फोटो गैलरी

Hindi Newsजरा याद करो कुर्बानी

जरा याद करो कुर्बानी

भारतीय इतिहास में 23 मार्च की तारीख काफी महत्वपूर्ण है।

जरा याद करो कुर्बानी
Fri, 16 Mar 2012 09:55 PM
ऐप पर पढ़ें

भारतीय इतिहास में 23 मार्च की तारीख काफी महत्वपूर्ण है। इसी दिन गुलाम देश को ब्रिटिश शासकों की दासता से मुक्ति दिलाने के लिए क्रांति की लड़ाई लड़ते हुए देशभक्त सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ गए थे। इसमें कोई शक नहीं कि इन महान शहीद सपूतों की बदौलत देश को आजादी मिली, जिससे आज हम देशवासी सुख-चैन की सांस लेकर जी रहे हैं। लेकिन आज देश की आजादी फिर खतरे में है। इस बार डर बाहरी ताकतों से नहीं, भीतरी ताकतों से है। तमाम तरह की व्यवस्थाएं चरमराने लगी हैं। देश की राजनीति का बड़े पैमाने पर अपराधीकरण हो रहा है। चारों तरफ भ्रष्टाचार का बोलबाला है। धर्म, जाति और नस्ल के नाम पर लोग बंटे हुए हैं। ऐसे में हम भारत मां के शहीद सपूतों को स्मरण करके खुद को संगठित कर सकते हैं। आखिर, उन्होंने ही हमें सिखाया कि भारत विविधताओं का देश है और हम सब इसके बेटे हैं।
देशबंधु, संतोष पार्क, उत्तम नगर, नई दिल्ली

‘द वॉल’ की विदाई
पिछले दिनों ‘दृढ़ और शालीन’ शीर्षक से प्रकाशित संपादकीय पढ़ा। सचमुच राहुल द्रविड़ जैसा दृढ़ प्रतिज्ञ और शालीन खिलाड़ी भारतीय टीम तो छोड़िए, संभवत: विश्व की किसी भी टीम में इस वक्त नहीं होगा। कर्तव्यनिष्ठ, सौम्य, शालीन और समर्पित, ये सारे विशेषण उनके लिए कम हैं। द्रविड़ ऑलराउंडर तो नहीं थे, पर उससे कम भी नहीं थे। उनसे विकेट कीपिंग कराई गई। एक बार जब ओपनिंग की समस्या आई, तो उन्होंने ओपनिंग भी की। इसके अलावा वह स्लीप के महान क्षेत्ररक्षक थे। वनडे हो या टेस्ट, उनके प्रदर्शन एक समान शानदार रहे। जब-जब टीम संकट में आई, तब-तब द्रविड़ ने दृढ़ता से अपनी भूमिका निभाकर टीम को संकट से उबारा। उन्होंने टीम इंडिया की कप्तानी भी संभाली और इस दौरान भी उनका प्रदर्शन बेहतर रहा। ऐसे महान खिलाड़ी की विदाई गलत वक्त पर हुई। टीम इंडिया ऑस्ट्रेलिया से हारकर लौटी और द्रविड़ ने संन्यास ले लिया। बेहतर होता कि द्रविड़ अपने आखिरी टेस्ट में शतक लगाते और फिर क्रिकेट को अलविदा कहते।
इंद्र सिंह धिगान, 3 रेडियो कॉलोनी, किंग्जवे कैंप, दिल्ली

पानी की कीमत
दिल्ली के छोटे-छोटे घरों और बड़ी-बड़ी कोठियों में पानी की खपत का पैटर्न अलग-अलग है। बड़ी कोठियों में पानी की खपत सबसे अधिक होती है। उनमें बागवानी और सफाई के नाम पर सैकड़ों लीटर पानी यों ही बहा दिए जाते हैं। लेकिन अक्सर देखा गया है कि पेयजल कटौती की मार छोटे घरों को ङोलनी पड़ती है। एक बात और। दिल्ली की आबादी बेतहाशा बढ़ रही है। इस वजह से पेयजल की समस्या बनी हुई है। लेकिन इन सबकी कीमत एक सामान्य परिवार क्यों उठाए? सरकार को इस तरफ ध्यान देना चाहिए।
शंकर देव भिमानी, जनकपुरी

पार्टियों के लिए सबक
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने काफी मेहनत की थी, लेकिन परिणाम आशा के अनुरूप नहीं आए। हालांकि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की वापसी तो नहीं हो सकी, पर सत्तारूढ़ पार्टी बसपा हार गई। अपने बड़बोले नेताओं की कीमत कांग्रेस को चुकानी पड़ी। ऐसे नेताओं के खिलाफ कांग्रेस हाईकमान को कार्रवाई करनी चाहिए। अगर कांग्रेस अपनी गलतियों से अब भी नहीं सबक लेती है, तो आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी को केंद्र की सत्ता से भी बेदखल होना पड़ सकता है। उत्तर प्रदेश के नतीजे से यह भी साफ हो गया है कि लोग अब एक दल व विकास को प्राथमिकता देने लगे हैं। इसलिए वक्त का तकाजा है कि कांग्रेस हवा के रुख को भांपे।
दिनेश गुप्त, कृष्णगंज, पिलखुवा, उत्तर प्रदेश

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें