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केवल पदचिह्न नहीं

यह वरिष्ठ रचनाकार राजेंद्र कुमार का दूसरा कविता संग्रह है। उनका पहला कविता संग्रह ‘ऋण गुणा ऋण’ तीन दशक से भी अधिक समय पहले 1978 में छपा था। स्वाभाविक ही दूसरे संग्रह में इस लंबे अंतराल...

केवल पदचिह्न नहीं
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 02 Aug 2014 10:12 PM
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यह वरिष्ठ रचनाकार राजेंद्र कुमार का दूसरा कविता संग्रह है। उनका पहला कविता संग्रह ‘ऋण गुणा ऋण’ तीन दशक से भी अधिक समय पहले 1978 में छपा था। स्वाभाविक ही दूसरे संग्रह में इस लंबे अंतराल में लिखी गई कविताएं संकलित हैं। कोई भी रचना रचनाकार के अपने समय-समाज से मुठभेड़ का नतीजा होती है। लेकिन यह जहां कहीं सरलीकृत होने लगता है वहां रचना के निपट प्रतिक्रिया होकर रह जाने का खतरा रहता है। कुमार अपनी कविताओं में अक्सर अपने समय-समाज से टकराते हैं और उसके जटिल व्यूह में पैठकर उसकी दुरभिसंधियों को उजागर करते हैं। लेकिन वह सरलीकरण से बचते हैं। वह लिखते हैं, ‘छूटे चाहे सब कुछ/पर यह आस न छूटे/कि मैं जहां भी हूं, केवल पदचिह्न नहीं हूं/आहट भी हूं उन पांवों की/जिन्हें अभी पथ मिला नहीं है’। हर कोशिश है एक बगावत, राजेंद्र कुमार, अंतिका प्रकाशन, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) मूल्य : 350 रु.

किस्सागोई का दम
युवा कहानीकार मनोज कुमार पांडेय के इस कहानी संग्रह में संकलित छह कहानियों में से ‘पुरोहित जिसने मछलियां पालीं’और ‘पानी’ जैसी कहानियां विभिन्न पत्रिकाओं में छपकर पहले ही प्रशंसित-चर्चित हो चुकी हैं। मनोज कथ्य के प्रति सचेत कहानीकार हैं। वह कहानी में विश्वसनीय परिवेश रचने में भी माहिर हैं। इस वजह से उनकी कहानियां काफी पठनीय बन जाती हैं। ‘पानी’ कहानी को ही लें। इसमें एक पूरे गांव के जनजीवन को आधार बनाया गया है। यह कहानी पानी की अहमियत समझाती है और परंपरा बनाम आधुनिकता का सवाल भी खड़ा करती है। कहानी का संदेश स्पष्ट है, इसका अनुमान लगाने में कठिनाई नहीं होती। यदि इतना भर होता तो कहानी सामान्य रह जाती। लेकिन कहानी के विवरण इसको खास बनाते हैं। अपने विवरणों के बल पर यह कहानी लगभग औपन्यासिक रंग ले लेती है। पानी, मनोज कुमार पांडेय, भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली-3, मूल्य :180 रु.

सृजन, सर्जक और सरोकार
कवि-समीक्षक रमेश ऋतंभर की यह किताब हिंदी साहित्य के समसामयिक परिदृश्य और परिवेश पर रोशनी डालती है। ऋतंभर उचित ही मानते हैं कि कोई भी सृजन बिना सरोकार के संभव नहीं हो सकता। उन्होंने कहा है कि मूलत: मनुष्य को ज्यादा बेहतर मनुष्य और दुनिया और समाज को ज्यादा सुंदर बनाने के सरोकार एवं संकल्पना से रचनाकार हमेशा प्रतिबद्ध रहा है। पुस्तक सृजन, सर्जक और सरोकार, तीन खंडों में विभाजित है। पहले खंड में बिहार के रचनाकारों के संदर्भ में कविता और कहानी को लेकर दो लेख हैं। दो लेख दलित साहित्य और हिंदी प्रदेश की जातीय एकता के बारे में हैं। दूसरा खंड कबीर, प्रेमचंद, निराला, नेपाली, रेणु समेत कई रचनाकारों के रचनाकर्म पर केंद्रित है, जबकि तीसरे खंड में पुस्तक समीक्षाएं हैं। सृजन के सरोकार, रमेश ऋतंभर, अभिधा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर (बिहार), मूल्य : 250 रु.

दोहे की साखी
दोहों का इतिहास सदियों पुराना है। यह कविता के सबसे लोकप्रिय रूपों में से एक रहा है, लेकिन आज दोहा लिखने का चलन आम नहीं है। फिर भी साक्षी जैसे कुछेक रचनाकार हैं, जो इस काव्य-रूप को अपनी अभिव्यक्ति के लिए चुनते हैं। उन्होंने दोहों के जरिए समकालीन विषयों पर टिप्पणी की है। अपने दौर की सामाजिक-राजनीतिक विसंगतियों को वह खासकर उजागर करते हैं। इससे इन दोहों में व्यंग्य का पुट भी आ गया है। साक्षी के लिखे में आध्यात्मिकता की झलक भी मिलती है। साक्षी सतसई, श्याम सुंदर शर्मा ‘साक्षी’, संतोष प्रकाशन, दिल्ली-34, मूल्य : 150 रु.
धर्मेंद्र सुशांत

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