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ये टेबलेट है कमाल का

एक वक्त में एक काम करने वाले लैपटॉप के स्थान पर अब टेबलेट्स आ गए हैं, जो एक साथ कई काम कर देते...

ये टेबलेट है कमाल का
Sun, 08 Apr 2012 10:50 PM
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एक वक्त में एक काम करने वाले लैपटॉप के स्थान पर अब टेबलेट्स आ गए हैं, जो एक साथ कई काम कर देते हैं। आकार में छोटे, हल्के और लाने-ले जाने में बेहद आसान इन टेबलेट्स ने अपना महत्व साबित कर दिखाया है। जानिए क्या खूबियां हैं नए टेबलेट में अरुण कटियार के साथ।

कुछ समय पूर्व ऐसा लगता था कि टेबलेट लैपटॉप का ही छोटा रूप और स्मार्टफोन का बड़ा रूप है। लेकिन यदि आपके पास टेबलेट है तो आप मानेंगे कि सभी तरह के स्क्रीन्स की कोई जरूरत नहीं होती, और यदि आपके पास टेबलेट नहीं है तो बहुत संभव है कि आप शीघ्र ही एक खरीद लें।

आप पूछेंगे कि ऐसा क्यों ? गत अक्तूबर में सॉफ्टवेयर कंपनी ओरेकल द्वारा जारी एक ग्लोबल स्टडी ‘ऑपरचुनिटी कॉलिंग : द फ्यूचर ऑफ मोबाइल कम्युनिकेशंस - टेक टू’ में कहा गया है कि 16 प्रतिशत मोबाइल ग्राहक टेबलेट भी रखते हैं और 41 प्रतिशत अगले 12 माह में टेबलेट खरीद लेंगे। आंकड़ों की जुबानी बात करें तो आपके इस रिपोर्ट पर खरे उतरने की पचास प्रतिशत संभावना है।

टेबलेट का चुनाव करने का एक और जरूरी कारण है। तकनीक के मामले में लोग अपने फैसले अधिक तेजी से लेते हैं। ओरेकल की स्टडी के अनुसार वर्ष 2010 में 52 प्रतिशत लोगों का यह मानना था कि 2015 तक उनके मोबाइल फोन डिजिटल कैमरों का स्थान ले लेंगे और 2011 तक 43 प्रतिशत का कहना था कि उनके पास अब ऐसे ही मोबाइल हैं। इसी तरह 2010 में 54 प्रतिशत लोग यह सोचते थे कि उनके मोबाइल फोन आईपॉड और एमपी3 प्लेयर्स की जगह ले लेंगे और 2011 तक 34 प्रतिशत ने यह कर दिखाया था।

कुछ ऐसे ही अपने अल्ट्रा-पोर्टेबल कार्बन बॉडी सोनी वायो वीजीएन-टीजेड17जीएन (ऐसा उपकरण जो पांच वर्ष पूर्व आया था और नए अल्ट्राबुक्स से वजनी है) के साथ, जो छोटा और बिजनेस दुनिया के लिए ही बनाया गया 32 जीबी प्लेबुक और फुलटच ब्लैकबेरी टॉर्च 9800 है, मैंने एक नई योजना बनाई। मैंने लंबी छुट्टी ली, एक मल्टीनेशनल फर्म के लिए वर्कफ्लो को अमल में लाने वाली सहयोगी टेक्नोलॉजी कंपनी की बोर्ड मीटिंग में शिरकत की, फिर एक गंवई क्षेत्र में काम शुरू करने से जुड़े विचार लेकर वहां से निकला। इसके बाद मैं अपने शहर से 140 किलोमीटर दूर एक नए शहर के एक अनजान अस्पताल में पहुंचा, जहां मेरा एक दोस्त दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद भर्ती था। वहीं पाककला में प्रवीण एक व्यक्ति जिनके साथ मैं एक पुस्तक लिख रहा था, उसके बारे में जरूरी बातें की। वहीं अंतरिक्ष में जाने वाले भारत के पहले व्यक्ति और भूतपूर्व टेस्ट पायलट विंग कमांडर राकेश शर्मा के साथ कुछ व्यावसायिक विचारों का आदान-प्रदान किया और फिर कॉफी शॉप्स में दोस्तों के साथ कुछ समय बिताया। इस पूरी कहानी का संदेश : टेबलेट ने ही इस समूची प्रक्रिया को रोमांचक, निष्पादन में आसान और संपन्न करने में बेहतर बनाया था।

लेकिन मैं यह भी कहना चाहूंगा कि मैं अपने लैपटॉप को रिटायर नहीं कर सकता। वह बेशक वृद्ध हो चुका है, लेकिन उसे कोई रोग नहीं लगा। वह बिल्कुल ठीक काम करता है। वह अपने आप में बहुत कर्मठ है। मैंने उससे अपनी आजीविका प्राप्त की है। उसका असली इम्तिहान तो तब होगा, जब घर में नया मेहमान (टेबलेट) आए और फिर भी वह पांच साल तक चले। टेबलेट की जरूरत मुझे आजीविका कमाने के लिए नहीं, आखिर उसकी कीमत लैपटॉप की एक-तिहाई तो होती है। क्योंकि जब मैंने लैपटॉप खरीदा था, तब उसकी कीमत 1.2 लाख रुपए थी, जो आजकल के लैपटॉप्स से कहीं आगे है। साथ ही, पांच वर्ष पुरानी इस तकनीक और नए-नवेले टेबलेट के बीच की समानता आकलन करने का पक्ष भी कुछ अतिश्योक्तिपूर्ण ही होगा। लेकिन यही है आपका आज का रीयल यूजर।

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