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खुद की नहीं परिवार की होती है चिंता

हिन्दुस्तान प्रतिनिधि पटना। जब अरविंद को यह पता चला कि उनकी किडनी अब उनके शरीर का अंग नहीं रह गयी तो उन पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा। 1974 में जेपी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले पीड़ित अरविंद...

खुद की नहीं परिवार की होती है चिंता
Sun, 11 Dec 2011 12:26 AM
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हिन्दुस्तान प्रतिनिधि पटना। जब अरविंद को यह पता चला कि उनकी किडनी अब उनके शरीर का अंग नहीं रह गयी तो उन पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा। 1974 में जेपी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले पीड़ित अरविंद शुरू में अपना होश खो बैठे। अरविंद के परिवार में उनकी पत्नी, तीन बेटे व दो बेटियां हैं।

अरिवंद ने जब अपनी दो बेटियों को देखा तो वे भावुक हो गए। किडनी निकलने से पहले वे चार किलोमीटर पैदल चलते थे। लेकिन अब कुछ कदम चलने के बाद वे लड़खड़ाने लगते हैं। घर का माहौल भी ठीक नहीं रहता है। जब से बच्चों व अरिवंद की पत्नी को यह जानकारी मिली सब उन्हें लेकर परेशान रहते हैं।

अरिवंद ने बताया कि अपना पूरा जीवन उन्होंने समाज सेवा में लगा दिया। लेकिन उन्हें इतना बड़ा धोखा मिला जिंससे उनकी जान पर आफत आ गयी। अरविंद ने पुलिस प्रशासन से इंसाफ देने की गुहार लगायी है। पीड़ित का कहना है कि उनके साथ भले ही ऐसी घटना हो गयी लेकिन दूसरे किसी के साथ ऐसा न हो। इसके लिए उन्होंने प्रशासन से उचित कार्रवाई करने की अपील की है।

अरिवंद ने कहा कि होनी होकर रहती है। उनकी तबीयत खराब थी इसिलए वे उस अस्पताल में चले गए।

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