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मेला के बाहर भी लगा है मेला

मेला के बाहर भी मेला लगा है। यह नजारा गांधी मैदान में राष्ट्रीय पुस्तक मेला के बाहर का है। पुस्तक मेला के बाहर छोटे खोमचे वाले और चाट बेचने वाले, ठेले वाले और खाने-पीने का समान बेचने...

मेला के बाहर भी लगा है मेला
Mon, 09 Nov 2009 11:16 PM
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मेला के बाहर भी मेला लगा है। यह नजारा गांधी मैदान में राष्ट्रीय पुस्तक मेला के बाहर का है। पुस्तक मेला के बाहर छोटे खोमचे वाले और चाट बेचने वाले, ठेले वाले और खाने-पीने का समान बेचने वाले फेरीदारों की भीड़ लगी है। यह कहना गलत न होगा कि पुस्तक मेले के अंदरजिंतनी भीड़ है उतनी ही भीड़ मेला के बाहर दिखाई पड़ रही है।पुस्तकों की सुनहरी दुनिया से निकलने के बाद लोगों की निगाहें सीधे लजीज व्यंजनों के खोमचों पर चली जाती है। पुस्तक मेला में लोग चुनिंदा लेखकों के पुस्तकों की खरीदारी करते हैं। बाहर स्वादिष्ट व्यंजन के स्टॉल पर जाते हैं।गांधी मैदान में कोई भी मेला शुरू होते ही छोटे खोमचे वाले दुकानदारों की चांदी हो जाती है। पुस्तक मेला के बाहर गुपचुप, पावभाजी, चाट, भेलपुरी, बटाटापुरी, आइसक्रीम, मुंगफली, कुंती लाई और केतली लेकर चाय और गुटखा बेचते िमल जाएंगे। गुपचुप दुकानदार मनोज कुमार बताते हैं आम दिनों की अपेक्षा में मेला में बिक्री बढ़ जाती है। सुबह 11 बजते ही दुकान लगनी शुरू हो जाती है।मेला के अंदर भी आईक्रीम, चाट, एगरोल, िलट्टी चोखा और बटाटापुरी की दुकान सजी है। इन दुकानों की रेट बाहर की दुकानों से ज्यादा है। रेट अधिक होने के बाद भी अंदर की दुकानों में भीड़ अच्छी-खासी रहती है। पुस्तक खरीदने और मेला घूमने के बाद लोग हल्के आहार के तौर पर नाश्ता जरुर करते हैं।कुछ खिलौनों की दुकानें भी मेला के बाहर सजी हैं। दुकानदार बताते हैं कि मेला लगने से आम दिनों की तुलना में फायदा अिधक होता है। गांधी मैदान में 10 नवम्बर से शिक्षा मेला लगना है। इसके बाद दिसम्बर में पटना पुस्तक मेला का आयोजन होने वाला है।इस तरह के मेला के आयोजन से खोमचे वाले दुकानदारों की चांदी होती है। खोमचे वाले चन्द्रदीप कुमार कहते हैं मेले हमेशा लगना चाहिए।

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