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आनुवांशिक बीमारियों से बचाएगी जीन मैपिंग

हाल में जीन मैपिंग के क्षेत्र में एक नई सफलता में अमेरिका के ह्यूस्टन के एक शोधकर्ता जेम्स लप्सकी ने वर्षो की मेहनत के बाद आनुवांशिक बीमारियों वाले परिवारों के और डीएनए के विरोधी हिस्सों के मानव...

आनुवांशिक बीमारियों से बचाएगी जीन मैपिंग
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 14 Mar 2010 09:37 PM
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हाल में जीन मैपिंग के क्षेत्र में एक नई सफलता में अमेरिका के ह्यूस्टन के एक शोधकर्ता जेम्स लप्सकी ने वर्षो की मेहनत के बाद आनुवांशिक बीमारियों वाले परिवारों के और डीएनए के विरोधी हिस्सों के मानव जीनोम ढांचे को व्यवस्थित करने संबंधी सफलता प्राप्त की है।

खास बात ये है कि आनुवांशिक बीमारियों का जेनेटिक कारण पता लगाने के लिए लप्सकी वर्षो से अपने परिवार पर ही यह शोध कर रहे थे और वे स्वयं शारकट-मेरी-टुथ सिंड्रोम नामक बीमारी से ग्रसित हैं जिसमें रीढ़ से लेकर बाहों, टांगों और पैरों की नसें प्रभावित होती हैं। लप्सकी इसके लिए कई वर्षो से अपने दादा-दादी, माता-पिता और भाई-बहनों से रक्त के नमूने ले रहे थे।

खास बात ये है कि जब वे सफलता के करीब थे, उस दौरान इस शोध को नेशनल इंस्टीटय़ूट्स ऑफ हैल्थ (एनआईएच) ने आर्थिक अनुदान के लिए खासा चुनौतीपूर्ण और लगभग नुकसानदेह माना था।

लेकिन गत सितंबर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा 787 अरब डॉलर के वित्तीय सहायता पैकेज में से 5 अरब डॉलर नेशनल इंस्टीटय़ूट्स ऑफ हैल्थ को दिए थे। उसी सहायता से इस शोध को आधार मिला था जिसमें स्वयं शोधकर्ता रोगियों में से एक था। राष्ट्रपति ओबामा द्वारा एनआईएच इंस्टीटय़ूट को दी गई वित्तीय सहायता में से पांच लाख डॉलर मेडिकल कॉलेज ने लप्सकी को दिए थे।

इस कार्य के लिए लप्सकी की टीम ने उनके और उनके परिवार के तीन सदस्यों के समूचे जीन कोड को पढ़ने के लिए कैलीफॉर्निया स्थित लाइफ टेक्नोलॉजीज की मदद ली थी। लप्सकी के परिवार के इन तीनों सदस्यों को शारकट-मेरी-टुथ सिंड्रोम की शिकायत थी, जबकि उनके माता-पिता और चार अन्य रिश्तेदारों को यह तकलीफ नहीं थी, इस प्रक्रिया में उनकी भी जीन मैपिंग भी की गई थी।

शोध को मिली सफलता के बाद अब शोधकर्ता 40 ऐसे जीन्स के बारे में जानते हैं जिसके कारण शारकट-मेरी-टुथ सिंड्रोम होता है। लेकिन हर अलग परिवार में इसका कारण एक अलग जीन बनता है। शोधकर्ताओं के अनुसार इस सीक्वेंसिंग से एसएच3टीसी2 नामक जीन के बारे में पता चला है। कुछ अन्य समूह ऐसी दवा पर कार्य कर रहे हैं जो इस जीन पर असर डालती है।

इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने ऐसे लोगों को भी खोज निकाला है जिन्हें एक खराब जीन आनुवांशिक तौर पर मिला है, को कार्पल टनल सिंड्रोम होने का अंदेशा रहता है जिसमें कलाई में एक नस पर असर पड़ता है, लेकिन शोधकर्ता कहते हैं अब जबकि मानव जीनोम सीक्वेंसिंग संबंधी खोज की कीमत कम होती जा रही है, तो उनकी राय में इस समूची प्रक्रिया में अधिक पैसा नहीं लगेगा।

एक अन्य स्टडी में सिएटल स्थित इंस्टीटय़ूट ऑफ बायोलॉजी के जेयर्ड रोक्ख और उनके सहयोगियों ने एक परिवार के उन चार सदस्यों की जीनोम रचनावली का अध्ययन किया जो मिलर सिंड्रोम बीमारी से ग्रसित थे जिसमें चेहरा विकृत हो जाता है। यह परिवार प्राइमरी सिलियरी डिकिन्सिया नाम एक फेफड़ों की बीमारी से भी ग्रसित थे जिसमें कोशिकाओं में सिलिया नामक एक इकाई ठीक से काम नहीं करती है।

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