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Hindi News सुखना की कंटीली वनस्पति बनी मछलियों के ठेके में बाधा

सुखना की कंटीली वनस्पति बनी मछलियों के ठेके में बाधा

चंडीगढ़।सुखना में तेजी से पनप रही कंटीली वनस्पति ने मछलियों के ठेके में भी अड़ंगा डाला है। मछलियों का ठेके लेने वाले ठेकेदार ने बाकायदा पशु-पालन विभाग को पत्र लिखकर दोबारा से मछलियां के ठेके की...


सुखना की कंटीली वनस्पति बनी मछलियों के ठेके में बाधा
Mon, 12 Apr 2010 01:01 AM
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चंडीगढ़।सुखना में तेजी से पनप रही कंटीली वनस्पति ने मछलियों के ठेके में भी अड़ंगा डाला है। मछलियों का ठेके लेने वाले ठेकेदार ने बाकायदा पशु-पालन विभाग को पत्र लिखकर दोबारा से मछलियां के ठेके की समयावधि बढ़ाने की गुहार लगाई है। पत्र में ठेकेदार ने लिखा है कि उसने हाल ही में ठेके के तहत सुखना से मछलियां निकालने का काम चालू किया था लेकिन कंटीली वनस्पति के कारण उसे उतनी मछलियां नहीं मिलीं, जितनी उम्मीद थी। ऐसे में, उसे पुराने ठेके के तहत थोड़ा अतिरिक्त समय दिया जाए ताकि उसे घाटा न हो।पशु-पालन विभाग ने पिछले महीने सुखना से मछलियां निकालने का ठेके दिया था। ठेके के एवज में मछलियां निकालने वाले ठेकेदार ने पशु-पालन विभाग को सवा दस लाख रुपए जमा करवाए थे। ठेकेदार के मुताबिक 15 फरवरी से एक मार्च तक के लिए दिए गए ठेके के तहत उसने तय समय पर मछलियां निकालने का काम चालू कर दिया। इस दौरान जहां कंटीली वनस्पति नहीं थीं, वहां पर अच्छी-खासी मछलियां निकली गईं लेकिन कंटीली वनस्पति वाले क्षेत्र में मछलियां नहीं निकाली जा सकीं। मछलियां निकालने वाले कर्मचारियों ने जब कंटीली वनस्पति वाले क्षेत्र में पानी के बीच उतर कर मछलियां पकड़ने की कोशिश की तो वनस्पति की वजह से उन्हें एलर्जी हो गई। यही वजह रही कि सुखना से करीब 80 क्विंटल मछलियां ही निकाली जा सकीं। ऐसे में उसे ठेके के तहत जमा करवाई गई राशि भी वसूल नहीं हो पाई।ठेकेदार की इस आपत्ति के साथ ही सुखना में बड़ी मछलियों की छंटनी को लेकर भी संशय मंडराने लगा है। मछली पालन विभाग की तरफ से तैयार की गई रिपोर्ट में बताया गया था कि सुखना के इकोलॉजिकल बैलेंस को दुरूस्त रखने के लिए झील से बड़ी मछलियों की छंटनी आवश्यक है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए मछली पालन विभाग ने मछलियों की छंटनी के ठेके का प्रस्ताव दिया था। ऐसे में, उम्मीद से कम मछलियां निकलने से छंटनी प्रक्रिया को लेकर भी संशय उठ खड़ा हुआ है। यह अलग बात है कि पशु पालन विभाग के संयुक्त निदेशक एवीएस कोहली इस मामले में अपना तर्क देते हैं। उनके मुताबिक ठेका देते हुए यह नियम रखा गया था कि एक निश्चित अवधि के दौरान ही मछलियों को निकाला जाएगा। इस तरह अगर ठेकेदार को घाटा होता है तो इसमें विभाग का कोई सरोकार नहीं है। जहां तक बात बड़ी मछलियों के छंटनी की है तो जो कुछ किया जाएगा, वह विशेषज्ञों के सुझाव पर ही किया जाएगा।

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