शरीर के भीतर का कोई अंग या हिस्सा, जब अपनी जगह से खिसक कर कहीं दूसरी जगह चला जाता है तो उसे अंग उतरना यानी प्रोलैप्स कहते हैं। सामान्यतया यह रोग श्रोणि प्रदेश के अंगों में होता है। जैसे-मलाशय खिसक कर गुदाद्वार से बाहर निकलने लगे, जिससे मल त्यागते समय कमर में दर्द शुरू हो जाये या गुदाद्वार में जलन व पीड़ा होने लगे या महिलाओं का गर्भाशय अपने स्थान से खिसक कर योनि मार्ग में आ जाए या योनि मुख से बाहर निकल जाये।
इस समस्या का मूल कारण अंगों का कमजोर पड़ना है। गर्भावस्था के दौरान अधिक जोर पड़ने या कब्जादि में बार-बार नीचे की ओर जोर लगाने आदि के कारण भी ऐसा होता है। आरामतलबी, व्यायाम आदि न करना, अनुपयुक्त भोजन तथा अक्रियाशील जीवनशैली इस समस्या का मूल कारण है।
आमतौर पर सजर्री ही इसका एकमात्र इलाज मानी जाती है, किन्तु यदि बहुत अधिक गंभीर स्थिति नहीं है तो योग के अभ्यास से समस्या का समाधान संभव है। इसके लिए कुछ यौगिक क्रियाएं लाभकारी होती हैं।
आसन
कंधरासन, वज्रासन, पवनमुक्तासन, नौकासन (सीधा लेटकर), उत्तानपादासन, मार्जारि आसन, शलभ आसन, भुजंगासन, जानुशिरासन, पश्चिमोत्तानासन, विपरीतकरणी मुद्रा तथा सुप्त वज्रासन आदि का अपनी क्षमतानुसार अभ्यास करने से रोग बहुत जल्द दूर होता है।
कंधरासन की अभ्यास विधि
पीठ के बल जमीन पर लेट जाएं। दोनों पैर आपस में जोड़े रखें तथा दोनों हाथ शरीर के बगल में जमीन पर रखें। दोनों पैरों को घुटनों से मोड़ें। पंजों के बीच में एक फुट का अन्तर रखें। एड़ियों को अधिक से अधिक नितम्ब की ओर करें। अब नितम्ब को जमीन से यथासम्भव ऊपर उठाएं। हाथों को जमीन पर ही रखना है। इस स्थिति में आरामदायक अवधि तक रुकें। इसके बाद वापस नितम्ब को जमीन पर रखें। इसे प्रारम्भ में तीन बार करें। धीरे-धीरे इसकी आवृत्ति बढ़ाकर दस बार करें।
बंध
प्रोलैप्स की अधिकतर शिकायतें उड्डियान एवं मूल बंध के नियमित अभ्यास से दूर हो जाती हैं।
उड्डियन बंध की अभ्यास विधि
ध्यान के किसी भी आसन पद्मासन, सिद्धासन या सुखासन में बैठ जाएं। रीढ़, गला व सिर को सीधा कर लें। अब मुख द्वारा एक गहरी श्वास बाहर निकालें। श्वास को बाहर रोककर (बहिकरुम्भक) रखते हुए हाथ को कुहनी से सीधा रखते हुए तानें। इसके बाद पेट को अन्दर की तरफ अधिकतम पिचकाएं। इस स्थिति में श्वास बाहर रखते हुए आरामदायक समय तक रुकें। किसी भी प्रकार की असुविधा होने के पहले सर्वप्रथम पेट को सामान्य करे, फिर हाथ को सामान्य करें। अन्त में श्वास अन्दर लें। प्रारम्भ में उसकी तीन आवृत्तियों का अभ्यास करें। धीरे-धीरे इसे बढ़ाकर 5 तक कर लें।
सावधानी
उच्च रक्तचाप तथा हृदय रोगी इसका अभ्यास न करें।
इस समस्या से ग्रस्त लोग जब भी जमीन पर बैठें, पैर को आगे की ओर फैलाकर बैठें।
अश्विनी मुद्रा एवं बज्रोली मुद्रा का चलते-फिरते अभ्यास करें।
भारी वजन न उठाएं।
कब्ज न होने दें तथा शौच के समय जोर न लगाएं।