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पेपर खराब हो गया तो घबराएं नहीं, आगे की सुध लें

गलतियों से सीख कर जो कदम आगे बढ़ाता है, जीत उसी की होती है। यही बात बोर्ड की परीक्षा दे रहे छात्रों पर भी खरी उतरती...

पेपर खराब हो गया तो घबराएं नहीं, आगे की सुध लें
Wed, 07 Mar 2012 01:54 PM
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गलतियों से सीख कर जो कदम आगे बढ़ाता है, जीत उसी की होती है। यही बात बोर्ड की परीक्षा दे रहे छात्रों पर भी खरी उतरती है। पिछला कोई पेपर यदि किसी कारण खराब भी हो गया है तो संभावनाएं वहीं पर खत्म नहीं हो जातीं। अवसर अभी भी आपके सामने हैं। जरूरत है तो बस हौसले से भरा कदम बढ़ाने की। इन परिस्थितियों में पूरी उम्मीद के साथ कदम कैसे बढ़ाया जाए, इस बारे में बता रहे हैं संजीव कुमार सिंह

सीबीएसई बोर्ड की परीक्षाएं चल रही हैं। 12वीं के छात्रों की इंग्लिश के पेपर तथा 10वीं के छात्रों की गणित के पेपर के साथ शुरुआत हो चुकी है। जाहिर-सी बात है कि किसी के पेपर अच्छे हुए होंगे तो किसी के खराब। जिन छात्रों ने अच्छा किया होगा, वे खुश हो रहे होंगे और जिनके प्रश्न गलत अथवा छूट गए होंगे, वे खुद को मन ही मन कोस रहे होंगे।

सीबीएसई टेलीकाउंसलिंग पैनल की सदस्या विनीता कौल का कहना है कि हालांकि यह इंसानी फितरत है कि लोग थोड़ी-सी गलती पर हतोत्साहित हो जाते हैं, पर इसमें नया कुछ भी नहीं है। इस स्थिति में जो शांत रहते हुए बेहतर प्रदर्शन करते हैं, उन्हीं को सफलता मिलती है। शुरुआती पेपरों में यदि कुछ कमी रह गई है तो आगे चल कर उसकी पूर्ति की जा सकती है। परंतु होता यह है कि छात्र खराब पेपर का रोना लेकर बैठ जाते हैं। परिणामस्वरूप उनका अतीत तो मनमाफिक होता नहीं, उल्टे वे अपना वर्तमान व भविष्य भी खराब कर लेते हैं।
अब सवाल यह उठता है कि क्या छात्रों को एक पेपर खराब होने के बाद सारी उम्मीदें छोड़ देनी चाहिए। नहीं, क्योंकि बाकी के पेपर आपकी किस्मत संवार सकते हैं, बशर्ते आप अपने मन से खराब पेपर का भूत उतार कर आगे के पेपरों की तैयारी में जुट जाएं। इसके लिए आपको कुछ बातों का खास ख्याल रखना होगा।

जो हो चुका उसे बिसार दें
यह सही है कि अच्छी शुरुआत से आत्मविश्वास बढ़ता है और आगे भी बेहतर कर गुजरने की प्रेरणा मिलती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आरंभिक झटकों के बाद संभला नहीं जा सकता। अब जबकि शुरू के कुछ प्रश्नपत्रों में आप मनचाही खुशी हासिल नहीं पा सके हैं तो शेष बचे प्रश्नपत्रों में अपना सर्वश्रेष्ठ देने का निश्चय आपको करना ही होगा। पुरानी बातों को बार-बार याद करने से कोई फायदा नहीं होने वाला। बेहतर यही होगा कि उसे जल्द से जल्द भुला कर आगे के प्रश्नपत्रों के बारे में सोचें। जो गलतियां हुई हैं, उन्हें दोबारा न दोहराते हुए विषय के मुताबिक तैयारी करते रहें।

