मम्मी का डबल रोल
नीमा कहने को तो हाउसवाइफ है, पर जिम्मेदारियां उस पर इतनी कि सुबह से शाम तक उसके पास फुर्सत नहीं...
पति की नौकरी अगर दूसरे शहर में हो या वे टूरिंग जॉब पर हों, तो पत्नी की जिम्मेदारी कई गुना बढ़ जाती है। बच्चों के लिए एक वक्त पर उसे मां के साथ-साथ टफ पापा की भूमिका भी निभानी पड़ती है। कैसे, बता रही हैं दीक्षा
नीमा कहने को तो हाउसवाइफ है, पर जिम्मेदारियां उस पर इतनी कि सुबह से शाम तक उसके पास फुर्सत नहीं होती। सुबह बच्चों को तैयार कर स्कूल छोड़ने निकली, तो पता चला कि घर के मेंटेनेंस का चेक देना है। उसे याद आया कि चेकबुक तो खत्म है, बैंक से चेकबुक मंगवानी पड़ेगा। घर लौटी, तो पाया कि किचन का नल लीक कर रहा है। प्लंबर ने आने के बाद बताया कि वॉशर नया लगेगा। बच्चों ने स्कूल से आते ही रट लगा दी कि कल छुट्टी है, आज खाना खाने बाहर चलेंगे। बच्चों की रोज की नई फरमाइश होती है। कभी उनके स्कूल के लिए कुछ खरीदना होता है, तो कभी उनके दोस्त की जन्मदिन की पार्टी के लिए तोहफे। बच्चे दूसरे बच्चों की तरह हर वीकएंड बाहर जाने की जिद करते हैं, तो नीमा मना भी नहीं कर पाती।
पति पिछले दो सालों से मुंबई में नौकरी कर रहे हैं और वह यहां अपना घर संभाल रही है। पति मुंबई में दोस्तों के साथ रहते हैं। उनकी पूरी कोशिश है कि जल्द से जल्द वापस आ जाएं। पर नौकरी इतनी आसानी से मिलती भी तो नहीं। बच्चों का स्कूल, अपना घर छोड़ कर नए शहर में जा कर बसना भी आसान नहीं। पति हर साल चार-पांच बार उनसे मिलने आते हैं और उन दिनों नीमा इतनी व्यस्त होती है कि पति से घर और दूसरी शिकायतें नहीं कर पाती। इसके बाद वही रुटीन.. घर से लेकर बाहर तक की जिम्मेदारियों की पोटली सिर पर।
नीमा को लगता है कि पापा के घर पर ना रहने से बच्चों को कोई कमी महसूस नहीं होनी चाहिए। सोशल एक्टिविस्ट और मनोचिकित्सक डॉ. करुणा मदान कहती हैं, ‘इन दिनों यह आम बात हो गई है कि पति नौकरी के लिए दूसरे शहर जाते हैं और पत्नियां अकेले घर और बच्चों को संभालती हैं। कई बार तो शहर में रहते हुए भी पति इतने व्यस्त होते हैं कि सप्ताह भर तक बच्चों का मुंह नहीं देख पाते। मां घर और स्कूल हर जगह उनकी गाजिर्यन होती हैं।’
करुणा के अनुसार, मां जब पापा का रोल अदा करने लगती है तो पहली समस्या आती है कि कुछ बच्चे उन्हें पापा का रुतबा नहीं देना चाहते, उनकी बात नहीं मानते, उन्हें वो आदर नहीं देते, जो पापा को देना चाहिए। आमतौर पर बच्चों के लिए पापा का मतलब घर चलाने वाले यानी ब्रेड अर्नर से होता है। बच्चों को पता होता है, पैसे कमाने वाला कौन है। पापा बच्चों की जरूरतों को अलग ढंग से देखते हैं। वे बच्चों की हर मांग पूरी करते हैं, जबकि मांएं कीमत के फेर में उलझ जाती हैं। पापा अगर बच्चे से कुछ वादा करते हैं, तो उसे पूरी तरह निभाते हैं, पर कई बार मांएं टांग अड़ा देती हैं कि तुम्हें साइकिल की इस समय जरूरत नहीं। बच्चों को मां का पापा बनने के बाद यह रुख पसंद नहीं आता।
पापा के पास हमेशा तर्क होता है। पापा अपनी बात पूरे रुतबे से रखते हैं। मां को भी यही करना होगा। अगर बच्चों के सामने वह आंसू बहा देगी तो वह कभी उनकी पापा नहीं बन सकेगी। पति की अनुपस्थिति में पत्नी की दूसरी सबसे बड़ी चिंता होती है घर और बच्चों की सुरक्षा। करुणा कहती हैं कि अपने आसपास हमेशा सपोर्ट सिस्टम रखना चाहिए ताकि मुसीबत में साथ देने वाले लोग हमेशा आसपास हों।
डबल रोल में आप
बच्चों के साथ बहुत रोक-टोक, कंजूसी मत कीजिए। अगर आपने उनसे प्रॉमिस किया है कि परीक्षा में अच्छे नंबर लाने पर पिक्चर दिखाने ले जाएंगे, तो अच्छा रिजल्ट आने के बाद बहाना मत बनाइए।
बाहर ले कर जाएं, तो बच्चों को मनमानी न करने दें। आपकी डांट का उन पर पूरा असर होना चाहिए। अपना मत बार-बार नहीं बदलिए।
आपको अपनी यह दोहरी जिम्मेदारी भारी लग सकती है। पर इसे मजबूरी की तरह नहीं, बल्कि चुनौती की तरह लीजिए।
बच्चों को ही-मैन पापा अच्छे लगते हैं और सुपर मॉम। उनके स्कूल जाते समय अच्छे से तैयार होकर जाएं। टीचर से पूरे आत्मविश्वास के साथ बात करें और टीचर के सामने बच्चों को कतई न डांटें।