तीसरा महीना भी सूखा-सूखा
फिल्में तो मार्च में भी ढेरों आईं, लेकिन टिकट-खिड़की पर कोई भी दम नहीं दिखा पाई। कुछ असर आई पी एल का रहा तो दूसरी तरफ फिल्में आईं भी हल्की ही। सो साल का यह तीसरा महीना भी सूखा-सूखा ही बीत गया। मार्च...
फिल्में तो मार्च में भी ढेरों आईं, लेकिन टिकट-खिड़की पर कोई भी दम नहीं दिखा पाई। कुछ असर आई पी एल का रहा तो दूसरी तरफ फिल्में आईं भी हल्की ही। सो साल का यह तीसरा महीना भी सूखा-सूखा ही बीत गया। मार्च में आई प्रमुख फिल्मों के बारे पर दीपक दुआ की नजर।
अतिथि तुम कब जाओगे
निर्देशक अश्विनी धीर ने कहना तो बहुत कुछ चाहा, मगर दमदार तरीके से कह नहीं पाए। हल्के-फुल्के मिजाज की इस फिल्म को अच्छी शुरुआत के बाद ढीला रिस्पांस मिलने लगा। दिल्ली में पहले सप्ताह में किया महज 34 फीसदी बिजनेस। जयपुर में 27, देहरादून में 46, इलाहाबाद में 32, नोएडा में 50, गुड़गांव में 38 तो फरीदाबाद में 35 प्रतिशत की हुई कलैक्शन। पहले सप्ताह में देश भर का औसत रहा करीब दो लाख 65 हजार रुपए प्रति सिनेमा, जो दूसरे हफ्ते में गिर कर एक लाख 78 हजार हो गया।
रोक
कमजोर पटकथा वाली इस हॉरर फिल्म ने पहले हफ्ते में दिल्ली में 16, मुंबई में 24, नोएडा में 15 तो अहमदाबाद में सिर्फ 8 प्रतिशत दर्शक ही बटोरे। प्रति थिएटर हुई सिर्फ 34 हजार रुपए की औसत कमाई।
थैंक्स मां
दर्शकों ने जिस फिल्म का नाम तक न सुना हो, उसे भला वे देखने कैसे जाते। बुरी तरह से धुल गई यह फिल्म।
हैलो जिंदगी
यह फिल्म भी कब आई, कब गई, कहां गई, कुछ पता ही नहीं चला।
मौत के फरिश्ते
हॉलीवुड की ‘लीजन’ से डब होकर आई इस फिल्म के साथ भी काफी बुरी बीती।
राइट या रॉन्ग
कुछ तो इसे प्रचार की कमी ने मारा, कुछ आई पी एल ने तो कुछ यह फिल्म खुद ही हल्की थी। सनी देयोल, इरफान, कोंकणा की उम्दा एक्टिंग भी काम न आई। न ज्यादा दर्शक मिले और न ही कामयाबी। पहले सप्ताह में दिल्ली में 29, मुरादाबाद में 20, कानपुर में 28, गाजियाबाद में 15, मेरठ में 18, जयपुर में 21, उदयपुर में 15, कोटा में 23, इलाहाबाद में 20 फीसदी दर्शकों ने इसे देखा। प्रति सिनेमाघर रही 59 हजार की औसत कलैक्शन।
हाईड एंड सीक
थ्रिलर के नाम पर बचकानापन परोसने वाली इस फिल्म को कुछ ही दर्शक नसीब हुए। पहले सप्ताह का कलैक्शन दिल्ली में 18, मुरादाबाद में 8, कानपुर में 14, गाजियाबाद में 12 प्रतिशत रहा। प्रति सिनेमा सिर्फ 20 हजार की शर्मनाक उगाही ही कर पाई।
न घर के न घाट के
जैसा नाम, वैसा ही हश्र हुआ इस फिल्म का। प्रचार और सितारों की कमी ने इस मारा। पहले सप्ताह में दिल्ली में 28 प्रतिशत दर्शकों का प्यार ही पा सकी। औसत रहा 26 हजार रुपए प्रति सिनेमाघर।
रोड
अलग स्वाद का सिनेमा और वैसा ही बिजनेस। मल्टीप्लेक्स के दर्शकों ने सराहा। पहले सप्ताह में मुंबई में 17, दिल्ली में 18, जयपुर में 15, इंदौर में 11, नोएडा में 26, फरीदाबाद में 11 फीसदी का कारोबार कर इस फिल्म में हर प्रिंट पर 73 हजार रुपए आए।
हम तुम और घोस्ट
अरशद वारसी निर्माता बन कर लाए एक अच्छी फिल्म, मगर ज्यादा कुछ न कर पाई यह। हां, जिसने देखी, तारीफ जरूर कर गया।
स्वाहा
कथित ‘बाबाओं’ के कारनामों का उजागर करती इस फिल्म पर रिलीज होते ही किसी ‘बाबा’ की गुजारिश पर कोर्ट ने बैन लगा दिया। बिजनेस तो क्या करती, लेने के देने पड़ गए।
ट्रंप कार्ड
यह कार्ड किसी काम नहीं आया। बहुत बुरी गत बनी इस फिल्म की।
यूनिवर्सल सोल्जर-3
इस डब फिल्म को थोड़ा प्यार मिल ही गया। 44 हजार रुपए की औसत कलैक्शन प्रति थिएटर से करके यह घाटे में नहीं रही।
लव सैक्स और धोखा
दिवाकर बैनर्जी लाए नए किस्म की फिल्म। बड़े शहरों में सराही गई। कम बजट के चलते कमा-खा गई।
शापित
हॉरर की ज्यादा मात्र न होने के चलते जल्द ही किनारे कर दी गई इस फिल्म को ज्यादा अच्छा रिस्पांस नहीं मिल सका। 25-35 प्रतिशत के बीच ही सिमटा रहा इसका कारोबार।
लाहौर
जितनी तारीफ मिली, उतना बिजनेस नहीं कर पाई यह फिल्म। 15-20 फीसदी दर्शक ही खींच सकी यह।
ईडियट बॉक्स
लोगों तक नाम ही नहीं पहुंच पाया, यह फिल्म क्या पहुंचती। पिट-पिटा कर किनारे हो गई यह।
मित्तल वर्सेज मित्तल
मुद्दा तो बढ़िया उठाया इस फिल्म ने, मगर दर्शक नहीं खींच पाई। प्रचार की कमी ने भी इसे नुकसान पहुंचाया।
प्रेम का गेम
हल्की फिल्म और हल्का ही कारोबार। यह रिलीज हो पाई, यही गनीमत रही।
माई फ्रैंड गणेशा-3
बच्चों को तो क्या, बड़ों को भी इसके आने का पता नहीं चला तो भला इसके जाने का पता कैसे चलता। वैसे भी इस तरह की फिल्में होम वीडियो पर देखी जाती हैं।
वैल डन अब्बा
श्याम बेनेगल ने किया व्यवस्था पर व्यंग्य। प्रबुद्घ दर्शकों को ही भाया उनका यह प्रयास।