कुछ तो लोग कहेंगे
कुछ लोग ऐसे भी मिलेंगे, जो आपकी शुरुआती असफलता पर आपको हाशिए पर खड़ा करने की कोशिश करेंगे। ऐसे लोग आपके घर-परिवार के सदस्य भी हो सकते हैं और बाहरी भी। कई बार अभिभावक भी अपना आपा खो देते हैं। वे बच्चों को कई तरह के कमेंट्स करते हैं,जैसे- मुझे तो पता था कि तुम्हारी तैयारी ठीक नहीं है, कल जल्दी कैसे सो गए, तुम्हारा फलां दोस्त तो रात के दो बजे तक पढ़ता है, तुम इस बार लुटिया डुबो कर रहोगे, मेरी उम्मीदें तो तुमसे टूट चुकी हैं आदि। यह या इनसे मिलते-जुलते जुमले आपको परेशान करने के लिए पर्याप्त होते हैं। न चाहते हुए भी इनका आप पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से मानसिक दबाव बन जाता है। इनसे विचलित हुए बिना अपनी कोशिशें जारी रखें। आलोचनाएं यदि आपके हित में हैं तो उन्हें सकारात्मक रूप में स्वीकार करें, परन्तु उन्हें लेकर मन में तनाव न पालें।

हौसले से मिलेगी मंजिल
कभी-कभी हौसले के दम पर ऐसी चीजें हासिल हो जाती हैं, जिनकी आपने कभी कल्पना भी न की होगी। गलतियां आपका कुछ न कुछ नुकसान तो करेंगी ही, पर आपके अंदर जज्बा कायम है तो काफी कुछ सुधारा जा सकता है। बस, आप अपना हौसला न खोएं। इसके विपरीत हौसले के अभाव में आप कभी भी अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे सकते। एक पेपर खराब भी हो जाए तो इससे बात खत्म नहीं हो जाती। इसमें दो राय नहीं कि आप वापसी कर सकते हैं। अब तो प्रवेश परीक्षा का जमाना है। मेडिकल व इंजीनियरिंग, हर जगह प्रवेश परीक्षा के बूते एडमिशन मिल रहा है। ग्रेजुएशन कोर्स में दाखिला भी प्रवेश परीक्षा की राह से होकर गुजरता है। ऑनर्स कोर्स में ‘बेस्ट ऑफ  फोर’ को काउंट किया जाता है, इसलिए हौसला करके आगे के पेपरों में बेहतर कर अपनी संभावनाएं बनाएं रखें।

बचें बाधाकारी तत्वों से
जब आपको वापसी करनी है तो कई तरह की सावधानियों का भी ख्याल रखना होगा। ऐसे में छात्रों को बाधा उत्पन्न करने वाली हर चीज जैसे मोबाइल फोन, इंटरनेट, सोशल नेटवर्किंग साइट्स और दूसरों के द्वारा किए गए कमेंट्स आदि से बचना होगा। कई बार छात्र इस स्थिति में घर वालों से बात करना छोड़ देते हैं। सुबह-शाम जो टहलने जाते थे, उसे बंद कर खुद को एक कमरे में कैद कर लेते हैं। ऐसा करके वे अपनी परेशानी को और अधिक बढ़ा रहे होते हैं। टहलना व दिमाग रिफ्रेश करने के लिए कुछ देर तक टीवी देख लेना गलत नहीं है। हां, उसके वशीभूत हो जाना गलत है।
 
खुद से करना होगा कमिटमेंट
नए साल पर आपने कोई रिजॉल्यूशन भले ही न लिया हो, परन्तु अब बिना इसके काम नहीं चलने वाला। आपको खुद से यह कमिटमेंट करना होगा कि जितना हुआ, वही काफी है, आगे और नहीं खोना है। इस संकल्प को लेने के अलावा उसका ईमानदारीपूर्वक पालन भी करना है। समय की कमी अथवा अन्य सुविधाओं का रोना रोने वाले व्यक्ति को यही जवाब है कि उसने समय का सदुपयोग नहीं किया। दुनिया में हर किसी को दिन-रात मिला कर 24 घंटे ही मिलते हैं। उसी में उन्हें अपनी प्रतिभा को साबित करना होता है। छात्र यदि कुछ बेहतर करना चाहते हैं तो इसकी गुंजाइश हमेशा रहती है।

