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अब ई-कचरा उगलने लगा सोना

आपको शायद विश्वास न हो कि ई-कचरे से सोना बन सकता है। यह बात सत्य है। आपका मोबाइल जब बिल्कुल खराब हो जाता तो उसे फेंक देते हैं, मगर अब ऐसा मत...

अब ई-कचरा उगलने लगा सोना
Sun, 18 Dec 2011 08:34 PM
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आपको शायद विश्वास न हो कि ई-कचरे से सोना बन सकता है। यह बात सत्य है। आपका मोबाइल जब बिल्कुल खराब हो जाता तो उसे फेंक देते हैं, मगर अब ऐसा मत करिएगा। हमलोगों के लिए वह महज कूड़े का ढेर हो, लेकिन वास्तव में वह एक सोने की खान है। जापान में ई-कचरा भी सोने की खान सिद्ध हो रहा है। ई-कचरे से कीमती धातुएं प्राप्त की जा रही हैं। अब आप सोचेंगे यह कैसे संभव है, तो जानिए...

अर्बन माइनिंग द्वारा: जापान में ‘अर्बन माइनिंग’ एक फलता-फूलता व्यवसाय बन गया है। वहां ई-कचरे से कीमती से कीमती धातुओं को प्राप्त करने को ‘अर्बन माइनिंग’ कहते हैं। वहां हर वर्ष मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामान उपयोग के लायक नहीं रहते। योकोमाहा मेटल कंपनी लिमिटेड ने पुनर्चक्रण के द्वारा सेल फोनों के एक टन कचरे से 200 ग्राम सोना निकाला है। आप जानते ही हैं कि एक टन स्वर्ण अयस्क से लगभग 8 ग्राम सोना प्राप्त होता है। वह भी बड़ी मुश्किल से। वहीं अगर हम एक टन बेकार मोबाइल फोन ले लें तो उससे लगभग 95 किलोग्राम तक तांबा और 5 किलोग्राम चांदी निकल जाएगी। आप जानना चाहेंगे आखिर यह कैसे होगा?

हर इलेक्ट्रॉनिक सामान में उत्तम चालकता प्राप्त करने के लिए सोने का प्रयोग होता है। आपके घर में लगे स्विच, रीलें और अन्य कनेक्टरों के कॉन्टेक्ट्स की गोल्ड प्लेटिंग की जाती है, जिसमें सोने का इस्तेमाल होता है। लेकिन जब वह खराब या टूट जाता है तो उसे आप बेकार समझ कर फेंक देते हैं। हर साल करोड़ों कंप्यूटर, टेलीविजन, सेल फोन, टेलीफोन, वॉशिंग मशीन आदि बनाने में सोने का प्रयोग हो रहा है। इसके लिए जीपीसी (गोल्ड पोटेशियम सायनाइड) का प्रयोग होता है, इसे प्लेटिंग सॉल्ट भी कहते हैं।

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इलेक्ट्रॉनिकी उद्योग में हर वर्ष करीब 160 टन सोने की खपत होती है। आज इलेक्ट्रॉनिकी का मुख्य उत्पादक देश जापान है। वह अपने यहां कुल खपत होने वाले सोने का करीब 48 फीसदी सोना इसमें उपयोग करता है। अमेरिका में इसकी खपत इलेक्ट्रानिकी उद्योग में करीब 35 प्रतिशत है।

नैनो के युग में: हम अब धीरे-धीरे नैनो युग में प्रवेश कर रहे हैं, लेकिन इससे सोने की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। अंतरिक्ष में जा रहे उपग्रहों, रॉकेटों में तो इसका उपयोग अनिवार्य है। उनमें सोने का उपयोग अति सूक्ष्म परिपथों में हो रहा है। इन सर्किटों को एक सेरेमिक आधार पर मुद्रित किया जा रहा है। इसमें स्याही जैसा लेप होता है, जिसमें सोना मिला होता है। अब वो दिन दूर नहीं कि आप आभूषणों की तरह अपने इलेक्ट्रॉनिक सामान को गले से लगाकर रखेंगे, क्योंकि उसमें कीमती धातुएं छिपी हैं, इसलिए आप ई-कचरे को कचरा समझकर फेकिए मत। अब इसके पुनर्चक्रण के दौरान सोना, प्लेटिनम तथा चांदी के अलावा कम कीमती धातुएं जैसे तांबा, लोहा, निकेल आदि भी प्राप्त होता है। ई-कचरे से सबसे पहले इन धातुओं को निकाल लिया जाता है, उसके बाद जो प्लास्टिक बचता है, उसे जला दिया जाता है।

ऐसा अनुमान है कि संसार भर में हर साल लगभग तीन करोड़ से पांच करोड़ टन तक ई-कचरा का ढेर लग जाता है। हमारे देश में ही करीब दो लाख टन ई-कचरा उत्पन्न होता है, लेकिन अब ई-कचरे को कचरा समझकर कोई देश फेकेगा नहीं, बल्कि उससे सोना निकालेगा।
विजन कुमार पांडेय

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