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पटना की पहचान ऐतिहासिक 'गोलघर'

पटना दिनोंदिन फल-फूल रही है। गंगा नदी तट पर बसे इस शहर ने 'पाटलिग्राम', 'पाटलिपुत्र', 'पुष्पपुर', 'कुसुमपुर', 'अजीमाबाद' से लेकर 'पटना' नाम होने तक का सफर तय किया...

पटना की पहचान ऐतिहासिक 'गोलघर'
Fri, 16 Aug 2013 01:22 PM
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बिहार की ऐतिहासिक राजधानी पटना दिनोंदिन फल-फूल रही है। गंगा नदी तट पर बसे इस शहर ने 'पाटलिग्राम', 'पाटलिपुत्र', 'पुष्पपुर', 'कुसुमपुर', 'अजीमाबाद' से लेकर 'पटना' नाम होने तक का सफर तय किया है। स्वतंत्रता दिवस संग्राम में नील की खेती के लिए 1917 में हुआ चंपारण आंदोलन हो या 1942 का भारत छोड़ों आंदोलन सभी में पटना की महत्वपूर्ण भूमिका रही। बावजूद इसके पहले भी और आज भी पटना की पहचान इसके 'गोलघर' से ही होती है।

बिहार के गौरवशाली इतिहास और आधुनिक पटना की पहचान बने 'गोलघर' का निर्माण 1786 में कराया गया था। वर्ष 1770 में भयंकर सूखे से लगभग एक करोड़ लोग भुखमरी के शिकार हुए थे। तब तत्कालीन गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग ने अनाज के भंडारण के लिए गोलघर निर्माण की योजना बनाई थी।

ब्रिटिश इंजीनियर कैप्टन जॉन गार्स्टिन ने फौज के अनाज भंडारण के लिए इस गोल ढांचे का निर्माण 20 जनवरी, 1784 को प्रारंभ करवाया था। यह निर्माण कार्य 20 जुलाई, 1786 को संपन्न हुआ। इस घर में 140,000 टन अनाज रखा जा सकता है। यह गोलघर 125 मीटर चौड़ा और 29 मीटर ऊंचा है। इसकी खासियत है कि इसमें एक भी स्तंभ नहीं है। इसकी दीवारें 3.6 मीटर मोटी हैं।

गोलघर में ऐसे तो ईंटों का प्रयोग हुआ है लेकिन इसके शिखर पर लगभग तीन मीटर तक ईंट की जगह पर पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। कहा जाता है कि मजदूर एक ओर से अनाज लेकर गोलघर के शीर्ष पर पहुंचते थे और वहां बने दो फीट सात इंच व्यास के छिद्र में अनाज डालकर दूसरी ओर की सीढ़ी से उतरते थे।

वैसे बाद में इस छिद्र को बंद कर दिया गया। 145 सीढियों को तय कर गोलघर के ऊपरी सिरे पर पहुंचा जा सकता है। यहां से शहर के एक बड़े हिस्से खासकर गंगा तट के मनोहारी दृश्य को देखा जा सकता है।

कहा जाता है कि गोलघर का निर्माण भले ही गोदाम के काम के लिए करवाया गया हो परंतु कलांतर में यह पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन गया। देखरेख के अभाव में इसकी दीवारें और सीढियां टूटने लगी थीं। निर्माण के 227 वर्ष बाद इसकी मरम्मत कराई गई। गोलघर के पूर्वी और दक्षिणी दरवाजे के ऊपर दीवारों पर आई खतरनाक दरारों को सुर्खी, चूना, गुड़ और गोंद से भरा गया है।

पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधिकारी मानते हैं कि सरकार ने इस स्मारक पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया। कहा गया कि वर्ष 1979 में राज्य संरक्षित स्मारक तो इसे घोषित कर दिया गया परंतु स्मारक के चारों ओर बढ़ी आबादी और सड़कों के निर्माण से स्मारक प्रभावित हुआ। कहा जाता है कि भवनों के निर्माण से भी गोलघर की नींव और दरारें प्रभावित हुईं।

वैसे इस ऐतिहासिक स्मारक को सहेजने के लिए हाल के दिनों में सरकार ने कई कारगर पहल कीं। गोलघर में लेजर लाइट एंड शो की व्यवस्था की गई है। इसके शुरू होने से जहां गोलघर परिसर में स्वच्छता हो गई है वहीं कई निर्माणकार्य भी कराए गए हैं। यही कारण है कि आज पर्यटक एक बार फिर पटना की पहचान गोलघर की ओर खिंचे चले आ रहे हैं। वैसे गोलघर की पहचान बनाए रखने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

गोलघर स्थापत्यकला का अद्भुत नमूना है। गुम्बदाकार आकृति के कारण इसकी तुलना 1627-55 में बने मोहम्म्द आदिल शाह के मकबरे से की जाती है। बता दें 142 फीट व्यास का यह मकबरा भारत का सबसे बड़ा गुंबद है। गोलघर के अंदर एक आवाज 27 बार प्रतिध्वनित होती है।

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