मिशन बोर्ड एग्जाम 2012

क्या करें
अपनी प्लानिंग को फिर से रिव्यू करें
गलतियों को न दोहराने का संकल्प लें
घबराहट की स्थिति में हौसला बनाए रखें
आगे की तैयारी के लिए काउंसलर/टीचर्स से चर्चा करें
खराब पेपर के बारे में ज्यादा न सोचें

क्या न करें
अपनी सोच को निगेटिव न बनाएं
दोस्तों से ज्यादा सवाल-जवाब न करें
घर वालों की बातों पर रिएक्ट न करें
नशीले पदार्थों अथवा दवाओं का सेवन न करें
रात-रात भर जाग कर पढ़ाई न करें

एक्सपर्ट कमेंट
जो हो चुका, उस पर ज्यादा न सोचें
चारू कपूर, प्रिंसिपल
गंगा इंटरनेशनल स्कूल, नई दिल्ली

हो सकता है छात्र शुरुआती पेपरों में हड़बड़ाहट की वजह से अपनी पूरी क्षमता का उपयोग न कर पाया हो। इसका मतलब यह नहीं कि अब करने के लिए कुछ बचा ही नहीं है। एक या दो पेपरों पर छात्र की पूरी कुंडली नहीं लिखी जा सकती। जिन छात्रों के पेपर खराब हुए हैं, उन्हें खुद पर संयम रखने की जरूरत है।

अभी तक जो भी पेपर हुए हैं, वे बहुत ही सिस्टेमैटिक थे। आगे भी छात्रों को कोई विशेष दिक्कत नहीं आएगी,  इसलिए बहुत घबराने की जरूरत नहीं है। बारहवीं का पूरा पाठय़क्रम एनसीईआरटी पर आधारित है। जहां तक मैथ्स के पेपर का सवाल है, उससे छात्र डरते हैं, पर उसमें सब कुछ वर्बल नहीं होता, बल्कि उसकी तैयारी लिख कर की जाती है। अभी शुरुआत है और छात्र के पास पूरा समय बचा है। 

पेपर से पहले रात भर जगने का गलत नतीजा यह होगा कि अगले दिन पेपर में आपका दिमाग फ्रेश नहीं रहेगा। पिछले पेपरों में मैंने देखा कि छात्र पेपर खत्म करते ही उठ कर जाने लगे थे, जबकि उनके पास आठ-दस मिनट शेष बचे थे। ऐसे छात्रों को यही सलाह देना चाहूंगी कि इस समय को वे अपनी आंसर शीट का रिवीजन करने में लगाएं। हो सकता है कुछ गलतियां पकड़ में आ जाएं।

एक्सपर्ट व्यू
हर कोई नंबर वन नहीं हो सकता
जितिन चावला, करियर काउंसलर, नई दिल्ली

यह मन में धारण कर लें कि जिस किसी छात्र ने भी योजनाबद्ध तरीके से तैयारी की है, वह फेल नहीं हो सकता। फिर भी यदि कुछ गड़बड़ हो गई है तो आगे के पेपरों के लिए तैयारी में जुटे रहें, इससे नंबरों का बैलेंस बना रहेगा।

शुरुआती पेपर खराब होने की स्थिति में छात्र क्या करें?
पेपरों की खराबी का एक लेवल होता है। एक स्थिति ऐसी होती है कि छात्र 90-95 प्रतिशत की उम्मीद करते हैं और वे 80 प्रतिशत तक ही कवरेज दे पाते हैं। इसे पेपर खराब होना नहीं कहा जा सकता। हो सकता है, अगले पेपर में छात्र बेहतर कर गुजरे। इससे बैलेंस बन सकता है। दूसरी स्थिति उन छात्रों की होती है, जिनके कई अंक के प्रश्न छूट गए हैं या गलत हो गए हैं। उनकी यह गलती कुछ ही प्रश्नों में होगी। बाकी तो सही होंगे ही। संभव है कि कुछ गलतियां तो आपके स्तर पर भी हुई होंगी।  परिस्थिति चाहे जो भी हो, छात्रों को उससे सीख लेते हुए आगे का प्लान करना होगा।
 
