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मीर की चर्चा

मीर तकी मीर को उर्दू शायरी का शिखर पुरुष माना जाता है। उनकी लोकप्रियता जगजाहिर है, जबकि साहित्य-जगत में उनकी अहमियत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उन्हें खुदा-ए-सुखन अर्थात काव्य का ईश्वर कहा...

मीर की चर्चा
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 08 Nov 2014 07:38 PM
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मीर तकी मीर को उर्दू शायरी का शिखर पुरुष माना जाता है। उनकी लोकप्रियता जगजाहिर है, जबकि साहित्य-जगत में उनकी अहमियत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उन्हें खुदा-ए-सुखन अर्थात काव्य का ईश्वर कहा जाता है। मीर की इस सफलता का राज दुनिया के प्रति उनकी प्रेममयी और करुणामयी दृष्टि में निहित है। फिराक गोरखपुरी के शब्दों में कहें तो मीर ने हमारी आंतरिक अनुभूतियों का इतना स्वाभाविक चित्रण किया है और वह भी कम से कम और सादा से सादा शब्दों में, साधारण से साधारण शब्दों में उर्दू का कोई दूसरा शायर न कर सका। वरिष्ठ विद्वान लेखक आचार्य सारथी रूमी ने इस महान शायर के दीवार की व्याख्या सहित प्रस्तुति कर एक उल्लेखनीय कार्य किया है।
दीवार-ए-मीर, संपादन-व्याख्या: आचार्य सारथी रूमी, साक्षी प्रकाशन, दिल्ली-32, मूल्य: 350 रु.

बड़े लेखक का जीवन-सृजन

उपेन्द्रनाथ अश्क ऐसे लेखकों में शुमार हैं, जिनका कृतित्व और व्यक्तित्व दोनों चर्चित रहे हैं। उन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक, एकांकी, संस्मरण, कविता आदि अनेक विधाओं में काफी लिखा। ‘गिरती दीवारें’ उनका प्रसिद्ध उपन्यास है, तो ‘मंटो मेरा दुश्मन’ उनका प्रसिद्ध संस्मरण। दरअसल वह बहुमुखी प्रतिभा वाले लेखक थे, जिन्होंने लेखन को जीवन का पर्याय बना लिया था। उन्होंने खुद कहा, मैं लिखता हूं तो लगता है कि जिंदा हूं। नहीं लिखता हूं तो मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता। वह यह भी मानते थे कि उनके लेखन का मकसद समाज सुधार है। संभवत: यही वजह है कि उनकी कृतियों में समाज का ऐसा सूक्ष्म पर्यवेक्षण दिखलाई पड़ता है, जो अन्यत्र दुर्लभ है। जितने बड़े लेखक वह थे, उतने ही यारबाश इनसान भी। से. रा. यात्री की यह पुस्तक उनके जीवन व रचनाओं की मुकम्मल झलक पेश करती है।
उपेन्द्रनाथ अश्क: जीवन और सृजन, से. रा. यात्री, प्रकाशन विभाग, दिल्ली-3, मू. 160 रु.

सुनने-गुनने को बहुत कुछ

यह प्रसिद्ध पत्रकार प्रभाष जोशी के संपूर्ण लेखन से चुने गए लेखों का संग्रह है। प्रभाष जी अपने समय के बनते इतिहास पर सजग निगाह रखते थे और उस पर बेबाक ढंग से टिप्पणी करते थे। उनका लेखन-विश्लेषण समाजोन्मुख था। साथ ही वह बौद्धिक वर्ग के लिए भी प्रेरक था। वह हरेक प्रासंगिक मुद्दे को अपनी वैचारिक कसौटी पर निर्ममता से परखते थे, जो कई बार विवादित हो उठता था। संग्रह में लेखों को पत्रकारिता है सदाचारिता, हिंदी का हाल, शिखरों के आसपास, राजमंच का नेपथ्य, खेल का सौंदर्यशास्त्र और बार-बार लौटकर जाता हूं नर्मदा शीर्षकवाले छह खंडों में संयोजित किया गया है। इसमें उनकी एक कविता व कहानी भी है।
कहने को बहुत कुछ था, प्रभाष जोशी, सं. सुरेश कुमार, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली-2, मू. 300रु.

सृजन-समीक्षा

यह सुपरिचित लेखिका साधना अग्रवाल के समीक्षात्मक लेखों का दूसरा संग्रह है। पुस्तक में ज्यादातर उन पुस्तकों की समीक्षा की गई है, जो पिछले सात-आठ वर्षों में प्रकाशित हुई थीं और आलोचना की थीं। इनमें देवीशंकर अवस्थी, रामचंद्र तिवारी, भवदेव पांडेय, नामवर सिंह व नंदकिशोर नवल की पुस्तकें शामिल हैं। लेखिका हिंदी में समीक्षा की दयनीय स्थिति से चिंतित हैं और अपेक्षा करती हैं कि समीक्षक-आलोचक में सच कहने का नैतिक साहस होना चाहिए।

आलोचना का पुनर्पाठ, साधना अग्रवाल, यश पब्लिकेशंस, दिल्ली-32, मू. 895 रु.

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