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Film Review: पढ़ें फिल्म 'बार बार देखो' का रिव्यू

बात बहुत सीधी-सी है 'आप अपनी जिंदगी को किस ढंग से जीना चाहते हैं ?' जीवन में कुछ बनने की चाह में और अपने कल को संवारने के चक्कर में अपने वर्तमान को अपनी आंखों के सामने बर्बाद होते देखना चाहते...

Film Review: पढ़ें फिल्म 'बार बार देखो' का रिव्यू
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 09 Sep 2016 05:28 PM
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बात बहुत सीधी-सी है 'आप अपनी जिंदगी को किस ढंग से जीना चाहते हैं ?' जीवन में कुछ बनने की चाह में और अपने कल को संवारने के चक्कर में अपने वर्तमान को अपनी आंखों के सामने बर्बाद होते देखना चाहते हैं या फिर उस कल के लिए ढे़र सारा कुछ ऐसा इन्वेस्ट करना चाहते हैं, जिसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं है। पसंद आपकी है कि आप आज में जीना चाहते हैं या आने वाले कल में। 

नित्या मेहरा की यह फिल्म उन नौजवानों के बारे में जिन्हें लगता है कि सबकुछ उनकी मुट्ठी में है। फिल्म के नौजवान किरदार 'जय वर्मा' (सिद्धार्थ मल्होत्रा) को भी ऐसा ही लगता है कि अगर जीवन का गणित उसके हिसाब से चलेगा तो वह सब ठीक कर देगा, इसीलिए अपनी शादी से ठीक एक दिन पहले वह अपनी प्रेमिका 'दीया' (कैटरीना कैफ) से गुजारिश करता है कि वह उसे भूल जाए। 

दरअसल, जय अपनी जिंदगी जीना चाहता है। उसे 'कैम्ब्रिज' जाकर पढ़ाई करनी है। वह अभी से शादी के बंधन में बंधना नहीं चाहता। उसे न साफ फेरों में कोई विश्वास है और न ही जन्म जमांतर के बंधन में। ऐसे में किसी की जिम्मेदारी उठाने का तो सवाल ही कहां पैदा होता है। दीया का दिल दुखाने के बाद जब जय की आंखें अगले दिन खुलती हैं तो सब कुछ बदल जाता है। वह खुद को मलेशिया में दीया के साथ पाता है। दीया उसे बताती है कि उनकी शादी को दस दिन हो गए हैं और वे दोनों हनीमून के लिए यहां आए हैं। 

जय कुछ और समझ पाता या अपनी बात दीया को समझा पाता अगले दिन जब उसकी आंख खुलती है तो वह खुद को दो साल आगे पाता है। जी हां, ये साल 2018  है और जय पिता बनने वाला है। वह कुछ समझ पाए इससे पहले उसे दीया को अस्पताल ले जाना पड़ता है, जहां दीया एक बेटे को जन्म देती है। यहीं अस्पताल में उसे वह पंडित जी (रजित कपूर) मिलते हैं, जिन्होंने जय को शादी के एक दिन पहले गृहस्थ जीवन के सूत्रों और रहस्यों से अवगत कराया था। जय को लगता है कि ये सारा किया घरा इस पंडित का ही है। 

जय को कुछ समझ नहीं आता कि ये क्या हो रहा है, लेकिन पिता बन कर वह खुश है। हालांकि उसकी यह खुशी ज्यादा पलों तक नहीं रहती। इसके ठीक अगले दिन वह खुद को साल 2034 में पाता है। वह अब बूढ़ा हो गया है। उसका बेटा अर्जुन जवान हो गया है, जो उसे लेने आया है। दोनों मिल कर कोर्ट जाते हैं। जय यह सोच रहा है कि आज उसके बेटे की शादी है, लेकिन यहां तो जय और दीया के बीच तलाक होने वाला है। जय यह सोच कर दुखी है कि वह किसी भी रिश्ते को आखिर बचा क्यों नहीं पा रहा है। आखिर सब वैसे ही तो हो रहा है जैसे उसने सोचा था। उसे अब भी नहीं पता कि दीया उससे तलाक क्यों ले रही है। इससे पहले कुछ और बिगड़े, जय अब सब कुछ ठीक करना चाहता है। वह फिर से वहीं जिंदगी पाना चाहता है, जिसे उसने अपनी मर्जी से ठोकर मारी थी। लेकिन इसके लिए उसे फिर से 2016 में वापस लौटना होगा। क्या वाकई...

