भूमि अधिग्रहण विधेयक पर मंत्रिसमूह में नहीं बनी सहमति
भूमि अधिग्रहण विधेयक पर बने मंत्रिसमूह (जीओएम) के सदस्यों के बीच सोमवार को पहले के अधिग्रहणों और भूमि स्वामियों से जरूरी रजामंदी लेने के मुद्दों पर मतभेद बने...
भूमि अधिग्रहण विधेयक पर बने मंत्रिसमूह (जीओएम) के सदस्यों के बीच सोमवार को पहले के अधिग्रहणों और भूमि स्वामियों से जरूरी रजामंदी लेने के मुद्दों पर मतभेद बने रहे।
चौदह सदस्यीय मंत्रिसमूह की दूसरी बैठक में आमसहमति नहीं बनी और इसके अध्यक्ष कृषि मंत्री शरद पवार का कहना है कि इस विधेयक को अंतिम रूप देने के लिए दो-तीन बैठकों की जरूरत है।
पहली बैठक के दौरान भी पवार के नेतृत्व वाले मंत्रिसमूह के सदस्यों के बीच इन्हीं मुद्दों पर एकराय नहीं बनी थी। इस घटनाक्रम से जुड़े एक सूत्र ने कहा कि सदस्यों ने निजी कंपनियों के लिए भूमि अधिग्रहण के लिए सरकार की भूमिका को लेकर भी मतभेद जाहिर किए।
माना जा रहा है कि वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा और पेट्रोलियम मंत्री एस जयपाल रेड्डी ने भूमि अधिग्रहण के दौरान निजी पक्षों को सरकार की मदद के विचार का समर्थन किया।
कहा जा रहा है कि रक्षा मंत्री एके एंटनी ने कहा कि सरकार को पीपीपी माडल में केवल तभी भूमिका निभानी चाहिए जब बहुत ज्यादा जरूरी हो। सूत्रों ने कहा कि पुराने अधिग्रहण के उपबंध पर कोई अंतिम राय नहीं बन सकी। हमने इस सुक्षाव पर कोई अंतिम फैसला नहीं किया है कि दो तिहाई लोगों (भूमि स्वामियों) की रजामंदी जरूरी होगी।
सोमवार को हुई बैठक में कुछ मंत्रियों ने इस वास्तविक उपबंध को बरकरार रखने की भी मांग की जिसमें कहा गया है कि भूमि के अधिग्रहण के लिए 80 प्रतिशत लोगों (भूमि स्वामियों) की रजामंदी लेनी होगी।
इस 80 फीसदी वाले उपबंध को बदलकर इसे अधिग्रहण के लिए दो तिहाई (66 प्रतिशत) भूमि स्वामियों की रजामंदी कर दिया गया था। बैठक के बाद पवार ने संवाददाताओं से कहा कि विधेयक को अंतिम रूप देने के लिए दो या तीन और बैठकों की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि सभी मुद्दे सुलझा लिए जाएंगे तथा दो या तीन और बैठकों में विधेयक को अंतिम रूप दिया जाएगा।
सूत्रों ने कहा कि वित्त मंत्री पी चिदंबरम और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया को छोड़कर सभी मंत्री बैठक में मौजूद थे। इस सप्ताह की समाप्ति से पहले ये (और बैठकें) होंगी।
पिछले महीने भूमि अधिग्रहण विधेयक पर बने मंत्रिसमूह की पहली बैठक में कुछ सदस्यों ने इसे पूर्व प्रभाव से लागू करने का विकल्प खुला रखने की पुरजोर मांग की, जिसे पहले खत्म कर दिया गया था।
उद्योग एवं अन्य मंत्रालयों के विरोध को ध्यान में रखते हुए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने कहा है कि उसने उस विवादित उपबंध में बदलाव किए हैं, जिसमें कहा गया था कि विधेयक पूर्व प्रभाव से लागू होगा।
इस उपबंध के अनुसार यह विधेयक इस कानून के लागू होने की तारीख से पहले के भूमि अधिग्रहण के उन सभी मामलों पर भी लागू होगा, जिनमें 1894 के अधिनियम के तहत अंतिम फैसला नहीं हुआ है।