'दबंग' और 'सिंघम' से प्रेरणा लेंगे पुलिसकर्मी
अदालत से लेकर आम लोगों की लगातार आलोचनाएं झेल रहे उत्तर प्रदेश के पुलिस महकमे ने अपनी छवि सुधारने के लिए फिल्मों का सहारा लेने की अनोखी योजना तैयार की...
कानून व्यवस्था के मसले पर देश की सबसे बड़ी अदालत से लेकर आम लोगों की लगातार आलोचनाएं झेल रहे उत्तर प्रदेश के पुलिस महकमे ने अपनी छवि सुधारने के लिए फिल्मों का सहारा लेने की अनोखी योजना तैयार की है। महकमे ने पुलिस फोर्स को 'दबंग' और 'सिंघम' जैसी फिल्मों के जरिए प्रेरित करने का फैसला लिया है।
उत्तर प्रदेश के अपर पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) अरुण कुमार ने इसी सप्ताह एक 5 पेज का सकरुलर जारी कर कहा 'दबंग', 'अब तक छप्पन' और 'सिंघम' जैसी फिल्में पुलिसवालों को दिखाई जाए। उन्होंने सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिया है कि पुलिसकर्मियों को ये फिल्में दिखाने के लिए पुलिस लाइन में स्पेशल स्क्रीनिंग की व्यवस्था करें।
कुमार ने कहा कि इन फिल्मों में पुलिसकर्मी को सुपरमैन की तरह दर्शाया गया है। हमें लगता है कि इन फिल्मों को देखकर पुलिस वाले अपनी डय़ूटी बेहतर ढंग से करने के लिए प्रेरित होंगे। उन्होंने कहा कि इन फिल्मों में उन्होंने दबंग और सिंघम के साथ-साथ शोले, दीवार, गंगाजल और अब तक छप्पन जैसी पुलिसिया पृष्ठभूमि वाली फिल्मों को भी दिखाने का सिफारिश की है।
कुमार की तरफ से जारी सकरुलर में कहा गया है कि जनता पुलिस से ये उम्मीद करती है कि वे पूरी ईमानदारी और निष्ठा से अपना काम करें। मालूम हो कि इन फिल्मों में ईमानदार पुलिस आफिसर के संघर्ष की कहानी दिखाई गई है जो गुंडों, अपराधियों और भ्रष्ट नेताओं के सामने घुटने न टेककर मजबूती का साथ उनका सामना करने उन्हें सबक सिखाता है।
अब सवाल उठ रहे हैं कि ज्यादतियां करने के मामले में कुख्यात उत्तर प्रदेश पुलिस पर इन फिल्मों का कितना असर होगा। दबंग या सिंघम देखकर क्या उत्तर प्रदेश की पुलिस बदल जाएगी?
कुछ जानकारों का कहना है कि केवल मनोरंजन कराने के लिए पुलिसवालों को फिल्में दिखाना तो ठीक है लेकिन इस तरह की फिल्मों देखकर पुलिसकर्मी प्रेरणा लेने के बजाय फिल्मी सुपरकॉप बन जाएंगे तो स्थिति और बिगड़ जाएगी।
उत्तर प्रदेश पुलिस से पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एस़ आऱ दारापुरी ने कहा कि पुलिसवालों को दबंग और सिंघम फिल्में दिखाकर सुपरकॉप बनने की प्रेरणा लेने के बजाय उन्हें संवेदनशील जवसेवक कैसे बना जाए ये सिखाया जाए। उन्होंने कहा जरूरत है कि पुलिसवालों को यह नसीहत दी जाए कि वे कानून के अंतर्गत रहकर काम करें और सबके लिए समान रूप से कानून का पालन करें।
सामाजिक चिंतक एच़ एऩ दीक्षित कहते हैं कि इन फिल्मों में दिखाया गया कि सुपरकॉप नायक सरेआम बाल खींचकर गुंडों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटता है। अगर पुलिसकर्मियों ने इन फिल्मों के सुपरकॉप से प्रेरणा ले ली तो शायद मानवाधिकार हनन के मामले राज्य में और बढ़ने लगेंगे। पहले से ही उत्तर प्रदेश पुलिस मानवाधिकार हनन के मामले में देश में पहले नंबर पर है।