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यहां है रस्म कि कोई न मुस्करा के रहे

यहां मैं स्पष्ट कर दूं कि मैं कोई बहादुर नहीं हूं। मैं दिल्ली में हूं, इसलिए यह लिख भी रहा हूं, कोलकाता में होता, तो इसकी हिम्मत न...

यहां है रस्म कि कोई न मुस्करा के रहे
Wed, 18 Apr 2012 09:35 PM
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यहां मैं स्पष्ट कर दूं कि मैं कोई बहादुर नहीं हूं। मैं दिल्ली में हूं, इसलिए यह लिख भी रहा हूं, कोलकाता में होता, तो इसकी हिम्मत न करता। वहां आजकल मजाक करने पर पाबंदी है, सिर्फ तृणमूल कांग्रेस के लोगों को मजाक करने का हक है। उनका कहना है कि हम हैं ही, तो मजाक करने के लिए किसी और की क्या जरूरत है? वैसे तृणमूल वाले मजाक भी गंभीरता से करते हैं और यह भी अपेक्षा करते हैं कि आप उनके मजाक को गंभीरता से लें, यानी हंसें नहीं।
पश्चिम बंगाल में दो नियम लागू हैं, कोई अन्य मजाक नहीं करेगा और तृणमूल वालों के मजाक पर कोई हंसेगा नहीं। हंसने का जी करे, तो ट्रेन, बस, हवाई जहाज, किसी भी जरिये से पश्चिम बंगाल से बाहर आ जाएं।

हो सकता है कि रेलवे स्टेशनों, बस स्टैंडों और कोलकाता हवाई अड्डे पर तृणमूल के जो कार्यकर्ता पैसा वसूली और कमीशनखोरी के गंभीर काम में लगे हैं, उन्हें यह भी आदेश हो कि वे यह भी देखते रहें कि कोई व्यक्ति हंसते हुए तो नहीं आ रहा है। अगर किसी व्यक्ति पर हंसने का शक हुआ, तो उस पर दोतरफा कार्रवाई होगी। पहले तृणमूल के कार्यकर्ता उसे पीटेंगे और फिर पुलिस उस पर एफआईआर दर्ज करेगी। पश्चिम बंगाल की दंड संहिता में हंसना और हंसाना संगीन जुर्मो में शामिल कर लिया गया है। सुना तो यह भी गया है कि भविष्य में तृणमूल वालों के हंसने पर भी कुछ नियम लागू होंगे। सिर्फ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को हर वक्त हंसने का अधिकार होगा। कैबिनेट मंत्रियों को सिर्फ उतनी ही देर हंसने का अधिकार होगा, जितनी देर ममता बनर्जी हंसेंगी। स्वतंत्र रूप से हंसने का अधिकार उन्हें भी नहीं होगा।

सोचा तो यह गया था कि मजाक करने पर भी कुछ नियम लागू हों, लेकिन पाया गया कि यह मुमकिन नहीं है। तृणमूल वाले चाहे-अनचाहे मजाक करते ही रहते हैं, बल्कि यह पाया गया है कि तृणमूल में होना ही अपने आप में मजाक बन गया है, और जब से वे सत्ता में आए हैं, तब से तो उनके मुंह से जो कुछ भी निकलता है, वह मजाक ही होता है। लेकिन मैं यह सब कह सकता हूं, क्योंकि मैं दिल्ली में हूं, अगर कोलकाता में होता, तो फिर यह व्यंग्य नहीं होता।

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