देश को योग्य प्रधानमंत्री क्यों न मिला और अन्य समस्याएं
सभी महान लोगों की तरह मुझे भी मालूम है कि देश की मूल समस्या क्या है और उसे कैसे हल किया जाए। जैसा कि महान लोगों के साथ होता है, मेरी बात पर भी कोई ध्यान नहीं...
सभी महान लोगों की तरह मुझे भी मालूम है कि देश की मूल समस्या क्या है और उसे कैसे हल किया जाए। जैसा कि महान लोगों के साथ होता है, मेरी बात पर भी कोई ध्यान नहीं देता। दरअसल, मेरा ख्याल है कि मुझे देश का प्रधानमंत्री होना था, लोगों ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया और भुगत रहे हैं। इसके पहले भी कई मौके आए और देश हर बार मुझे प्रधानमंत्री बनाने में चूक गया। जवाहरलाल नेहरू के वक्त यह विकल्प मौजूद नहीं था, क्योंकि मैं तब पैदा नहीं हुआ था। जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं, तो योग्यता के मुताबिक मैं ठीक था, लेकिन मेरी उम्र कम थी। इसके बाद तो इस गलती के लिए माफ नहीं किया जा सकता। इसका दोतरफा नुकसान हुआ। देश काबिल प्रधानमंत्री से वंचित हुआ, इसलिए घाटे में रहा और इधर पत्रकारिता का नुकसान हुआ, क्योंकि मैं पत्रकारिता में आ गया।
अब मुझे अखबार में लिखने की सहूलियत हासिल है, इसलिए मैं सोचता हूं कि अपनी बात लिखकर स्पष्ट कर दूं। वरना आजकल काबिल लोगों के लिए अपना लिखा छपवाना लगभग नामुमकिन है। आप उन लोगों से पूछिए, जो बिना नागा अखबारों को कहानी, कविता, लेख, संपादक के नाम पत्र थोक के भाव लिखते हैं और उनका लिखा अखबार वाले नहीं छापते, क्योंकि उन्हें डर होता है कि ऐसे प्रतिभाशाली लोगों का लिखा छप गया, तो उन्हें कौन पूछेगा।
बहरहाल, मुद्दा यह है कि जिसे जो काम करना चाहिए, वह वही काम नहीं कर रहा। जिसे चंपी, तेल मालिश करनी चाहिए, वह मंत्री है। जिसे मंत्री होना चाहिए, वह शादी में बैंड बजा रहा है। जिसे बैंड बजाना चाहिए, वह फिल्मों में संगीतकार है। जिसे संगीतकार होना चाहिए, वह कैटरिंग मैनेजर है। जिसे हलवाई होना चाहिए, वह टीवी एंकर है। जिसे एंकर होना चाहिए, वह दाद-खाज-खुजली की दवा बेच रहा है। अंत में, एक ही दिन अखबार में दो खबरें थीं। भारत अपने ज्यादातर हथियार आयात करता है, क्योंकि डीआरडीओ और ऐसे संगठन कुछ नहीं करते। दूसरी खबर, नक्सलियों ने जगह-जगह अपने कारखाने बनाए हैं, वे रॉकेट लांचर और हल्की मशीनगन वगैरह बनाते हैं।