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कुशल क्षेम और कल्याण का प्रतीक माना जाता है स्वस्तिक

ऋग्वेद में स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है और स्वस्तिक की चार भुजाओं के द्वारा यह बताने का प्रयास किया गया है कि सूर्य ही सर्व शक्तिमान है और इसकी ऊर्जा चारों ओर विद्यमान...

कुशल क्षेम और कल्याण का प्रतीक माना जाता है स्वस्तिक
Mon, 12 Dec 2011 10:51 PM
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ऋग्वेद में स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है और स्वस्तिक की चार भुजाओं के द्वारा यह बताने का प्रयास किया गया है कि सूर्य ही सर्व शक्तिमान है और इसकी ऊर्जा चारों ओर विद्यमान है। पुराणों में स्वस्तिक को भगवान विष्णु का सुदर्शन-चक्र माना गया है। वस्तुत: स्वस्तिक चिह्न् चार मुख्य दिशाओं की शुभता को प्रदर्शित करने वाला शुभ चिह्न् है। इस चिह्न् की विशेषता यह है कि यह तभी शुभ है, जब यह घड़ी की दिशा में बना हुआ हो। ऊध्र्व भुजा सकारात्मक प्रगति को दर्शाती है। बाईं ओर की भुजा शुभ शक्ति संवर्धन को बताती है। नीचे की ओर की भुजा मनुष्य के ज्ञान और अभिमान को नियंत्रित करती है। इसी तरह सीधे हाथ की ओर की भुजा सत्य और निष्ठा में विकास को प्रदर्शित करती है।

सिद्धांत सार नामक ग्रंथ में स्वस्तिक को सम्पूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक माना गया है। स्वस्तिक के केंद्र को भगवान विष्णु की नाभि माना गया है, जिस पर उगे कमल पर बैठ कर ब्रह्म जी ने चार मुख और चार हाथों से चार वेदों का सृजन किया था। कई ग्रंथों में इसे चार वर्ण, युग, आश्रम का और चार प्रतिफल धर्म, अर्थ,  काम, मोक्ष का परिचायक भी बताया गया है। अमरकोश नामक ग्रंथ में ‘स्वस्तिक सर्वतो ऋद्ध’ लिखा गया है अर्थात स्वस्तिक चिह्न् का सृजन इसी भावना से किया गया है कि सभी दिशाओं में सबका कल्याण हो।

स्वस्तिक मुख्यत: सत्य और शक्ति का मिलन है। हम सभी जानते हैं कि सत्य और शक्ति दोनों ही एक दूसरे के बगैर अधूरे हैं, दिशा हीन हैं। स्वस्तिक आड़ी रेखा सत्य का प्रतीक है, जो सत्य की समता को भी प्रदर्शित करती है। उसी तरह खड़ी रेखा शक्ति को प्रदर्शित करती है। शास्त्रों में शिव को सत्य और पार्वती जी को शक्ति स्वरूपा माना गया है। इस तरह हम देखते हैं कि स्वास्तिक चिह्न् शिव और पार्वती का प्रतीक चिह्न् भी है। अत: इस चिह्न् का घर के द्वार पर अंकन करने से हमारे घर में समस्त देवों का वास होता है और शक्ति सम्पन्नता आती है।

प्रत्येक वास्तुदोष का समाधान है स्वस्तिक
वास्तु की दृष्टि से भी स्वस्तिक अत्यंत प्रभावकारी है। आम की या नीम की लकड़ी का बना, आवश्यकतानुसार सवा दो सेंटीमीटर, इंच या फिट का स्वस्तिक यदि घर के ईशान कोण में पुष्य नक्षत्र के दिन स्वस्ति वचनों का पाठ करते हुए स्थापित किया जाये या जिस स्थान पर वास्तुदोष हो उस स्थान पर स्वच्छता के साथ रखा जाये तो वास्तुदोष का अवश्य समाधान होता है। यदि घर के द्वार पर चांदी, सोने या तांबे का स्वस्तिक लगाया जाये तो लाभ होता है। यदि आपके घर में स्वास्थ्य सम्बंधी या घोर आर्थिक समस्या है, तो घर के प्रत्येक द्वार पर स्वस्ति मंत्रों का पाठ करते हुए रोली और हल्दी से स्वस्तिक बनाया जाये और उसका विधिवत् पंचोपचार पूजन किया जाये तो समस्या का समाधान होता है।

सारे देव हैं स्वस्तिक में
स्वस्तिक के बारे में ऋग्वेद में वर्णित स्वस्ति वचन में लिखा गया है-
’स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवा: अर्थात पहली भुजा इंद्र को समर्पित है।
’स्वस्ति न: पूषा विश्व वेदा: यानी दूसरी भुजा वेदो को समर्पित है।
’स्वस्ति नस्ताक्ष्र्यो अरिष्ट नेमि: अर्थात तीसरी भुजा आपदाओं से मुक्ति के लिये है।
’स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु यानी चौथी भुजा गुरु बृहस्पति को समर्पित है।

स्वस्तिक है शुभता का संकेत
स्वस्तिक शुभता का संकेत अक्षर है। सु और अस के मूल शब्दों से मिलकर बना यह संकेताक्षर सु यानी शुभता और अस अर्थात उपस्थित को दर्शाता है, यानी यह शब्द शुभता की उपस्थिति का प्रतीक चिह्न् है। शास्त्रों में इसको इस तरह से परिभाषित किया गया है, ‘स्वस्ति क्षेम कायति इति स्वस्तिक:’ अर्थात कुशल क्षेम और कल्याण का प्रतीक है स्वस्तिक चिह्न्। स्वस्तिक चिह्न् को गणेश जी का भी प्रतीक माना जाता है। इसके दोनों ओर दो खड़ी रेखाएं खींची जाती हैं, जो रिद्धि और सिद्धि के प्रतीक के रूप में कल्याण करती हैं। व्यापारी इस सम्पूर्ण चिह्न् का प्रयोग करते हैं। पातंजलि योगशास्त्र में किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पहले कार्य के निर्विघ्न सम्पूर्ण होने के लिये स्वस्ति वचन को अवश्य पढ़े जाने की अनिवार्यता पर जोर दिया गया है, लेकिन सभी जानते हैं कि यह कार्य हर किसी के लिये सम्भव नहीं है, अत: स्वस्तिक चिह्न् की रचना की गयी है।

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