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रिहाई से राहत

ओडिशा में माओवादियों द्वारा एक के बाद एक कई अपहरण से सरकार पर दबाव बढ़ा है, लेकिन दूरगामी नजरिये से यह सिर्फ तात्कालिक हार...

रिहाई से राहत
Thu, 12 Apr 2012 09:16 PM
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लगभग एक महीने तक माओवादियों की हिरासत में रहने के बाद इतालवी बंधक पाउलो बोसस्को आजाद हो गए हैं। यह ओडिशा सरकार के लिए बहुत राहत की बात है, लेकिन बीजू जनता दल के विधायक झीना हिकाका अब भी माओवादियों के कब्जे में हैं और उनकी रिहाई के लिए माओवादियों ने पहले ही काफी कड़ी शर्ते रखी थीं, अब उनमें कुछ नई शर्ते भी जोड़ दी हैं। वे चासी मुलिया आदिवासी संघ के कार्यकर्ताओं की रिहाई के साथ उन पर दायर मामले हटाने की भी मांग कर रहे हैं। माओवादियों का दावा है कि आदिवासी संघ के कार्यकर्ता माओवादी नहीं हैं, इसलिए उन पर दायर मामले गलत हैं। तकनीकी रूप से यह एक अलग संगठन है, लेकिन वास्तविकता यह है कि वह माओवादियों का ही एक मोर्चा है। विदेशी नागरिकों को रिहा करने के पीछे शायद माओवादियों का सोचना यह है कि इससे उनकी छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खराब होगी, लेकिन हिकाका तो आदिवासी ही हैं और माओवादियों की नजर में बहुत बड़े दुश्मन हैं। हिकाका की छवि एक जुझारू आदिवासी नेता की है, जो आदिवासियों की भलाई और विकास में गहरी दिलचस्पी लेते हैं। माओवादियों की नजर में वह हर व्यक्ति उनका दुश्मन है, जो माओवाद प्रभावित इलाके में विकास और जन-कल्याण की बात करता है। इसके पीछे दो वजहें हैं, एक तो कट्टर मार्क्सवादियों का यह सोचना है कि आम जनता का इसी व्यवस्था में भला करने की सोचने वाले लोग वर्ग संघर्ष को कमजोर करते हैं, क्योंकि जनता को राहत देकर वे इस व्यवस्था में उनका विश्वास बढ़ाते हैं। जब समाज में शोषक और शोषित के बीच भेद ज्यादा तीखा होगा, तभी संघर्ष भी ताकतवर होगा। इसके पहले माओवादियों ने ओडिशा में मलकानगिरी के जिलाधीश आर वी कृष्णा को बंधक बना लिया था। कृष्णा जिले के आदिवासियों के विकास में विशेष दिलचस्पी ले रहे थे और आम जनता में लोकप्रिय थे। एक लोकप्रिय सरकारी अधिकारी और एक विधायक को बंधक बनाकर माओवादी यह संदेश देना चाहते हैं कि आम जनता का कल्याण करने का हक सिर्फ माओवादियों का है। माओवादी आदिवासी इलाकों में स्कूल व अस्पताल जैसी चीजें नष्ट कर देते हैं, जो आम लोगों को फायदा पहुंचा सकती हैं। जबकि पैसे के लिए माओवादी भ्रष्ट सरकारी अफसरों और ठेकेदारों पर बड़ी हद तक निर्भर हैं। इसलिए ऐसी खबर कभी सुनने में नहीं आती कि माओवादियों ने किसी भ्रष्ट सरकारी अफसर या ठेकेदार पर हमला किया हो।

ओडिशा पुलिस विभाग माओवादियों की मांगें न मानने के पक्ष में है, क्योंकि उसे लगता है कि इससे उसकी मेहनत बेकार हो जाएगी। सरकार पर दबाव यह था कि दो इतालवी नागरिकों को सुरक्षित छुड़ाना उसके लिए जरूरी था। अब इतालवी नागरिक तो मुक्त हो गए, लेकिन विधायक झीना हिकाका की रिहाई के लिए सरकार को लचीला होना पड़ेगा। संभव है कि इस प्रकरण में ओडिशा सरकार के माओवाद विरोधी अभियान को फौरी झटका लगे, लेकिन माओवादियों की सफलता भी ज्यादा टिकाऊ नहीं होगी। ओडिशा सरकार की विकास और आक्रामकता की दोहरी रणनीति से माओवादियों की ताकत सिमट रही है। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि माओवादी खुद ठहराव और पतन के शिकार हो रहे हैं। अगर राज्य सरकारें आदिवासियों व ग्रामीणों की जरूरतों और सुविधाओं के प्रति संवेदनशीलता दिखाएं और सरकारी अंदाज में न पेश आएं, तो माओवादियों के पैर उखड़ने में देर नहीं लगेगी, भले ही इक्का-दुक्का उग्रवादी हरकतों से वे अपनी ताकत दिखाने की कोशिश करें।

 

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