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नमस्ते और बाय-बाय की दिलचस्प कहानी

तुम जब किसी से भी मिलते होगे तो तुम उसे ‘नमस्ते या हैलो’ और उससे विदा लेते वक्त ‘टा-टा या बाय-बाय’ जरूर करते होगे। इस तरह के अभिवादन तुम्हारे गुड मैनर्स को दिखाते...

नमस्ते और बाय-बाय की दिलचस्प कहानी
Tue, 01 Nov 2011 10:46 AM
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तुम जब किसी से भी मिलते होगे तो तुम उसे ‘नमस्ते या हैलो’ और उससे विदा लेते वक्त ‘टा-टा या बाय-बाय’ जरूर करते होगे। इस तरह के अभिवादन तुम्हारे गुड मैनर्स को दिखाते हैं। लेकिन क्या तुम्हें पता है कि अभिवादन करने की परंपरा दुनिया भर में काफी पहले से ही रही है और इसके लिए अलग-अलग तरीके अपनाए जाते रहे हैं।

हमारे देश में राजा-महाराजाओं के समय से ही बड़ों को उनसे छोटे हाथ जोड़कर विनम्र भाव से नमस्ते करते थे या दूर से ही कमर झुका कर दाहिने हाथ से सलाम करते थे, जबकि अंग्रेज अपनी टोपी उतार कर हैलो कहकर अभिवादन करते थे और उनसे मिलने आए लोग भी बतौर अभिवादन अपनी पगड़ी या साफा उतारते थे।

अभिवादन या शिष्टाचार के ये तरीके आज के आधुनिक दौर में भी हमारी जिदंगी का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं। आम जिंदगी में तो हम रोजाना इनका इस्तेमाल करते ही हैं, राजनीतिक स्तर पर भी इन्हें अपनाया जाता है। आज भी जब किसी देश का एम्बेसडर दूसरे देश के दौरे पर आता या जाता है, तब दोनों देशों के अधिकारी, विदा करने से संबंधित उस देश के तौर-तरीकों की जानकारी पहले से ही ले लेते हैं और एम्बेसडर के दौरे के दौरान उनके हिसाब से आचरण करते हैं।

तुम एक-दूसरे से विदा लेते वक्त टा-टा, बाय-बाय, गुड बाय, गुड डे, गुड नाइट या अलविदा कहते होगे। जापानी भाषा में तो इसे सायोनारा कहा जाता है। बाय-बाय का प्रयोग पहली बार 1823 में एक बच्चे द्वारा रिकॉर्ड की गई रेडियो वार्ता में किया गया था। इसके बाद ‘टा-टा फॉर नाउ’ का प्रयोग बी.बी.सी. ने 1941 में अपने एक प्रोग्राम ‘इटमा’ में किया था। आज की तेज रफ्तार भरी जिदंगी में तो इन शब्दों का धड़ल्ले से प्रयोग होता है।

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