गरीबी के कारण कसाब ने पकड़ा अपराध रास्ता
ईद के मौके पर पिता द्वारा नए कपड़े नहीं खरीद पाने से उपजे रोष के कारण अजमल आमिर कसाब ने घर छोड़ दिया, अपराध का रास्ता अपना लिया, जेल गया और आखिर में भारत में मिली मौत की...
ईद के मौके पर पिता द्वारा नए कपड़े नहीं खरीद पाने से उपजे रोष के कारण अजमल आमिर कसाब ने घर छोड़ दिया, अपराध का रास्ता अपना लिया, जेल गया और आखिर में भारत में मिली मौत की सजा।
25 वर्षीय कसाब को बुधवार को 2008 के मुम्बई आतंकी हमले के मामले में पुणे के यरवडा जेल में फांसी दे दी गई।
घर छोड़ने के पहले कसाब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के अपेक्षाकृत गरीब इलाके में साधारण जीवन जी रहा था। उसका परिवार गरीब था। पिता फल बेचते थे और भाई लाहौर में मजदूर था।
वर्ष 2005 में ईद के मौके पर पिता द्वारा नए कपड़े नहीं खरीद पाने के कारण उसने झगड़ा करने के बाद घर छोड़ दिया।
वह छोटे-मोटे अपराध में फंस गया और बाद में हथियारों के साथ डाके डालने लगा। इसी बीच लश्कर-ए-तैयबा की राजनीतिक शाखा जमात-उद-दवा के सम्पर्क में आने के बाद वह एक दूसरी दिशा में आगे बढ़ गया।
जल्दी ही वह लश्कर में प्रशिक्षण लेने लगा।
आखिरी बार वह नवम्बर 2008 के मुम्बई आतंकी हमले के छह महीने पहले अपने गांव में देखा गया। वह जेहाद शुरू करने के लिए अपनी मां से आशीर्वाद लेने गया था।
उसे इंटर-सर्विसेज इंटेलीजेंस (आईएसआई) के सहयोग से कठिन प्रशिक्षण दिया गया।
कथित तौर पर लश्कर ने कसाब से वादा किया कि मुम्बई हमले में यदि वह (शहीद) होगा, तो उसके परिवार को डेढ़ लाख रुपये दिए जाएंगे।
इसके बाद कसाब और उसके नौ अन्य साथी ने अपहृत जहाज से मुम्बई में प्रवेश किया। उनके निशाने पर ताज महल पैलेस होटल, आबेराय ट्राइडेंट होटल और नरीमन हाउस था।
लेकिन प्रौद्योगिकी उसके रास्ता का कांटा बन गई। जब वह और उसके एक अन्य आतंकी साथी इस्माइल खान मुम्बई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल पर कहर बरपा रहे थे, तब सीसीटीवी ने उनके इस वारदात को कैद कर लिया।
उसके पास एके-47, कारतूस और सूखे मेवे थे।
कसाब और खान ने महाराष्ट्र आतंकी निरोधक बल के प्रमुख हेमंत करकरे और अन्य अधिकारियों को मारने के बाद पुलिस वाहन को कब्जे में ले लिया और मेट्रो सिनेमा की तरफ बढ़ा। वह कथित तौर पर पुलिस द्वारा पहनी बुलेट प्रूफ वर्दी पर फब्तियां भी कस रहा था।
वाहन के एक पहिए का टायर पंचर हो जाने के बाद उन्होंने दूसरे वाहन पर कब्जा कर लिया। उनके सामने चौपाटी का पुलिस बेरीकेट आ गया।
कसाब और खान ने वाहन को वापस पीछे घुमाया, लेकिन सतर्क पुलिस ने गोलियों से हमला किया, जिसमें खान मारा गया।
इसे देख कर कसाब ने भी मरने का नाटक किया, लेकिन जब सहायक उप निरीक्षक तुकाराम ओम्ब्ले उसके पास गए, तो कसाब ने उस पर गोलियों से हमला कर दिया, जिसमें वह शहीद हो गए, लेकिन मरते-मरते उन्होंने कसाब के हथियार को जकड़ लिया, जिसके कारण अन्य पुलिस अधिकारियों ने कसाब पर नियंत्रण पा लिया।
पुलिस हिरासत में कसाब ने पुलिस अधिकारियों से प्रार्थना की कि उसे मार दिया जाए, क्योंकि उसे पाकिस्तान में अपने परिवार की सुरक्षा का डर था।
इसके बाद सुनवाई का लम्बा सिलसिला चला और आखिरकार चार सालों बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा दया याचिका खारिज करते ही उसकी फांसी का रास्ता साफ हो गया।