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भ्रष्टाचार के चर्चित मामले

जीप घोटाला 1948 में मेनन ब्रिटेन में भारत के उच्चयुक्त थे। कश्मीर पर पाकिस्तानी हमले के बाद भारतीय सेना को करीब 4603 जीपों की जरूरत थी। मेनन के कहने पर रक्षा मंत्रलय ने 1500 जीपें 300 पाउंड प्रति...

भ्रष्टाचार के चर्चित मामले
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 13 Nov 2010 09:55 PM
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जीप घोटाला
1948 में मेनन ब्रिटेन में भारत के उच्चयुक्त थे। कश्मीर पर पाकिस्तानी हमले के बाद भारतीय सेना को करीब 4603 जीपों की जरूरत थी। मेनन के कहने पर रक्षा मंत्रलय ने 1500 जीपें 300 पाउंड प्रति जीप का आदेश दे दिया। नौ माह तक एक जीप भी नहीं आयी। 9 माह बाद 1949 में 2000 जीपों में से सिर्फ 155 जीपें मद्रास बंदरगाह में पहुंचीं। ज्यादातर जीपें चौथी श्रेणी की थीं। जांच में मेनन दोषी पाए गए। मेनन ने जिम्मेदारी भी ली। बात यही खत्म हो गई।

सिराजुद्दीन की डायरियां
यह 1956 की बात है। उड़ीसा के कुछ नेता व्यापारियों के काम करवा रहे थे और उनसे दलाली ले रहे थे। इस बाबत पूर्वी भारत के एक बड़े पूंजीपति मुहम्मद सिराजुद्दीन एंड कंपनी के कोलकाता व उड़ीसा दफ्तरों में छापे मारे गए। सिराजुद्दीन की कई खानें थीं। खोजबीन के दौरान कुछ ऐसी डायरियां सामने आई जिनसे पता चला कि उनके राजनेताओं से संबंध कितने प्रगाढ़ थे। खैर, इन्हें मामूली छापे मानकर रफा दफा कर दिया गया। सात साल बाद कुछ अखबारों में वो डायरियां छपने लगी। अंत में खान और ईंधन मंत्री केशवदेव मालवीय ने कबूल कर लिया कि उन्होंने दलाली ली है।

मूंदड़ा कांड की हेराफेरी
1957 में उद्योगपति हरिदास मूंदड़ा की विभिन्न कंपनियों की सहायता के लिए उनके शेयर भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा 1.25 करोड़ रुपये में खरीदवाये गए। निगम द्वारा शेयरों की बढ़ी हुई कीमत दी गई। जांच चली। वित्त मंत्री टी.टी कृष्णामाचारी, वित्त सचिव एच.एम पटेल और भारतीय जीवन बीमा निगम के अध्यक्ष दोषी पाए गए। मूंदड़ा पर 160 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप थ। 180 अपराध के मामले थे। दबाव में आकर वित्त मंत्री को पद से हटा दिया गया। पर दूसरे ही क्षण उन्हें बिना विभाग का मंत्री बना दिया गया। मूंदड़ा गिरफ्तार हुए। वह छूट भी गए।

कैरों के कारनामे
पंजाब के मुख्यमंत्री सरदार प्रताप सिंह कैरों पर उनके मुख्यमंत्रित्व काल में अनापशनाप धन-संपत्ति इकट्ठी करने का आरोप लगा। कैरों या उनके परिजनों पर जिन संपत्तियों का मालिकाना हक प्राप्त करने का आरोप लगा, उनमें प्रमुख थे-अमृतसर कोऑपरेटिव कोल्ड स्टोरेज लि. प्रकाश सिनेमा, कैरों ब्रिक सोसायटी, मुकुट हाउस, नेशनल मोटर्स, अमृतसर, नीलम सिनेमा, चंडीगढ़, कैपिटल सिनेमा आदि। जांच में प्रताप सिंह कैरों को बरी कर दिया।

नागरवाला कांड
24 मई 1971। एसबीआई की संसद मार्ग, दिल्ली की शाखा में खजांची के पास आए एक फोन में बंगलादेश के एक गुप्त मिशन के लिए 60 लाख रुपये की मांग की गई और रसीद प्रधानमंत्री कार्यालय से लेने को कहा गया। कहा गया कि यह आवाज प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पीएन हक्सर की थी। बाद में पता चला कि फोन वाला व्यक्ति कोई और था। रुपये लेने वाले और नकली आवाज निकालने वाला व्यक्ति रुस्तम सोहराब नागरवाला को गिरफ्तार किया गया। 1972 में संदेहास्पद स्थितियों में उसकी मृत्यु हो गई। मामला रफा दफा कर दिया गया। निष्कर्ष कुछ नहीं निकला।

