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मूली के कवि को मौलिक श्रद्धांजलि

यह एक मूली गोष्ठी की रपट है, जिसे मूली की याद में कुछ मूलीवादी कवियों ने संभव...

मूली के कवि को मौलिक श्रद्धांजलि
Sat, 17 Dec 2011 08:53 PM
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यह एक मूली गोष्ठी की रपट है, जिसे मूली की याद में कुछ मूलीवादी कवियों ने संभव किया।

-वे महान थे।

-सब कुछ कहा जा चुका है, मुङो कुछ नया नहीं कहना। वे सचमुच महान थे। उनकी महानता बिकाऊ नहीं थी।

-वे सच्ची-मुच्ची महान थे। (यहां सच्ची से ज्यादा ‘मुच्ची’ पर जोर दिया गया) मेरे पास भी कहने को कुछ नया नहीं, बस इतना ही कि वे साकेत में रहते थे।

-अब मैं नया क्या कहूं। उनके बारे में यही सच है कि वे साकेत में रहते थे, लेकिन सब्जी वे खुद नहीं खरीदते थे। सिर्फ खाते थे। सब्जीवाला उनकी कविता में कई बार आया है। एक बार उन्होंने मूली के पैसे नहीं दिए। स्वाभिमानी था। उसने भी मूली के पैसे नहीं मांगे। जाहिर है, वह मूली की तरह आम आदमी था। वे मूली की तरह महान कवि थे। उनकी स्मृति को मैं आज प्रणाम करता हूं।

-मेरे साथी ने मेरे कहने के लिए कुछ नहीं छोड़ा है। मूली की बात आई है। आम आदमी की भी बात आई है। मूली मूलत: जनवादी होती है। उनकी एक कविता की एक पंक्ति के एक कोने में कविता में गोभी का फूल भी उगा हुआ है। वे मूली से गोभी तक आए। वे सचमुच प्रगतिशील थे।

-बहुत सारी बातें कह दी गईं। अब उन्हें दुहराकर मैं आपका वक्त जाया न करूंगा। तो भी आज मानता हूं कि वे महान थे, उनकी कविता में आम आदमी ही नहीं, आम औरतें तक आती-जाती रहती थीं। भाभी सब कुछ देखती रहती थीं। उनकी कविता में मूली आई, तो बडा विरोध हुआ, कहा गया कि उनकी कविता में बदबू है। ऐसे लोग आम आदमी के दुश्मन हैं। क्रांति के दुश्मन हैं। साथियो सावधान! मूली के खिलाफ आज भी साजिश जारी है। मैं पूछता हूं कि इस साजिश के पीछे कौन है? किसने मूली को सबसे निचला दर्जा दिया है? साथियो, अभी हमें बहुत काम करना है। जब तक क्रांति नहीं होती, मूली की स्थिति ऐसी ही रहनी है। सचमुच की क्रांति के बाद ही उन्हें सच्चे दिल से याद किया जा सकेगा।

-साथियो मैं भावुक हो रहा हूं। रो रहा हूं। ये बातें पहले क्यों नहीं बताईं। अरे, खबर तो देते। उन्हें याद न करना कमीनापन है। उनका कसूर  कि वे एक कवि थे, साकेत में रहते थे। आम आदमी से मूली लेते थे। इट्स सो फन, सो ग्रेट। उधर  मूली और आम आदमी गायब है। ओबामा ने कहा, एक ठो आम आदमी विद हिज मूली ला दो रोमेश! इट्स वंडरपुफल आइडिया। यू हिंडीवाला आर गेट्र। योर मूली इज गेट्र। मंदी को काटेगी मूली।कितना मौलिक था वह। जैसे मूली का परांठा विद चटनी!

वे कुछ-कुछ अंग्रेजी वाले थे, इसलिए बात के अंत में थैंक्यू कहना नहीं भूले।
गोष्ठी में तेरह जने थे। बोलता तो ‘वक्ता’ होता। सुनता तो ‘श्रोता’। उनके बीच में एक मरा हुआ कवि आ गया था।

आखिर में अध्यक्ष बोला, मेरे पास भी कहने को बहुत कुछ नहीं है। कल मेरे ड्राइवर ने पता नहीं क्यूं साकेत की तरफ से गाड़ी निकाली। पहचाना नहीं जा सका साकेत। लेकिन आज भी मेरी इन निगाहों ने साकेत की वह सड़क पहचान ली, जिस पर उनसे आखिरी बार मुलाकात हुई थी। मिलते ही पूछने लगे थे कि बताइए, वह हमारे वाला आम आदमी कहां है? मैंने उन्हें बताया कि इन दिनों वह चैनल चलाता है। ‘मूली चैनल’ अरबपति है। वे कतई हतप्रभ न हुए, सिर्फ मंद-मंद मुस्कुराए। वे मूली के कवि थे। मूली की ही तरह महान।

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