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दुश्मन की आंख में धूल झोंकते.. ये छलिया जानवर

नेचर यानी प्रकृति का एक नियम है कि बड़ा जानवर छोटे जानवर को खाता है और इस तरह जीवन-चक्र चलता रहता...

दुश्मन की आंख में धूल झोंकते.. ये छलिया जानवर
Mon, 08 Oct 2012 12:43 PM
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कछुए की पीठ की कठोर खोल कितनी अलग होती है न। यह खोल उसकी रक्षा करती है। जब भी कोई उस पर हमला करता है तो वह खुद को कवच के अंदर छुपा लेता है, जिसे तोड़ना या खोलना आसान नहीं होता और बड़े से बड़ा शिकारी भी हार मान लेता है। इसी तरह के कई और जानवर भी हैं, जो दूसरे जानवरों को खूब बेवकूफ बनाते हैं। इनसे तुम्हें मिला रही हैं रजनी अरोड़ा

नेचर यानी प्रकृति का एक नियम है कि बड़ा जानवर छोटे जानवर को खाता है और इस तरह जीवन-चक्र चलता रहता है। शेर, चीता, हाथी, हिरण, मगरमच्छ, व्हेल, शार्क तो अपने तेज दांतों, पंजों, लंबे पैरों, मोटी स्किन की वजह से दूसरे जानवरों का शिकार होने से बच जाते हैं। लेकिन क्या तुमने सोचा है कि छोटे और कमजोर जानवर या फिर नाजुक-से दिखने वाले इंसेक्ट्स या कीट-पतंगे दुश्मन से खुद को कैसे बचाते हैं? छोटे दिखने वाले इनमें से कई जानवर तो इस मामले में बहुत उस्ताद होते हैं। साथ ही कुदरत ने इन्हें ऐसी खूबियां बख्शी हैं, जिनकी बदौलत ये दूसरे जानवरों को आसानी से चकमा दे देते हैं।

कठोर कवच को भेदना मुश्किल
कछुए की तरह घोंघे, केकड़े का शरीर मोटे और कठोर कवच से ढका होता है। ये अपना पूरा शरीर इस कवच के अंदर खींचकर छुप जाते हैं और दुश्मन के हमले से अपना बचाव करते हैं। कई घेंघे तो अपने बचाव के लिए शिकारी मछली पर जहर की पिचकारी फेंकते हैं, जिससे शिकारी या तो मर जाता है या भाग जाता है। आर्माडिलो के शरीर पर छोटी-छोटी प्लेटों का कवर होता है, जो बहुत कठोर होता है। शिकारी के हमले की आशंका होने पर यह अपने शरीर को एक सख्त बॉल की तरह बड़ी खूबी से कर्ल कर लेता है, जिसे खोलना शिकारी के बस में नहीं होता।

बड़े काम के कांटे
पोरक्युपाइन के शरीर पर लंबे, कठोर और पैने कांटे होते हैं, जो दुश्मनों के हमले से उनका बचाव करते हैं। दुश्मन का अंदेशा होने पर पोरक्युपाइन अपने शरीर को अकड़ा लेता है, जिससे उसके कांटे सीधे हो जाते हैं। शिकारी के पास आते ही वह कांटों की बौछार कर उसे घायल कर देता है और भाग निकलता है। कटलफिश को जब किसी से खतरा महसूस होता है तो वह एक साथ ज्यादा पानी पीकर अपने शरीर को बॉल की तरह फुला लेती है। इससे इसके शरीर के चारों ओर कांटे उभर आते हैं, जो उसे शिकारी को दूर रखने में मदद करते हैं। शिकारी के चले जाने पर कटलफिश पानी निकाल देती है।

रंगों से मिलती है जान
ऐसे कई जानवर हैं, जो अपने रंग की वजह से प्रकृति में खो से जाते हैं। उन्हें पहचानना मुश्किल हो जाता है। पेड़ की टहनी की तरह दिखने वाला लंबा और पतला वॉकिंग इंसेक्ट तो टहनी का एक हिस्सा सा लगता है। ऐसे ही हरे पत्तों की तरह लीफ इंसेक्ट, झींगुर या ग्रासहोपर जैसे कीट भी पहचाने जाने मुश्किल होते हैं। कई तरह की तितलियां भी अपने आसपास के वातावरण में मेल खाती हैं। पारदर्शी पंखों वाली ग्लासविंग बटरफ्लाई, सूखी पत्तियों के समान रंगत वाली लीफ बटरफ्लाई और पेड़ के तने की छाल से मेल खाते पंखों वाला स्फीनिक्स मॉथ बड़ी आसानी से हमलावरों से अपना बचाव कर लेते हैं।

