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नदियों की दुश्मन है सरकार : राजेंद्र सिंह

जल पुरुष के नाम से विख्यात समाजसेवी और पानी बचाओ कार्यकर्ता राजेन्द्र सिंह ने कहा है कि सरकार नहीं चाहती की नदियां...

नदियों की दुश्मन है सरकार : राजेंद्र सिंह
Tue, 11 Oct 2011 03:06 PM
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जल पुरुष के नाम से विख्यात समाजसेवी और पानी बचाओ कार्यकर्ता राजेन्द्र सिंह ने कहा है कि सरकार नहीं चाहती की नदियां बचे।
 
मैग्सेसे पुरकार विजेता एवं तरुण भारत संघ के अध्यक्ष सिंह ने भीकमपुरा में अपने आवास पर संवाददाताओं से कहा कि पूज्य पवित्र गंगा-यमुना को लोगों ने मेला ढोने वाली नदियां बना दिया है। साधु, संत, समाज और सरकार इन्हीं नदियों में गंदगी बहाते हैं। गंगा को सबसे ज्यादा प्रदूषित करने वाले कानपुर के मिर्जा इस्माईल को केन्द्र सरकार द्वारा पद्मश्री से नवाजे जाने पर सवाल करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे व्यक्ति को पुरस्कृत किए जाने पर यह कैसे उम्मीद की जा सकती है कि सरकार देश की नदियों को बचाने के लिए कृत संकल्प है।

पानी वाले बाबा ने कहा कि केन्द्र सरकार पानी का निजीकरण करने पर तुली हुई है। देश में न तो कोई जल नीति है और न ही नदी नीति। उन्होंने कहा कि 1987 में पहली जल नीति बनाई गई थी उस वक्त जल का निजीकरण करने की कोई योजना नहीं थी, लेकिन जब दूसरी जल नीति 2001 में बनाई गई तो उसका आधार ही निजीकरण था। सिंह ने कहा कि उस नीति का व्यापक विरोध होने पर सरकार ने आश्वासन दिया था कि इसमें संशोधन किया जाएगा। लेकिन आज तक संशोधित नीति जनता के सामने नहीं आई है।

उन्होंने कहा कि प्रकृति प्रदत्त जल को बाजार की वस्तु मानना ठीक नहीं है। लेकिन आज पानी पर भूमाफियाओं का राज है। गिरते भूजल का दोहन कर बडी़ कम्पनियों द्वारा शराब और महंगे शीतल पेय बनाए जा रहे हैं जो कि भारतीय संस्कृति, जनता आर्थिक व्यवस्था तथा स्वास्थ्य के लिए खतरा है। जल पुरुष ने कहा कि भारत जैसे देश जहां पर्यावरण रक्षा के लिए काम हो रहा हो वहां पानी से खिलवाड़ करना भविष्य में जल संकट का संकेत है। उन्होंने कहा कि सरकार सामुदायिक विकेन्द्रित जल प्रबंधन की बात तो करती है लेकिन अमल में नहीं लाती है।

उन्होंने चेताया कि इसी तरह जल का कुप्रबंधन चलता रहा तो आगामी लडा़इयां पानी के लिए होंगी। हालांकि पानी के अव्यवस्थित वितरण को लेकर शहरी इलाकों में अधिकारियों का घेराव और आक्रोशित लोगों द्वारा रास्ता जाम करने जैसे छोटे आंदोलन शुरू हो गए हैं। सिंह की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक नदी कूच में नदियों पर आए संकट के बरे में विस्तृत जानकारियां दी गई हैं। पुस्तक में प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण पर जोर देते हुए कहा गया है कि गांवों में तालाब, जोहड और नालों पर अतिक्रमण और आबादी बस जाने के दुष्परिणाम होंगे।

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