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बुंदेलखण्ड में दैवीय आपदा से कम नहीं 'अन्ना प्रथा'

बुंदेलखण्ड में सूखे और दैवीय आपदाओं से अनाज बचा लेने के बाद भी किसानों की समस्या समाप्त नहीं...

बुंदेलखण्ड में दैवीय आपदा से कम नहीं 'अन्ना प्रथा'
Fri, 20 Apr 2012 09:49 AM
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बुंदेलखण्ड में सूखे और दैवीय आपदाओं से अनाज बचा लेने के बाद भी किसानों की समस्या समाप्त नहीं होती। यहां पालतू पशुओं को छुट्टा छोड़ देने की 'अन्ना प्रथा' उनके लिए किसी दैवीय आपदा से कम साबित नहीं हो रही है। ये पशु हर साल किसानों की एक चौथाई फसल खेत-खलिहानों में ही चट कर जाते हैं।

बुंदेलखण्ड में गैर-दुधारू पालतू पशुओं को खुला छोड़ देने को 'अन्ना प्रथा' कहा जाता है। प्राकृतिक आपदाओं, खाद-बीज व सिंचाई संसाधनों के अभाव के बीच बुंदेलखण्ड का किसान बड़ी मुश्किल से अपने लिए अनाज पैदा कर पाता है। पालतू पशुओं के छुट्टा (खुला) छोड़ देने की 'अन्ना प्रथा' के कारण यहां का किसान आधी-अधूरी ही रबी और खरीफ की फसल का हकदार बन पाता है। खुला घूमने वाले पशु किसानों की फसल का करीब एक तिहाई हिस्सा खेत और खलिहानों में चट कर डालते हैं।

इस 'अन्ना प्रथा' के खिलाफ किसानों को जागरूक करने वाले जिला पंचायत बांदा के पूर्व अध्यक्ष कृष्ण कुमार भारती ने बताया, ''किसान अपने गैर दुधारू पशुओं को छुट्टा (अन्ना) छोड़ देते हैं, जिससे तकरीबन 25 से 35 फीसदी फसल का नुकसान हो रहा है।''

खेती के जानकार बांदा जनपद के बड़ोखर गांव के निवासी प्रेम सिंह ने बताया, ''किसान अपनी बर्बादी का काफी हद तक खुद जिम्मेदार है, अगर 'अन्ना प्रथा' बंद हो जाए तो जहां फसल की बर्बादी रोकी जा सकती है, वहीं, जायद की फसल सरकारी कर्ज उतारने में भी सहायक साबित होगी।''

गैर सरकारी संगठन 'बुंदेलखण्ड भविष्य परिषद' से जुड़े किसान पुष्पेन्द्र का कहना है कि दैवीय आपदाओं की वजह से किसानों के सामने चारा का संकट पैदा हो जाता है जिसकी वजह से वे पालतू पशुओं को अन्ना छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं। यदि राज्य सरकार चारे का उचित प्रबंध कर दे तो 'अन्ना प्रथा' में आसानी से पाबंदी लग सकती है।''

जिला पंचायत बांदा की अध्यक्ष किरन वर्मा ने कहा, ''जिला पंचायत की ओर से नगर पालिका और नगर पंचायतों में अन्ना जानवरों को बंद करने के लिए 'कांजी हाउस' बने हैं, किसान चाहें तो वहां अन्ना जानवरों को बंद कर सकते हैं।''

चित्रकूटधाम परिक्षेत्र बांदा के उपनिदेशक (कृषि) आर.के. तिवारी ने बताया, ''किसानों की जागरुकता से इस पर रोक लगाई जा सकती है। जिला के पशुपालन विभाग को 'अन्ना प्रथा' रोकने की जिम्मेदारी दी गई है, किसानों की हर संभव मदद की जा रही है।''

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