लोग कह सकते हैं कि इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले खबरों वगैरह के लिए कीमत देने को तैयार नहीं होंगे। लेकिन हम मानते हैं कि हमारे आज और आने वाले कल के पाठक उसकी कीमत देने को तैयार जरूर हो जाएंगे। हम अखबार की दुनिया को बदलना चाहते हैं। लेकिन हम एक मायने में नहीं बदलेंगे। हम रहेंगे आपके लिए वही द टाइम्स।

(इंटरनेट पर खबरों की कीमत लेने की वकालत करता द टाइम्स का संपादकीय)

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