चारा घोटाला
चारा घोटाला बिहार सरकार के पशुपालन विभाग से संबंधित था। उस समय के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और 1980 में मुख्यमंत्री जगनाथ मिश्र दोनों का नाम इस घोटाले से प्रमुख रूप से जुड़ा। इस घोटाले में करीबन 950 करोड़ रुपये की गड़बड़ी सामने आयी। स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम को जांच कार्य सौंपा गया। भ्रष्टाचार के इन आरोपों के चलते केंद्र और राज्य स्तर पर लालू यादव और उनकी पार्टी के सदस्यों को सीट से हाथ धो बैठना पड़ा।

प्रतिभूति घोटाला
इस घोटाले में बैंकों के बड़े अफसर, सरकार के मंत्री और शेयर दलाल सरकारी नियम-कायदों को तोड़ कर चालाकी से करोड़ों रुपये को इधर-उधर करते रहे। 10 हजार रुपये करोड़ से अधिक का घोटाला इस मामले में हुआ। हर्षद मेहता ने यह भी कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री को एक करोड़ रुपये की रिश्वत दी, पर सिद्ध नहीं हुआ। दो ने मंत्रिपदों से इस्तीफा भी दिया। पर अंत तक माना गया कि वास्तविक अपराधियों को छिपाया गया है।

बोफोर्स
1986 में स्वीडन की ए.बी बोफोर्स कंपनी से 155 तोपें खरीदने का सौदा तय किया गया। सामने आया कि इस आदेश को पाने के लिए 64 करोड़ रुपयों की दलाली दी। इसकी खरीद की शर्तो पर प्रश्नचिह्न् लगा। रक्षा राज्यमंत्री अरुण सिंह को इस्तीफा देना पड़ा।

तहलका कांड
वर्ष 2001 में तहलका द्वारा स्टिंग ऑपरेशन किया गया, जिसमें 15 रक्षा समझौते में गड़बड़ी का आरोप था। इस घोटाले के साथ जॉर्ज फर्नाडीज जो उस समय रक्षा मंत्री थे और इंडियन नेवी के पूर्व प्रमुख एडमिरल सुशील कुमार का नाम जोड़ा गया।

अंतुले
1982 का यह कांड इसलिए जरूरी है कि इस कांड के बाद न सिर्फ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से अब्दुल रहमान अंतुले को हटना पड़ा, बल्कि इस कांड को उजागर करने में मीडिया की बड़ी भूमिका थी। मुख्यमंत्री अंतुले ने इंदिरा गांधी प्रतिभा प्रतिष्ठान, संजय गांधी निराधार योजना, स्वावलंबन योजना आदि ट्रस्ट के लिए पैसा इकट्ठा किया। जो बड़े व्यापारी या मिल मालिक ट्रस्ट को पैसा देते थे, उन्हें सीमेंट का कोटा मिलता था। वह नियम-कानूनों से बरी समझ लिया जाता था। सीमेंट में रेत भी मिलाई गई। जांच में बाद में अंतुले को इस्तीफा देना पड़ा।

कुओ तेल कांड
1980 में कुलो तेल कांड की कहानी शुरू होती है। इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने 3 लाख टन शोधित तेल और 5 लाख टन हाई स्पीड डीजल की खरीद के लिए टेंडर जारी किए। टेंडर हरीश जैन को मिला, जिनकी पहुंच राजनैतिक गलियारों तक थी। सौदे में नौ करोड़ रुपये की हेराफेरी हुई। जांच कार्य चला, लेकिन प्रधान मंत्री कार्यालय से फाइलें गायब हो गईं। शुरू में तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री पीसी सेठी को इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन बाद में फिर वे मंत्री बन गए।

देवराज अर्स
आपातकाल के दौरान कर्नाटक के मुख्य मंत्री देवराज अर्स और उनके मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के करीब 25 आरोप लगे। जिसमें 20 एकड़ जमीन अपने दामाद को आबंटित करने, अपने परिवार को बेंगलुरू की पॉश कालोनी में चार कीमती भूखंड आबंटित करने, अपने भाई को राज्य फिल्मोद्योग का पूरा प्रभारी बनाने आदि सगे-संबंधियों को अवैध तरीकों से फायदे पहुंचाने के कई आरोप लगे। पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

 

 

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