बदल लेते हैं रंग
कई जीव खुद को बचाने के लिए आसपास के माहौल के हिसाब से अपना रंग बदल सकते हैं। छिपकली की तरह दिखने वाले गिरगिट में यह खासियत होती है। हमलावर की पकड़ से बचने के लिए हरे पत्तों से घिरे होने पर उसकी स्किन हरे रंग की और पेड़ के तने की छाल या जमीन पर जाने पर ब्राउन रंग की हो जाती है।

बदल लेते हैं शरीर का आकार
ब्लोफिश बचाव के लिए अपने शरीर का आकार तक बदल लेती है। यह खतरे को भांपते ही अपनी गर्दन में मौजूद गुब्बारेनुमा झिल्ली में पानी भरकर फूल जाती है, जिससे यह काफी बड़ी दिखने लगती है। जब हमलावर मछली चली जाती है तो ब्लोफिश मुंह से पानी निकालकर अपने असली साइज में आ जाती है। इसी तरह फ्रिल्ड या झालरदार छिपकली पिछले पैरों पर खड़ी होकर अपना पूरा शरीर तान लेती है। इससे उसके गले में बनी फ्रिल खुल जाती है। वह मुंह से आवाज निकालती है और पिछले पंजों पर बहुत तेजी से भागना शुरू कर देती है। यह सब देखकर शिकारी अचंभे में रह जाता है और फ्रिल्ड छिपकली पेड़ पर चढ़कर गुम हो जाती है।

खास रसायनों से सुरक्षा
कई एनिमल अपनी रक्षा के लिए विशेष रसायनों का उपयोग करते हैं। हैगफिश और स्टारफिश काले रंग का स्याहीनुमा रसायन अपने हमलावर पर फेंक देती हैं, जिससे पानी गंदा हो जाता है और वो इसका फायदा उठाकर वहां से गायब हो जाती हैं। ऐसे ही ऑक्टोपस जब देखता है कि वह मुसीबत में है तो वह सामने वाले पर ब्लू ब्लड का गुब्बारा छोड़ता है, जो पानी में घुलकर काला धुंआ-सा बन जाता है। इससे शिकारी को कुछ दिखाई नहीं देता और ऑक्टोपस मौके का फायदा उठाकर खिसक लेता है।

स्पिटिंग कोबरा भी जहर का छिड़काव करता है, जिससे सामने वाले को थोड़ी देर के लिए दिखना बंद हो जाता है। बिच्छू की लंबी पूंछ में एसिटिक एसिड भरा होता है। हमले की आशंका होने पर वह बड़ी तेजी से एसिड का छिड़काव कर देता है, जिससे शिकारी गल जाता है। सूरीनाम टोड शिकारी को देखकर अपना शरीर फुला लेता है और मुंह में गोंदनुमा रसायन भर लेता है। शिकारी के पास आने पर वह उसके मुंह पर जोर से यह गोंदनुमा रसायन थूक देता है। इस रसायन से उस पर हमला करने वाले का मुंह चिपक जाता है और टोड सुरक्षित वहां से निकल जाता है।

बीटल जैसे एनिमल अपने दुश्मन पर बदबूदार रसायन का स्प्रे करते हैं, जिससे वह घबराकर भाग जाते हैं। छोटे-से आकार की स्कंक गिलहरी भी बदबूदार स्प्रे छोड़कर बड़े से बड़े हमलावर को पछाड़ देती है। हमलावर को देखकर वह अपनी पिछली टांगें उठाकर अगली टांगों पर खड़ी होकर इधर-उधर फुदकती हुई बदबूदार स्प्रे छोड़ती है, जिसे हमलावर बर्दाश्त नहीं कर पाता और वहां से निकल लेता है।

मरने का करते हैं नाटक
कुछ एनिमल इतने उस्ताद होते हैं कि वे हमलावरों को अपने अंग टूटने पर या जानबूझ कर सांस रोक कर मरे होने का झांसा देते हैं, जिससे शिकारी उन्हें मरा हुआ समझ कर छोड़ देते हैं। ऐसा ही जीव है ओपस्सम। जब यह खतरे को देखता है तो सांस रोक कर आंखें बंद कर मरा होने का नाटक करता है। बीटल अपने पैर छुपाकर सांस रोक कर बैठ जाता है और शिकारी चीटियां उसे मरा हुआ समझकर छोड़ जाती हैं। इसी तरह काले रंग का मिलीपेड भी अपने शरीर को कर्ल करके मरने का ढोंग करता है। कुछ एनिमल तो इतने होशियार होते हैं कि वे अपने अंग तोड़कर शिकारी के चंगुल से निकल जाते हैं। छिपकली शिकारी के पकड़े जाने पर अपनी पूंछ तोड़ लेती है।

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