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क्षेत्रवाद का जहर

बिहार दिवस मनाने के मसले पर मनसे प्रमुख राज ठाकरे के बयान को कौन उचित ठहरा सकता है? सबने राज ठाकरे और नीतीश कुमार के बीच के शब्द-युद्ध को देखा और...

क्षेत्रवाद का जहर
Sun, 15 Apr 2012 09:10 PM
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बिहार दिवस मनाने के मसले पर मनसे प्रमुख राज ठाकरे के बयान को कौन उचित ठहरा सकता है? सबने राज ठाकरे और नीतीश कुमार के बीच के शब्द-युद्ध को देखा और पढ़ा। एक झलक में तो कोई भी इसे देश की अखंडता पर कुठाराघात ही मानेगा। जरा सोचिए, वह अभिव्यक्ति की आजादी कैसी, जो किसी राष्ट्र में क्षेत्रवाद को बढ़ावा दे? ऐसा प्रतीत होता है कि राज ठाकरे ने हमारी सभ्यता और प्रतिभा का बिना मूल्यांकन किए ही फतवा जारी कर दिया है। दरअसल, तथाकथित भाषा-भक्ति के नाम पर राज ठाकरे सिर्फ हीन भावना, भाषावाद और क्षेत्रीयता को बढ़ावा दे रहे हैं। हालांकि, वह कितने ‘बड़े’ नेता हैं, इसका पता मुंबई नगर निगम चुनावों में ही हमें हो गया था और उन्हें भी। उन्हें समझना होगा कि लोगों के दिलों में रहने के लिए क्षेत्रवाद नहीं, विकासवाद जरूरी है। वैसे, चाहे वे बिहार-उत्तर प्रदेश के लोग हों या महाराष्ट्र के, राज ठाकरे के बयान पर ध्यान नहीं ही दें, तो सबके लिए बेहतर है।
सुयश वर्मा, रांची

सबको शिक्षा, पर कैसे
उच्चतम न्यायालय ने शिक्षा के अधिकार कानून को सांविधानिक रूप से वैध करार देते हुए जिस तरह से सभी सरकारी और गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में निर्धन वर्ग के छात्रों को 25 फीसदी स्थान देने के प्रावधान को उपयुक्त माना है, उसके बाद हम सभी को सबको शिक्षा दिलाने के अभियान में जुट जाना चाहिए। अगर अब भी कोई कोताही बरती गई, तो गरीब बच्चे व सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के जीवन स्तर को सुधारना असंभव हो जाएगा। हालांकि, यह शुभ संकेत नहीं कि निजी स्कूलों के कुछ संगठन उच्चतम न्यायालय के फैसले से संतुष्ट नहीं दिख रहे हैं। वे शिक्षा के अधिकार कानून को अपने लिए बोझ मान रहे हैं। उनमें यह भाव तब है, जब निर्धन वर्ग के 25 फीसदी छात्रों की पढ़ाई का खर्च वहन करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। दूसरी तरफ, इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती है कि इस कानून पर अमल के मामले में ज्यादातर राज्य सरकारों का रवैया उत्साहजनक नहीं है। इसकी पुष्टि इससे होती है कि इस कानून को लागू हुए दो साल हो गए, पर अब भी कई राज्यों ने इस संदर्भ में अधिसूचना जारी करने की भी जहमत नहीं उठाई हैं।
ओमप्रकाश प्रजापति

उम्मीदों के विराट
विराट कोहली से टीम इंडिया को काफी उम्मीदें हैं। जब भी टीम की नैया डूबने लगती है, तब अपनी विस्फोटक पारी से वह तारणहार बनकर उभरते हैं। पिछली कई पारियां इस बात की तस्दीक करती हैं। उनके मैदान पर होने से विपक्षी टीम के कम से कम 15 से 20 रन कम पड़ जाते हैं। यह उनकी चुस्त फील्डिंग का कमाल ही है। जिस तरह से भारतीय टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी ने यह साफ कर दिया है कि वह 2015 के विश्व कप को ध्यान में रखकर तीनों फॉर्मेट में से किसी एक की कप्तानी छोड़ सकते हैं, ऐसे में विराट कोहली को भविष्य के कप्तान के तौर पर देखना गलत नहीं होगा। उनमें यह माद्दा तो दिख ही रहा है।
निमित जायसवाल

डोलती धरती
इन दिनों इंसान से कुदरत की नाराजगी बढ़ती जा रही है। या फिर इंसान ने कुदरत के काम में दखलअंदाजी बढ़ा दी है। तभी तो धरती डोल रही है। बीते गुरुवार को चेन्नई से लेकर पटना तक भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए, सुनामी की चेतावनी भी जारी की गई थी। वैसे भूकंप आने के कारण वैज्ञानिक होते हैं, पर कहीं उन कारणों में हमारी गलतियां भी तो शामिल नहीं?
संजय बख्शी, पहाड़गंज, दिल्ली

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