एक कॉन्सेप्ट के रूप में यह फिल्म अपील तो करती है। इसमें एक-दो नहीं कई बातें हैं, जो आज की नौजवान पीढ़ी की बातों और इरादों से मेल खाती हैं। लेकिन, जिस खास वर्ग की कहानी को इसमें दर्शाया गया है, उसका दायरा काफी सीमित है। आप सोचिए कि जय और दीया को शादी के बाद दिल्ली के एक वीवीआईपी इलाके के घर में शिफ्ट होना है। यह अति धनाढ्य वर्ग का पारिवारिक माहौल है, जहां किसी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले लड़के की महीने की सैलरी ही लाखों रुपये होगी और सालाना पैकेज करोड़ों में। 

इसलिए यह कहानी 20-25 हजार रुपये कमाने वालों पर असर कम करती दिखती है। उनके लिए तो जीवन का हर दिन ही चुनौती है। ऐसे में तेज भाग-दौड़ से समझौता करना या फिर वर्तमान में जीने वाली बात बेमानी सी लगती है। लेकिन अगर जीवन के मूल संदेश की बात करें तो यह कहानी काफी हद तक सब पर लागू भी होती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि घर-परिवार की बातें करने वाले करण जौहर और फरहान अख्तर ने वाकई एक कहानी और माहौल को दर्शाया है, जो आज की युवा की जरूरतों और अंधी भाग-दौड़ को दर्शाता है। 

ऐसे में यह कहानी सोचने पर मजबूर तो करती है कि आखिर हम कहां जा रहे हैं। अक्सर देखा गया है कि कुछ पाने की चाह में पहले युवा शादी से कतराते हैं। जब शादी हो जाती है तो जिम्मेदारी से भागते हैं। बच्चे होने के बाद जिंगदी बोझिल सी होने लगती है। इन तमाम बातों को एक डर की तरह फिल्म में दिखाया गया है, जो काफी हद तक असर जगाता है। 

फिल्म में कैटरीना कैफ लंबे समय बाद ताजगी के साथ दिखाई दी हैं। उन्हें देख ऐसा लगता है कि उनके सिर से मानो कोई बोझ उतर गया है। अपनी पिछली फिल्म 'फितूर' में वह बहुत सुस्त और ऊर्जाविहीन लग रही थीं, लेकिन इस फिल्म में उन्होंने न केवल अच्छा अभिनय किया है, बल्कि कई जगहों पर मजेदार ठुमके भी लगाए हैं। 

एक डरे-सहमे से युवा के किरदार में सिद्धार्थ ने भी काफी अच्छा अभिनय किया है। यह एक उलझा हुआ किरदार है जो शुरू से अंत तक परेशान रहता है। बेबसी से भरा और अनसुलझे से इस किरदार की गुत्थी अंत में जाकर सुलझती है, जिसे सिद्धार्थ ने काफी मंझे हुए ढंग से निभाया है। एक कपल के रूप में भी कैट-सिड की जोड़ी अपील करती है। फिल्म का गीत-संगीत भी कर्णप्रिय है। खासतौर पर फिल्म के अंत में दिखाया गया पंजाबी गीत काला चश्मा...

कुल मिला कर ‘बार बार देखो’ शायद कई बार देखने का मन न करे, लेकिन यह एक बार देखो, फिल्म जरूर है। 


कलाकार:  सिद्धार्थ मल्होत्रा, कैटरीना कैफ, राम कपूर, सारिका, रजित कपूर, सियानी गुप्ता
निर्देशक-लेखक: नित्या मेहरा
निर्माता: करण जौहर, फरहान अख्तर, रितेश सिधवानी
संगीत: अमाल मलिक, आकरो, बादशाह, जसलीन रॉयल, बिलाल सईद
गीत: रफ्तार, मयूर पुरी, प्रिया सराइया, वायु
पटकथा : नित्या मेहरा, साई राव
संवाद : अन्विता दत्त

रेटिंग - 3 स्टार

यहाँ देखें बार-बार देखो का ट्रेलर 

 

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