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पैदल यात्री का हक

खतरों के खिलाड़ी, जान हथेली पर रखकर, जान पर खेलकर... इन वाक्यांशों को सुनकर शायद आपको लग रहा हो कि यहां किसी खतरनाक रिएलिटी शो की बात हो रही...

पैदल यात्री का हक
Mon, 02 Apr 2012 10:36 PM
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खतरों के खिलाड़ी, जान हथेली पर रखकर, जान पर खेलकर... इन वाक्यांशों को सुनकर शायद आपको लग रहा हो कि यहां किसी खतरनाक रिएलिटी शो की बात हो रही है। लेकिन मैं यहां उस मंजर को बयां कर रही हूं, जो भारत की सड़कों को पैदल पार करते हुए मुझे अक्सर दिखता है। यहां की सड़कों का हाल देखकर ऐसा लगता है कि यातायात के नियमों को न मानना, जैसे लोगों का मौलिक हक हो। इसका खामियाजा सबको भुगतना पड़ता है। बेचारे पैदल यात्री की तो पूछिए ही मत। आंकड़ों के मुताबिक, भारत में हर साल एक लाख तीस हजार से ज्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं, इनमें से बड़ी संख्या पैदल यात्रियों की होती है। ऐसा नहीं है कि पैदल यात्री गलतियां नहीं करते, लेकिन आमतौर पर भारत में इनके लिए सड़कों पर खास सुविधाएं नहीं हैं। पैदल यात्रियों के सड़क पार करने के लिए यों तो जेब्रा क्रॉसिंग होती है, पर मजाल है कि कोई जेब्रा क्रॉसिंग पर अपनी गाड़ी रोकता हो। पैदल यात्री का सम्मान करना सीखना हो, तो यूरोपीय देश इसकी अच्छी मिसाल हैं। लंदन में रहते हुए पैदल सड़क पार करते वक्त मुझे शाही अहसास होता था, जब सभी गाड़ियां पैदल सड़क पार करने के लिए बड़े अदब से अपने आप रुक जाती थीं। यहां किसी अन्य देश से तुलना की कोई मंशा नहीं है। जाहिर है, हर देश की परिस्थितियां अलग होती हैं, लेकिन इतनी तो भारत में भी उम्मीद की जा सकती है कि सबको सड़क पर चलने का हक हो या कहें कि सुरक्षित चलने का हक।
बीबीसी में वंदना

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