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बेस्ट बेकरी मामले में अपील पर हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी

बंबई उच्च न्यायालय ने 2002 के बेस्ट बेकरी मामले में उम्र कैद की सजा के खिलाफ नौ अभियुक्तों की अपील पर मंगलवार को सुनवाई पूरी कर ली। न्यायलाय इस मामले में अपना फैसला बाद में...

बेस्ट बेकरी मामले में अपील पर हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी
Tue, 03 Jul 2012 07:50 PM
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बंबई उच्च न्यायालय ने 2002 के बेस्ट बेकरी मामले में उम्र कैद की सजा के खिलाफ नौ अभियुक्तों की अपील पर मंगलवार को सुनवाई पूरी कर ली। न्यायलाय इस मामले में अपना फैसला बाद में सुनाएगा।
 
न्यायमूर्ति वीएम कनाडे और न्यायमूर्ति पीडी कोड़े की खंडपीठ ने इस मामले में दोषी नौ अभियुक्तों की अपील पर मार्च महीने में दिन प्रतिदिन सुनवाई शुरू की थी। गौरतलब है कि इन अभियुक्तें ने निचली अदालत के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसके तहत छह साल पहले उन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी। पीठ ने बचाव पक्ष और अभियोजन पक्ष की दलीलें सुनने के बाद आज इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। पीठ ने कहा कि वह खुली अदालत में कल से फैसला लिखाना शुरू करेगी।   

गोधरा कांड के बाद गुजरात हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान एक मार्च, 2002 को बडोदरा में 14 लोगों ने हनुमान टेकड़ी स्थित बेस्ट बेकरी में शरण ली थी। इन सभी को 20 लोगों की उन्मादी भीड़ ने मार दिया था। मुंबई की एक विशेष अदालत ने इस मामले में 17 आरोपियों में से नौ को दोषी ठहराया था। इसके बाद इन नौ लोगों ने इस फैसले को चुनौती देने के लिए उच्च न्यायालय का रुख किया था।

इस मामले में एक नाटकीय मोड़ उस वक्त आया, जब मुख्य गवाह यासमीन शेख ने इस साल के शुरुआत में हाई कोर्ट में एक अर्जी देकर दावा किया कि सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता शीतलवाड़ ने उन्हें आरोपियों के खिलाफ गवाही देने के लिए मजबूर किया था।

यासमीन ने आरोप लगाया था कि तीस्ता ने उससे वादा किया था कि यदि वह निचली अदालत में झूठी गवाही देती है, तो इसके एवज में उसे धन मिलेगा। यासमीन ने उच्च न्यायालय से अपनी गवाही दोबारा देने की इजाजत मांगी थी। हालांकि, अदालत ने कहा कि वह पहले दोषियों की ओर से दायर अपील पर सुनवाई और फैसला करेगी।

तीस्ता ने बाद में एक हस्तक्षेप अर्जी देकर अदालत से अनुरोध किया था कि इन अपीलों पर फैसला करते समय उसका पक्ष भी सुना जाए। इस पर, अदालत ने कहा था कि वह सुनवाई के अंत में यासमीन और तीस्ता, की अर्जियों पर सुनवाई करेगी। अदालत ने कहा था, यदि हम निचली अदालत के फैसले पर सहमत होते हैं तब हम अर्जियों की सुनवाई करेंगे। यदि नहीं, तब अर्जियों की सुनवाई करने की जरूरत नहीं है।

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