दोबारा पटरी पर आने के लिए क्या कदम जरूरी हो सकता है?
पहले छात्र यह एनालिसिस करें कि आखिर गलती किस तरह से हुई। देखें कि क्या पेपर में स्पीड की कमी आड़े आ रही है या अंग्रेजी के पेपर में उन्होंने स्पेलिंग मिस्टेक ज्यादा की है, कहीं प्रश्नों की संख्या तो गलत नहीं डाल दी। ऐसी कई सावधानियां हैं, जिनके बल पर वे अपना आत्मविश्वास और तैयारी, दोनों पटरी पर ला सकते हैं। इस साल छात्रों को जो भी गैपिंग मिली है, उसके एक-एक मिनट का सदुपयोग करें। इस दौरान मॉक टेस्ट हल कर सकते हैं। आपके जो फ्रेंड पॉजीटिव बोलते हैं, उनसे बात करें।

अभिभावक अपने बच्चों की परेशानी किस हद तक कम कर सकते हैं?
अभिभावक पहले की अपेक्षा बहुत समझदार हो गए हैं। वे अपने बच्चों का पढ़ाई के हर कदम पर साथ दे रहे हैं। फिर भी अधिकांश पेरेंट्स ऐसे हैं, जो बच्चाे की जरा-सी गलती पर उन पर बरस पड़ते हैं। परीक्षा के दिनों में भी वे बच्चे पर कई तरह के दबाव बनाते हैं। ऐसे लोगों को खुद पर संयम रखने की जरूरत होती है, क्योंकि हर बच्चा नंबर वन नहीं हो सकता तथा उसकी एक सीमा होती है। हां, इस क्रम में वे बच्चे को और अच्छा करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। पढ़ते-पढ़ते जब बच्चा थक जाए तो वे आधे घंटे के लिए उसे बाहर ले जाकर टहला लाएं।

क्या इस स्टेज पर छात्रों को अपनी रणनीति में बदलाव लाना ठीक होगा?
छात्रों को अपनी रणनीति में पेपरों के बीच का गैप देख कर बदलाव लाने की जरूरत होती है। हालांकि बहुत ज्यादा बदलाव भी ठीक नहीं है, क्योंकि इससे छात्र अपनी लीक से हट कर चलने लगेगा। रिवीजन के दौरान लगता है कि कुछ जरूरी पॉइंट्स मिस हो रहे हैं तो उन्हें एक जगह नोट कर लें। जब भी समय मिले, उन्हें एक नजर देख लें। आपकी रणनीति यदि चार घंटे पढ़ने की है तो उसे बढ़ा कर आप पांच या छह घंटे तक कर सकते हैं। कुछ समय यदि अतिरिक्त है तो उसका उपयोग मॉक टेस्ट हल करने या पुराने पेपरों को देखने में करें।

छात्र को काउंसलर की मदद लेनी चाहिए या नहीं?
छात्रों को यदि लगता है कि उन्हें वास्तव में दिक्कत आ रही है तो उनके सामने कई रास्ते हैं। खुद अभिभावक उनके सबसे बड़े काउंसलर साबित हो सकते हैं। सीबीएसई ने एक फरवरी से ही अपनी हेल्पलाइन शुरू की है। छात्र टेलीफोन के जरिए अपनी समस्या का समाधान कर सकते हैं। इसके अलावा लगभग हर शहर में काउंसलर मौजूद हैं, जिनकी मदद छात्र फोन अथवा व्यक्तिगत संपर्क के जरिए ले सकते हैं। कुछ ऐसे दोस्त भी होंगे, जो आपके लिए काउंसलर की भूमिका में फिट बैठ सकते हैं। संकोच की चादर उतारते हुए छात्र तत्काल मदद के लिए आगे बढ़ें।

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