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न्यायालय ने पाक सरकार को फिर आड़े हाथों लिया

पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दोबारा खोलने के लिए स्विस प्रशासन को भेजे जाने वाले पत्र का मसौदा फिर से तैयार करने के लिए कहा...

न्यायालय ने पाक सरकार को फिर आड़े हाथों लिया
Fri, 05 Oct 2012 05:18 PM
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पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने संघीय सरकार को आड़े हाथों लेते हुए राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दोबारा खोलने के लिए स्विस प्रशासन को भेजे जाने वाले पत्र का मसौदा फिर से तैयार करने के लिए कहा है।

न्यायालय ने कहा कि शुक्रवार को सौंपा गया पत्र का मसौदा न्यायालय के आदेश की भावना के अनुरूप नहीं है। इसके साथ ही न्यायालय ने इस काम के लिए सरकार को 10 अक्टूबर तक की मोहलत दे दी है।

डॉन न्यूज की रपट के मुताबिक, कानून मंत्री फारुख एच. नाइक ने राष्ट्रीय सुलह अध्यादेश (एनआरओ) क्रियान्वयन मामले की सुनवाई कर रही सर्वोच्च न्यायालय की पीठ के समक्ष स्विस प्रशासन को भेजे जाने वाले पत्र का संशोधित मसौदा पेश किया।

न्यायमूर्ति आसिफ सईद खोसा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने मामले की सुनवाई की। न्यायमूर्ति खोसा ने कहा कि पत्र का मसौदा न्यायालय के आदेश की भावना के अनुरूप नहीं है।

न्यायमूर्ति खोसा ने कहा कि यद्यपि पत्र का पहला और दूसरा पैराग्राफ न्यायालय के आदेश के अनुरूप है, लेकिन तीसरा पैराग्राफ प्रथम दो पैराग्राफ्स और न्यायालय के आदेश के विपरीत है। न्यायाधीश ने पत्र के अंतिम अनुच्छेद की समीक्षा करने के लिए भी कहा।

इसके पहले प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ ने 18 सितम्बर को न्यायालय में कहा था कि सरकार ने परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल के दौरान जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले बंद करने के लिए भेजे गए पत्र को वापस लेने का निर्णय लिया है।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2007 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने जरदारी और उनकी पत्नी व पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की स्वदेश वापसी सुनिश्चित करने के लिए उन्हें एनआरओ के तहत आम माफी दे दी थी।

यह अध्यादेश राजनेताओं तथा नौकरशाहों को भ्रष्टाचार के मामलों में छूट प्रदान करता है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2009 में इस अध्यादेश को निरस्त कर दिया था।

सर्वोच्च न्यायालय ने इस साल जनवरी में तत्कालीन प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को जरदारी के खिलाफ स्विस प्रशासन को पत्र लिखने का निर्देश दिया था।

उन्होंने हालांकि ऐसा नहीं किया। न्यायालय ने 26 अप्रैल को उन्हें अदालत की अवमानना का दोषी करार दिया। 19 जून को उन्हें संसद की सदस्यता तथा प्रधानमंत्री पद के अयोग्य ठहरा दिया गया।

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