'भारतीय शास्त्रीय संगीत का मैं पथप्रदर्शन नहीं हूं'
वह बेशक अपने समय के बेहतरीन फनकार हैं, लेकिन तबला वादक जाकिर हुसैन को खुद को भारतीय शास्त्रीय संगीत के पथप्रदर्शक के तौर पर देखा जाना पसंद नहीं...
वह बेशक अपने समय के बेहतरीन फनकार हैं, लेकिन तबला वादक जाकिर हुसैन को खुद को भारतीय शास्त्रीय संगीत के पथप्रदर्शक के तौर पर देखा जाना पसंद नहीं है।
हुसैन ने बातचीत में कहा कि जहां तक भारतीय संगीत का संबंध है, मैं खुद को इसका पथप्रदर्शक कहलाना पसंद नहीं करता। मीडिया ही ऐसा मानता है जैसे एक जमाने में पंडित रविशंकर भारतीय शास्त्रीय संगीत का चेहरा थे। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उस वक्त भारत में कई और बढ़िया सितार वादक थे, लेकिन हर कोई सिर्फ उनकी बात करता था और पंडित निखिल बनर्जी या उस्ताद अली अनवर खां जैसे अन्य सितार वादकों के बारे में नहीं।
संगीत जाकिर की रगों में दौड़ता है क्योंकि उनके पिता अल्ला रक्खा खां भी एक महान तबला वादक थे। जाकिर मात्र 12 साल की उम्र से कार्यक्रम पेश कर रहे हैं। मुंबई में स्कूली शिक्षा और स्नातक की पढ़ाई करने के बाद वह 1970 में अमेरिका चले गए और इस तरह उनके अंतरराष्ट्रीय करियर का आरंभ हुआ।
61 वर्षीय इस महान कलाकार ने कहा कि उसी तरह से अब लोग मेरे बारे में बात कर रहे हैं लेकिन उन्हें इस बात का एहसास नहीं है कि आसपास इतने ही अच्छे और तबला वादक भी हैं। मैं खुद को झंडाबरदार या उसके जैसा कुछ और नहीं कहूगा। मैं सिर्फ उन लोगों में से एक हूं, जो कला के साधक हैं, शायद औरों से कुछ ज्यादा।