पलायन पर सुनाई दी आंदोलन की गूंज
राज्य गठन के एक दशक गुजरने के बाद भी राज्य आंदोलन का असल मकसद अधूरा है। इस एक दशक में न सिर्फ पलायन तेजी से बढ़ा, बल्कि बेरोजगारों की फौज प्रदेश में खड़ी हो रही है। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच के...
राज्य गठन के एक दशक गुजरने के बाद भी राज्य आंदोलन का असल मकसद अधूरा है। इस एक दशक में न सिर्फ पलायन तेजी से बढ़ा, बल्कि बेरोजगारों की फौज प्रदेश में खड़ी हो रही है। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच के प्रथम राज्य स्तरीय सम्मेलन के समापन अवसर पर प्रदेश के खाली होते गांवों की टीस दूर दराज से आए लोगों के मुरझाए चेहरे पर साफ देखने को मिली। सम्मेलन में अधिकांश वक्ता विकास के नाम पर एक नये आंदोलन को तैयार रहने का आह्वान करते दिखे।
सम्मेलन के समापन अवसर पर धारचूला, पुरोला, जोशीमठ, अल्मोड़ा, चंपावत समेत प्रदेश के हर कोने से आई महिलाओं में दूसरे दिन भी जोश कायम रहा। सुबह दस बजे लेकर देर शाम तक वृद्ध, जवान सभी न सिर्फ डटे रहे, बल्कि प्रदेश के पटरी से उतर चुके सिस्टम पर जमकर गरजे भी।
इस गरज को विधानसभा अध्यक्ष हरबंस कपूर ने लोगों का जायज गुस्सा करार दिया। उन्होंने कहा कि आज समय है आंदोलन के मुख्य बिंदुओं पर विचार किए जाने की। इससे पूर्व आंदोलनकारी डा. सुनील कैंतुरा ने कहा कि राज्य की अभी तक की सभी सरकारों ने ऐसी नीतियां बनाई हैं, जिनसे प्रदेश का बाशिंदा ही यहां से बाहर होने को मजबूर है।
नैनीताल से आए छात्र नेता जगमोहन खाती ने कहा कि पलायन प्रदेश के लिए एक नासूर बन चुका है। गजब ये है कि राज्य के उद्योगों में राज्य के लोगों के लिए ही जगह नहीं है। पौड़ी से आई आंदोलनकारी नेत्री विजयलक्ष्मी गुसाईं ने कहा कि राज्य सीएम प्रदेश बन कर रह गया है। एक दशक में पांच मुख्यमंत्री इसका उदाहरण है। राजेंद्र शाह ने कहा कि पहाड़ से पलायन रोकने के साथ ही बेरोजगारी दूर करनी होगी।
द्वारिका बिष्ट ने इसके लिए प्रदेश के लोगों से एक नये आंदोलन को तैयार रहने का आह्वान किया। आंदोलनकारियों के करारे प्रहार के आगे नेताओं को भी मजबूरन उनकी हां में हां मिलाना पड़ा। सम्मेलन को पूर्व कैबिनेट मंत्री हीरा सिंह बिष्ट, काशी सिंह ऐरी, विधायक दिनेश अग्रवाल, ओमगोपाल रावत, सुशीला बलूनी, रविंद्र जुगरान, अशोक वर्मा, ऊषा नेगी, विवेकानंद खंडूडी, वेद प्रकाश शर्मा, कैलाश तिवारी आदि ने भी संबोधित किया।