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Hindi News ‘इंग्लिश लिटरेचर में चिकलेट राइटर बने पसंद’

‘इंग्लिश लिटरेचर में चिकलेट राइटर बने पसंद’

बरेली। वरिष्ठ संवाददाता हमारे यहां जितने किस्म और भाषाओं का साहित्य है, उतने ही स्तर के पढ़ने वाले भी हैं। लेकिन अंग्रेजी साहित्य में भारतीय पाठकों की पसंद ऐसे लेखक बन रहे हैं जो युवाओं पर लिख रहे...


‘इंग्लिश लिटरेचर में चिकलेट राइटर बने पसंद’
Mon, 19 Dec 2011 01:40 AM
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बरेली। वरिष्ठ संवाददाता हमारे यहां जितने किस्म और भाषाओं का साहित्य है, उतने ही स्तर के पढ़ने वाले भी हैं। लेकिन अंग्रेजी साहित्य में भारतीय पाठकों की पसंद ऐसे लेखक बन रहे हैं जो युवाओं पर लिख रहे हैं। चेतन भगन, विक्रम सिंह, अरविंद जैसे लेखकों ने युवाओं को टारगेट कर लिखा और सफल हुए हैं। बरेली कॉलेज के अंग्रेजी विभाग की ओर से आयोजित की जा रही 56वीं ऑल इंडिया इंग्लिश टीचर्स कॉन्फ्रेंस में विद्वानों से ‘हिंदुस्तान’ ने इंर्ग्लिश लिटरेचर के प्रति भारतीय पाठकों की रुचियों पर चर्चा की तो कुछ बातें निकल कर आईं। वहीं युवा-भारतीय-अंग्रेजी लेखकों के बारे में इन विद्वानों की राय मिली-जुली रही। कुछ ने इन्हें ‘चिकलेट-बुक (टीनएजर्स के लिए लिखा गया हल्के स्तर का साहित्य) ऑथर’ से ज्यादा कुछ मानने से इनकार किया तो कुछ ने माना कि ये अंग्रेजी का एक पाठक वर्ग तैयार कर रहे हैं। युवा लेखक पाठक तैयार कर रहे हैं अच्छी किताबों को लोकप्रिय बनाना है तो जरूरी है कि खुद शिक्षक उनकी मार्केटिंग अपने स्टूडेंट्स से करें, न कि बाजार को यह करने दें। नए भारतीय लेखक अच्छा लिख रहे हैं, उनके स्तर की चिंता करने के बजाए यह खुश होने की बात है कि वे ऐसा पाठक वर्ग तैयार कर रहे हैं जो ताउम्र किताबों से जुड़ा रहेगा। - वीरेंद्र मिश्रा, डिपार्टमेंट ऑफ ह्यूमैनिटीज एंड सोशल सांइसेस, आईआईटी रुड़की रुमानियत में उलङो तो क्लासिक उपेक्षित रहेगा इंग्लिश लिटरेचर में युवाओं के लिए जो लिखा जा रहा है, उसमें रुमानियत है। टीनएजर्स और युवाओं को रुमानियम भरी कहानियां जल्दी पसंद आती हैं। मेरा मानना है कि यह लेखन युवाओं को एक सीमित मानसिक स्तर पर रोक देता है। इन्हें पसंद करने वाले युवा कभी हार्ड कोर क्लासिक को समझ नहीं पाएंगे। वे सच्चे साहित्य से दूर रह जाएंगे।- अनुराग कुमार, डिपार्टमेंट ऑफ ह्यूमैनिटीज एंड सोशल सांइसेस, आईआईटी रुड़की डाक पर निर्भर हैं अच्छे साहित्य के लिए इंग्लिश लिटरेचर के भारतीय और एशियाई लेखकों को पढ़ना अब गर्व की बात मानी जा रही है। यह अच्छा बदलाव है। वहीं छोटे शहरों में अच्छा साहित्य पढ़ने के लिए जरूरी है हम अच्छी लाइब्रेरियां तैयार करें। मैं मुरादाबाद से हूं और यकीन मानिए एक क्लासिक खरीदने के लिए भी डाक पर निर्भर रहना पड़ता है। - एकता कुशवाहा, इंग्लिश रिसर्च स्कॉलर, बरेली कॉलेज क्लासिक है सच्चा सहित्य अगर साहित्य पढ़ना चाहते हैं तो क्लासिकल पढ़ें, लोकप्रिय लेखकों की चक्कर में पढ़ना बेकार है। क्लासिक्स को अब भी युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाने की जरूरत है, यह काम डिग्री पाठ्यक्रम में इंग्लिश लिटरेचर पढ़ने से नहीं होगा। यकीन मानिए वहां 5% स्टूडेंट्स भी अच्छे लेखकों को नहीं पढ़ते। - पारुल सक्सेना, इंग्लिश रिसर्च स्कॉलर, बरेली कॉलेज उम्मीद करें पाठक बनेंगेयह जरूरी है कि अच्छा लिटरेचर पढ़ा जाए। आज चिकलेट-बुक राइटर्स युवाओं को आकर्षित तो कर रहे हैं, लेकिन उनके लेखन में अपने पाठकों को उच्च स्तर पर ले जाने की क्षमता नहीं दिख रही है। हालांकि उनके योगदान से उम्मीद जताई जा सकती है कि पाठक बनेंगे और जब यही पाठक चेंज तलाशेंगे तो बेहतर साहित्य की ओर रुख करेंगे। - डॉ. सुमन बाला, इंग्लिश डिपार्टमेंट, दिल्ली यूनिवर्सिटी इतनी विभिन्नता कि तीन भाषाओं में सोचती हूं!भारत में इंग्लिश लिटरेचर की प्रति रुचि देखकर अच्छा लगता है। और भारतीय लेखकों की पूरी फौज आ रही है जो पढ़ने की आदत बढ़ा रही है। यहां इतनी विभिन्नता हैं, जो भाषा को मजबूत करती हैं। मैं खुद जर्मन ओरिजन से हूं, लेकिन 30 साल बाद अब अलग-अलग मौकों पर इंग्लिश, हिंदी, जर्मन तीन भाषाओं में सोचती हूं। - रोसविता जोशी, जर्मन मूल की भारतीय अंग्रेजी लेखिका

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