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ब्लैकी भालू 

ब्लैकी भालू की दोस्त थी नन्ही बुलबुल सितारा। सितारा बुलबुल अक्सर जंगल की तरफ जाती थी। कई दिन बाद वहां से लौटकर उसे तरह-तरह की कहानियां सुनाती थी। ब्लैकी चिड़ियाघर में ही पैदा हुआ था, इसलिए उसे...

ब्लैकी भालू 
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 18 Jul 2016 01:47 PM
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ब्लैकी भालू की दोस्त थी नन्ही बुलबुल सितारा। सितारा बुलबुल अक्सर जंगल की तरफ जाती थी। कई दिन बाद वहां से लौटकर उसे तरह-तरह की कहानियां सुनाती थी।

ब्लैकी चिड़ियाघर में ही पैदा हुआ था, इसलिए उसे नहीं मालूम था कि जंगल कैसा होता है। उसने तो अपने अड़ोसी-पड़ोसियों से जंगल की कहानियां ही सुनी थीं कि वहां अपना खाना खुद ही ढूंढ़ना पड़ता है। यहां की तरह नहीं कि बैठे-बिठाए मिल जाता है। हर वक्त शिकारियों और जंगली जानवरों के हमले का डर बना रहता है। 

लेकिन बुलबुल जंगल की इतनी तारीफ करती, वहां मिलने वाले फल-फूलों के बारे में बताती, बहते झरनों की कहानियां सुनाती तो ब्लैकी का मन भी वहां जाने को करने लगता। एक दिन ब्लैकी ने उससे कहा, ‘कितना अच्छा होता कि मैं भी तेरी तरह जंगल में जाता। खूब घूमता। तरह-तरह के पेड़ों, फूलों को देखता। पेड़ों पर चढ़ता। मेरी मां बताती थीं कि वह जंगल में पेड़ पर चढ़कर खूब शहद खाती थीं। मुझे तो यह भी नहीं पता कि शहद कैसा होता है।’

‘तो दिक्कत क्या है? चलो न एक दिन मेरे साथ।’ बुलबुल ने इठलाते हुए कहा।

‘कैसे चलूं? यहां हर वक्त तो हम पर नजर रखी जाती है। गिनती की जाती है। एक भी जानवर गायब हो तो हर जगह ढूंढ़ मच जाती है।’

‘अरे तो रात में जब सब सो जाएं तो चलो।’सितारा ने कहा।

‘मगर किसके साथ? मैंने तो जंगल का रास्ता भी नहीं देखा। तू चलेगी मेरे साथ?’ 

‘रात में तो जा नहीं सकती। मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं, वे डरेंगे। अभी तो बेचारे उड़ना भी नहीं जानते। अब तो मैं तभी जा सकती हूं, जब वे भी उड़कर मेरे साथ चल सकें।’

‘ठीक है, तू भी ऐसी दोस्त निकली जो वक्त पर काम नहीं आ सकती। काश कि मेरे भी पंख होते। और तेरी तरह उड़ सकता। फिर मुझे कोई नहीं पकड़ पाता।’ 

‘वह कहावत सुनी है न कि दूर के ढोल सुहावने। पता है न आसमान में  उड़ते वक्त गुलेल से लेकर बाज तक के कितने खतरे मंडराते हैं।’ 
‘तो मैं कौन सा तेरे साथ जा रहा हूं।’

उसकी बात सुनकर सितारा जोर से हंसी-‘जाओगे भी कैसे? इतने भारी-भरकम हो कि अपनी पीठ पर भी बैठाकर नहीं ले जा सकती।’ कहती हुई सितारा तो उड़ गई मगर ब्लैकी को जैसे चिड़ियाघर से आजाद होने का मंत्र दे गई। बस वह सोचने लगा कि कैसे वहां से बाहर निकले। दीवार ऊंची नहीं थी, मगर वह कूद कर उसके पार नहीं जा सकता था। 

एक रात चुपके-चुपके वह मुख्य दरवाजे पर पहुंचा। वहां उसने देखा कि दरवाजा खुला है और चौकीदार सो रहा है। वह धीरे से बाहर निकला। पीछे मुड़कर देखा कि कहीं चौकीदार जग तो नहीं गया और दौड़ने लगा। कुछ ही देर में दौड़ने से उसकी सांस फूल गई। सवेरा होने वाला था। लोगों की आवाजाही शुरू हो गई थी। ब्लैकी को डर लगा। वह जल्दी से एक पेड़ पर चढ़ गया।

लोग सवेरे की सैर पर निकले हुए थे। दो लोग उसी पेड़ के नीचे आ खड़े हुए जिस पर ब्लैकी बैठा था। अचानक एक ने पेड़ के ऊपर की तरफ देखा। फिर दूसरे से बोला, ‘अरे देखना पेड़ पर वह काला-काला क्या है? कोई बंदर तो नहीं?’

दूसरे ने देखा और बोला,‘अरे बंदर इतना बड़ा थोड़े ही होता है। यह तो भालू है। मगर यह कहां से आ गया। पास में तो कोई जंगल भी नहीं।’ और इस तरह ब्लैकी भालू न तो घर का रहा, न ही घाट का रहा। 

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