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Hindi News ‘ ड्रीम 2050’ के लिए हथियार और फिटनेस का सहारा सेना

‘ ड्रीम 2050’ के लिए हथियार और फिटनेस का सहारा सेना

अतुल उपाध्यायपटना(हि.ब्यू.)। अंडर ग्राउंड रणनीति और ओवर ग्राउंड ऑपरेशन। रेड कोरिडोर के विस्तार के लिए यही है माओवादियों की रणनीति। पर, इसके लिए उनकी तैयारी जितनी व्यापक और नियमित है वह सुरक्षा...


‘ ड्रीम 2050’ के लिए हथियार और फिटनेस का सहारा
सेना
Thu, 15 Apr 2010 12:52 AM
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अतुल उपाध्यायपटना(हि.ब्यू.)। अंडर ग्राउंड रणनीति और ओवर ग्राउंड ऑपरेशन। रेड कोरिडोर के विस्तार के लिए यही है माओवादियों की रणनीति। पर, इसके लिए उनकी तैयारी जितनी व्यापक और नियमित है वह सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ा खतरा है। माओवादी हमले,विस्फोट और हिंसा के जरिए सिर्फ अपनी उपस्थिति दर्ज करना नहीं चाहते हैं बल्कि इसके पीछे उनकी मंशा हथियार के बल पर सत्ता पर काबिज होना है। माओवादी नेता किशन जी के ऐलान के मुताबिक माओवादियों ने ‘ड्रीम 2050’का टार्गेट तय कर रखा है। यानी उनकी चाहत है कि आज से करीब 40 साल बाद सत्ता उनकी होगी। जानकारों की मानें तो वर्ष 2009 तक का उनका लक्ष्य 35 फीसदी इलाकों में अपना दबदबा कायम कर लेने का था। आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उड़ीसा, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल और बिहार उनकी प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि सत्ता नहीं लेकिन लगभग टार्गेट के अनुसार माओवादियों ने कई इलाकों में अपना प्रभाव और उपस्थिति जरूर दर्ज करा दी है। बिहार के 15 जिले कभी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शुमार थे। इन जिलों को केन्द्र सरकार भी नक्सल प्रभाव के दायरे में मानती है और वहां के लोगों को माओवादियों के प्रभुत्व से निकालने और क्षेत्र के विकास के लिए सुरक्षा संबंधी व्यय की योजना के तहत राशि भी दे रही है। पर, बिहार की हकीकत अब चौंकाने वाली है। राज्य के 33 जिले अब नक्सल प्रभावित हैं जिसमें एक पुलिस जिला बगहा भी शामिल हो चुका है। हालांकि सुरक्षा से जुड़े अधिकारियों का मानना है कि माओवादियों की यह मंशा पूरी तो नहीं होगी लेकिन उनके प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता। इस विस्तार के लिए माओवादियों की जबरदस्त रणनीति है। अत्याधुनिक हथियार, उपकरण और हमले के लिए तैयार दस्ते में शामिल सदस्यों को हाई क्वालिटी ट्रेनिंग। माओवादियों के पास वे सारे हथियार हैं जो केन्द्र सरकार सुरक्षा एजेंसियों को मुहैया कराती हैं। कुछ ऐसे विस्फोटक भी उनके हाथ लगे हैं, पहली नजर में जिनकी पहचान पुलिस के लिए मुश्किल है। टेस्ट के लिए उन्हें लैब भेजना पड़ता है। जहां तक ट्रेनिंग की बात है तो संभवत: राज्य पुलिस के जवानों को ऐसी ट्रेनिंग कम से कम नियमित तो नहीं ही मिलती। रोप क्लांबिंग और सैन्य कर्मियों की तरह दूसरी ट्रेनिंग उनके लिए रोजमर्रा का हिस्सा हैं। यह उनकी गुरिल्ला आर्मी के फिटनेस का राज है। हाल ही में मुगेंर में उनके एक ट्रेनिंग कैम्प में सुविधाओं को देखकर पुलिस भी दंग रह गयी। खास बात यह है कि माओवादियों को मानसिक रूप से तैयार करने के लिए अब उन्हें योग भी सिखाए जा रहे हैं। पिछले कुछ वर्षो से बिहार में उनके लिए योग शिविर भी आयोजित किए जाते रहे हैं।ं

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