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तपेदिक पर हुए अनुसंधान की सफलता में अरुणाचल प्रदेश की जनजाति का योगदान

तपेदिक को लेकर किए गए एक अनुसंधान में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने जो सफलता हासिल की, उसमें अरुणाचल प्रदेश की एक उप जनजाति का अहम योगदान...

तपेदिक पर हुए अनुसंधान की सफलता में अरुणाचल प्रदेश की जनजाति का योगदान
Thu, 31 Jan 2013 11:38 AM
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तपेदिक को लेकर किए गए एक अनुसंधान में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने जो सफलता हासिल की, उसमें अरुणाचल प्रदेश की एक उप जनजाति का अहम योगदान है।
   
इस उप जनजाति की मदद से अनुसंधानकर्ताओं ने यह पता लगाने की कोशिश की कि तपेदिक आखिर क्यों वैश्विक महामारी बना हुआ है और हर साल इसकी वजह से 19 लाख लोगों की जान जाती है। 
   
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी एंड फोर्सिथ इन्स्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने बताया कि अरुणाचल प्रदेश की तपेदिक से प्रभावित जनजाति इदु मिशमी पर अध्ययन किए गए और इस बीमारी की प्रतिरोधकता के संभावित कारण का पता लगाया गया।
   
अध्ययन के नतीजे प्रतिष्ठित साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। इनमें कहा गया है कि तपेदिक के बैक्टीरिया में बोन मैरो (अस्थिमज्जा) की एक खास तरह की स्टेम कोशिकाओं में प्रवेश करने और वहीं ठहर जाने की क्षमता होती है।
   
आगे कहा गया है कि ऐसा कर बैक्टीरिया खुद शरीर की उस व्यवस्था का लाभ लेता है जिसके तहत शरीर खुद को दुरूस्त करता है।
   
ओंकोलॉजी और पैथोलॉजी के प्रोफेसर डीन फेलशर ने कहा कैंसर के वैज्ञानिकों ने पाया है कि बोन मैरो में खुद को दुरूस्त कर लेने वाली इस तरह की स्टेम कोशिकाओं में कुदरती दवाओं को लेकर प्रतिरोधक क्षमता, लगातार विभाजन की क्षमता और खुद उनकी प्रतिरोधक क्षमता जैसे खास गुण होते हैं जिनकी वजह से इन स्टेम कोशिकाओं पर कई तरह के इलाज का असर नहीं होता।
   
वैज्ञानिकों ने न सिर्फ स्टेम कोशिकाओं के अंदर पाए जाने वाले बैक्टीरिया से अनुवांशिक सामग्री पाई बल्कि वह सक्रिय बैक्टीरिया को तपेदिक के ऐसे मरीज की कोशिकाओं से अलग कर सकते थे जिसका इस बीमारी के कारण गहन इलाज चल रहा था।
   
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक शोधार्थी और अध्ययन के मुख्य लेखक बिकुल दास ने कहा अब हमें यह जानने की जरूरत है कि आखिर बैक्टीरिया इन स्टेम कोशिकाओं की नन्हीं आबादी का पता कैसे लगाता है, उसे संक्रमित कैसे करता है और यह बीमारी के सफल इलाज के बरसों या दशकों बाद कैसे फिर से सक्रिय हो जाता है।
   
भारत में अरुणाचल प्रदेश के पांच गांवों में अनुसंधानकर्ताओं और डॉक्टरों ने मुफ्त चिकित्सा शिविर लगाए और इदु मिशमी उप जनजाति के सभी मरीजों को मुफ्त दवाएं दीं। इस कोशिश से उन लोगों की पहचान हुई जिन्हें तपेदिक था। साथ ही इन लोगों का इलाज भी हुआ।
   
दल ने इन लोगों के शरीर से सीडी271 स्टेम कोशिकाओं को अलग किया और इनमें तपेदिक के सुप्त अवस्था में पड़े बैक्टीरिया के प्रमाण पाए।
   
प्रेस को जारी एक बयान में कहा गया है कि सीडी271 स्टेम कोशिकाओं में सुप्त अवस्था में तपेदिक के बैक्टीरिया पाए जाने के बारे में दास की प्रयोगशाला के नतीजे और कैम्पोज नेटो के अध्ययन के परिणाम मिलतेजुलते थे।
   
इस प्रकार यह संभावना उत्पन्न होती है कि अन्य संक्रमणकारी एजेंट भी इसी तरह स्टेम कोशिकाओं में छिप सकते हैं। बहरहाल, नये इलाज के विकास में कुछ बरसों का समय लग सकता है लेकिन अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि तपेदिक से मुकाबले के लिए एक संभावित लक्ष्य मिल गया है। दुनिया भर में हर साल करीब 2.2 अरब लोग इस बीमारी से संक्रमित होते हैं।
   
यह अध्ययन कैम्ब्रिज के फोर्सिथ इन्स्टीटयूट, टोरंटो के हॉस्पिटल फॉर सिक चिल्ड्रेन और रिसर्च इन्स्टीटयूट ऑफ वर्ल्डस एनशिएंट ट्रेडीशन्स कल्चर्स एंड हैरिटेज (आरआईडब्ल्यूएटीसीएच) के वैज्ञानिकों ने किया।
   
मिशिमी समुदाय की डॉक्टर इस्ता पुलू और आरआईडब्ल्यूएटीसीएच के निदेशक विजय स्वामी अध्ययन दस्तावेज के सह लेखक हैं। गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज की डॉक्टर दीपज्योति कलीता ने भी अध्ययन और लैब संबंधी कार्य में भागीदारी की।
   
आरआईडब्ल्यूएटीसीएच की एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस अध्ययन के नतीजों का तपेदिक रोधक दवाओं के विकास में सीधा असर पड़ेगा और इससे यह भी समक्षा जा सकता है कि तपेदिक का इलाज इतना मुश्किल क्यों है। इस अध्ययन ने इदु मिशमी समुदाय के लोगों और अरुणाचल प्रदेश को वैश्विक नक्शे पर ला दिया है।

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